जब किसी भ्रष्ट के खिलाफ किसी भी नागरिक को
कोर्ट जाने का अधिकार है ही तो यह रोना क्यों रो रहे हो कि केंद्र की भाजपा सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है ?
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जिस किसी भ्रष्ट को, आपके अनुसार, भाजपा सरकार बचा रही है ,रोना रोने के बदले उसके खिलाफ आप कोर्ट क्यों नहीं चले जाते ?
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सुरेंद्र किशोर
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डा.सुब्रह्मण्यन स्वामी ने 1 जून 1996 को चेन्नई की एक अदालत में जय ललिता के खिलाफ केस दायर किया जिसमें आय से अधिक धन नाजायज तरीके से एकत्र करने का
उन पर आरोप लगाया गया।
सीआर.पी.सी. की धारा-200 के तहत यह याचिका दायर की गई।
उस पर अदालत ने 21 जून 1996 को इसकी जांच का आदेश दिया।
जांच रपट के आधार पर दायर आरोप पत्र पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने जयललिता व अन्य को दोषी पाया।
सजा हुई।
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चारा घोटाले को लेकर भी जनहित याचिकाएं पटना हाई कोर्ट में दायर की गई थी।
अदालत ने सी.बी.आई.जांच का आदेश दिया।
इस घोटाले में कई लोगांे को अदालत सजा दे चुकी है।
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यानी, इन दोनों मामलों में दोषियों को सजा दिलाने के लिए लोगों ने व्यक्तिगत हैसियत से पहल की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने हर नागरिक को ऐसी छूट भी दे रखी है।
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इस उपलब्ध सुविधा के बावजूद आज कोई सरकारी एजेंसी किसी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई शुरू करती है तो पीड़ित व्यक्ति या उसके समर्थक यह रोना रोते लगते हैं कि इसी के खिलाफ कार्रवाई क्यों हुई ? फलां भ्रष्ट व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है ?
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डा.स्वामी या चारा घोटाले में पी. आई. एल. करने वाले तो ऐसा रोना नहीं रो रहे थे।
उन लोगों ने अपने पौरूष का प्रदर्शन किया और दोषियों को
सजा दिलवा दी।
यदि जांच एजेंसियां आज के किन्हीं भ्रष्ट सत्ताधारियों को बख्श रही है तो आप भी डा.स्वामी या चारा घाोटाले के याचिकाकर्ताओं की राह पर क्यों चल रहे हैं ?
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यदि आप उस राह पर नहीं चलिएगा तो यह माना जाएगा कि आपके पास अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई ठोस सबूत नहीं हंै।
आप सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी कर रहे हैं।
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