पुनरावलोकन
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चारा घोटाले की कहानी
नई पीढ़ी के अवलोकनार्थ
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बिहार का एक चारा घोटालेबाज अफसर (अब दिवंगत)अपने इलाज के लिए आस्टे्रलिया गया था।
अनुमान लगाइए, उसके साथ कितने लोग उसकी देख-रेख के लिए विदेश गए होंगे ?
दो ,तीन,चार या पांच लोग ?
आपकी कल्पना उतने तक ही जा सकती है।
पर, दरअसल उसके साथ करीब तीन दर्जन लोग आस्ट्रेलिया गए थे।
कलकता हवाई अड्डे पर उसे विदा करने के लिए बिहार के एक बड़े नेता जी भी गए थे।
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रांची के डोरंडा कोषागार से पांच साल में पशुपालन विभाग के मद से 139 करोड़ 35 लाख रुपए घोटालेबाजों ने जाली विपत्रों के आधार पर निकाले थे।
एक बार जब कोषागार पदाधिकारी ने निकासी पर एतराज किया,तो ताकतवर घोटालेबाजों ने राज्य सरकार के वित्त विभाग के संयुक्त सचिव एस.एन.माथुर से कोषागार पदाधिकारी को यह कड़ी चिट्ठी (15 दिसंबर, 1993) लिखवा दी कि ‘‘विपत्रों यानी बिल को पारित करने में किस आधार पर आपत्ति की जा रही है ?’’
इस पत्र के बाद कोषागार पदाधिकारी सहम गया।
धुआंधार निकासी फिर शुरू हो गई।
अब आधार समझिए।
अविभाजित बिहार के पशुपालन विभाग का सालाना बजट करीब 75 करोड़ रुपए का था।
यानी, पांच साल में कुल 375 करोड़ रुपए।
पर सिर्फ डोरंडा (रांची) कोषागार से पांच साल में 139 करोड़ 35 लाख रुपए निकाल लिए गए।
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याद रहे कि घोटालेबाजों का अघोषित मुख्यालय रांची ही था।
ऐसे में उस प्रमुख घोटालेबाज के साथ देखरेख के लिए 35 से कम लोग कैसे जाते !
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