नगरों की सघन आबादी को छितराये बिना जाम से मुक्ति नहीं
.......................................
सुरेंद्र किशोर
.............................
खुशखबरी है कि पटना विश्व विद्यालय के साउथ कैंपस के निर्माण के लिए मास्टर प्लान तैयार हो गया है।
इससे अशोक राज पथ पर से आबादी का बोझ कुछ कम होगा।
यदि कुछ महा विद्यालयों को भी कहीं और स्थानांतरित करने की गुंजाइश हो तो उस पर भी विचार होना चाहिए।
जेपी गंगा पथ के बन जाने से भी राहत मिली है।
दरअसल परेशानी का कारण यह है कि एक ही रोड पर कई महत्वपूर्ण संस्थान स्थापित कर दिए जाते हैं।
ऐसा राज्य के अन्य नगरों में भी हुआ है।
पटना के अशोक राजपथ पर पटना विश्व विद्यालय,पटना मेडिकल काॅलेज व अस्पताल, जिला कचहरी तथा कलक्टरी अवस्थित है।
इनमें से कुछ संस्थानों को मुख्य शहर से बाहर भेजा जाना चाहिए।
इधर एक और अच्छी खबर आई है।
पटना के हड़ताली मोड़ के पास के पुराने सरकारी आवासों को तोड़ कर वहां बहुमंजिली इमारतें बनेंगी।
उस सिलसिले में एक बात पर खास तौर पर ध्यान देने की जरुरत है।
नव निर्मित इमारतों में रहने वालों के लिए पार्क और खेल मैदान बने तो लोगों को राहत मिलेगी।
बिहार के अन्य नगरों को भी छितरा देने की जरूरत है ताकि मुख्य नगर दिन भर जाम से परेशान न रहंे।
..................................
विश्वविद्यालयों पर द्वैध शासन
............................
समय आ गया है कि अब देश के विश्व विद्यालयों पर जारी द्वैध शासन को समाप्त कर दिया जाए।
क्योंकि द्वैध शासन के कारण राज्यपालों व राज्य सरकारों के बीच आए दिन अशोभनीय
वाद-विवाद होते रहते हंै।
जानकार लोग बताते हैं कि बेहतर यही होगा कि विश्वविद्यालय या तो पूरी तरह राज्य सरकार के नियंत्रण में रहंे या फिर पूरी तरह केंद्र सरकार के कंट्रोल में।
इससे विश्व विद्यालय शिक्षा की विफलताओं को लेकर एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा देने का किसी पक्ष को मौका नहीं मिलेगा।
राज्यपाल-कुलपति विवाद के पीछे शिक्षा से अधिक दलीय राजनीति होती है।
आजादी के बाद के शुरूआती वर्षों में एक ही दल की सरकारें दोनों जगह होती थीं, इसलिए आपसी विवाद नहीं होता था।
पर,बदली हुई स्थिति में इस समस्या पर अलग ढंग से विचार करने की जरुरत है।
.......................................
प्रवक्ताओं की जानकारी
..................................
संसद के विशेष सत्र को लेकर सोनिया गांधी ने प्रधान मंत्री को पत्र लिखा।
एक टी.वी.डिबेट में भाजपा प्रवक्ता ने यह सवाल उठाया कि वह तो किसी पद पर हैं नहीं।फिर उन्होंने किस हैसियत से पत्र लिखा ?
कांग्रेस प्रवक्ता ने उनका ज्ञान वर्धन करते हुए कहा कि वह कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष हैं।
इस पर भाजपा प्रवक्ता चुप हो गये।
भ्रष्टाचार के हाल के वर्षों के आरोपों की चर्चा होती है तो कांग्रेस के प्रवक्ता गण आए दिन यह कहा करते हैं कि बोफोर्स घोटाले का
क्या हुआ ?
2 -जी घोटाले का क्या हुआ ?
इन घोटालों की प्रतिपक्ष ने बड़ी चर्चा की थी।
उस पर गैर कांग्रेसी दलों के प्रवक्ता चुप हो जाते हैं।
क्यांेकि वे नहीं जानते कि 2 -जी घोटाला संबंधित मुकदमा अब भी दिल्ली हाई कोर्ट में विचाराधीन है।
वे यह भी नहीं जानते कि बोफोर्स घोटाला मामले में एक दलाल के मुम्बई स्थित फ्लैट को आयकर महकमा नीलाम कर चुका है।क्योंकि
बोफोर्स दलाली के पैसों पर आयकर विभाग का टैक्स बनता था।
यानी, प्रवक्ताओं को बहस के लिए बेहतर तैयारी की जरूरत है।
.............................
टिकटार्थी को टका सा जवाब
............................
हर आम चुनाव से ठीक पहले दल बदल की घटनाएं बढ़ जाती है।
अपवादों को छोड़कर आम तौर टिकटार्थी ही अधिक
दल बदल करते हैं।
सन 2024 के लोक सभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बिहार के भी ‘मौसमी पक्षी’ सक्रिय हो गये हैं।
पर,दलों को चाहिए कि वे इसमें सावधानी बरतें।
क्योंकि दल में आने के बाद जब उन्हें टिकट नहीं मिलेगा तो वे तरह -तरह के आरोप लगाते हुए आपके दल से इस्तीफा दे देंगे।उनमें कुछ आरोप बहुत घटिया और मानहानिकारक भी हो सकते हंै।
कई साल पहले मैं एक दल के प्रादेशिक अध्यक्ष के पास बैठा हुआ था।
एक नेता आए। कहा कि आपके दल में शमिल होना चाहता हूं।
प्रदेश अध्यक्ष ने और कोई बात किए बिना पूछ दिया,‘‘आप किस क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते हैं ?’’
आगंतुक ने क्षेत्र का नाम बता दिया।अध्यक्ष जी ने कहा कि वह सीट किसी अन्य नेता के लिए रिजर्व है।आगंतुक उठकर चले गये।
बाद में अध्यक्ष जी ने कहा कि पहले ही बात साफ हो जानी चाहिए अन्यथा टिकट नहीं मिलने पर यही व्यक्ति हमारी पार्टी को न जाने क्या -क्या कहेंगे ।
अन्य दल उस प्रदेश अध्यक्ष की सावधानी की खबर से लाभ उठा सकते हैं।
...............................
और अंत में
.........................
अगले लोक सभा चुनाव के अब बहुत दिन नहीं हैं।
अच्छा है कि उम्मीदवारों के चयन व सीटों के तालमेल पर विचार -विमर्श शुरू हो चुका है।
गैर राजनीतिक हलकों में एक बात कही जा रही है। वह यह कि जो राजनीतिक दल अपने जितने अधिक निवर्तमान सांसदों के टिकट काटेगा,उस दल के विजयी होने की पहले से बेहतर संभावना बनेगी।
........................
काॅलम ‘यदाकदा’
प्रभात खबर
बिहार संस्करण
8 सितंबर 23
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें