तीज के अवसर पर
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जब मेरी पत्नी ने मेरे कहने पर प्रधानाध्यापक
के पद का मोह त्याग दिया था
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सुरेंद्र किशोर
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तीज के पारण से पहले आज सुबह मेरी पत्नी ने मेरे पास आकर मेरे दोनों पैर छूकर मुझे प्रणाम किया।
कल्पना कीजिए,मुझे कैसा लगा होगा !
यही है सनातन ! ऐसा कहां है ?
दुनिया के किस हिस्से में ?
मुझे नहीं मालूम ।
इससे परिवारिक बंधन साल दर साल मजबूत होता जाता है।
वैसे भी उम्र बढ़ने के साथ दोनों को एक दूसरे की अधिक जरूरत रहती है।
एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि मेरी पत्नी भी इस अवसर पर उपवास करती है।मुझे बहुत ‘‘मानती’’ है।
पर,मेरी बात ही नहीं मानती।
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मैंने कहा कि यह तो हर मामले में थोड़ा-बहुत होता है।
एक बार राज्य सभा के सभापति डा.राधाकृष्णन ने भी ऐसी ही बात कही थी।
वे सदन की बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे।
एक सदस्य ने कहा कि मेरी पत्नी मुझे मूर्ख समझती है।
टोकते हुए सभापति ने कहा कि ‘‘सेम हेयर’’।
यानी, मेरी पत्नी भी मुझे मूर्ख समझती है।
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मेरी पत्नी तो मुझे मूर्ख नहीं किंतु अव्यावहारिक जरूर समझती होगी,हालांकि कभी ऐसा उसने कहा नहीं।
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कई साल पहले की बात है।
मेरी पत्नी को वरीयता के आधार पर प्रधानाध्यापक (मिडल स्कूल)के पद पर ज्वाइन करने के लिए लेटर मिला।
मैंने कहा कि तुम ज्वाइन मत करो।
क्योंकि वह पद संभालने के बाद मध्यान्ह भोजन योजना में घोटाला करना ही पड़ेगा।
ऐसा करने के लिए ऊपर से भी दबाव रहता है।
यदि नहीं करोगी तो ऊपर का अधिकारी तुम्हंे झूठे केस में इस तरह फंसा देगा कि मैं भी तुम्हें बचा नहीं पाऊंगा।
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स्वाभाविक ही था,उसने हिचकिचाहट दिखाई।
फिर कहा कि अब तो ज्वाइन करने का लेटर मिल गया है।ज्वाइन तो करना ही पड़ेगा।
मैंने कहा कि ठहरो, मैं बात करता हूं।
तब अंजनी बाबू मुख्य मंत्री के प्रधान सचिव थे।
मंैने उन्हें फोन किया।
आग्रह किया कि आप मेरी पत्नी को सहायक शिक्षिका ही रहने दीजिए।
उन्होंने यह काम कर दिया।
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पति के कहने पर हेड मास्टर कहलाने का लोभ त्याग देना,मामूली बात नहीं है।
पर,उससे हमारा यह संकल्प कायम रह गया कि वैसा पैसा मेरे घर में नहीं आना चाहिए जिसके लिए हमने मेहनत नहीं की।
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पुनश्चः
हेड मास्टर भी क्या करे ?
मिड डे मील में गड़बड़ी सरकारी गोदाम से ही शुरू हो जाती है।
50 किलो के बोरे में 40 किलो अनाज आता है।
कभी -कभी तो सड़ा हुआ रहता है।
ऊपर से ‘मांग’ अलग !
इस योजना ने शिक्षकों की नैतिक धाक को बहुत ‘‘प्रभावित’’ किया है।
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19 सितंबर 23
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