बुधवार, 27 सितंबर 2023

 अधूरे तथ्यों के साथ राजद के मनोज कुमार झा ने 

हाल में राज्य सभा में भगवती देवी को याद किया 

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सुरेंद्र किशोर

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 राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द सन 2018 में ग्वालियर के आई.टी.एम.विश्व विद्यालय में भाषण कर रहे थे।

डा.राम मनोहर लोहिया की स्मृति में भाषण का आयोजन किया गया था।

(विश्वविद्यालय के संस्थापक चांसलर रमा शंकर सिंह इन दिनों भी पुराने समाजवादी नेताओं की स्मृति को जिंदा रखे हुए हैं।इन दिनों वे कर्पूरी ठाकुर पर काम कर रहे हैं।)

 अपने भाषण में राष्ट्रपति कोविन्द ने सफाईकर्मी सुखो रानी बनाम ग्वालियर की महारानी की चर्चा की।

  राष्ट्रपति ने कहा कि समाज सुधारक डा.राम मनोहर लोहिया ने सन 1962 में ग्वालियर की महारानी के खिलाफ सुखो रानी को अपनी पार्टी की ओर से लोक सभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया था।

राष्ट्रपति ने डा.लोहिया को सच्चा समाज सुधारक करार दिया था।

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डा.लोहिया ने यह काम बिहार में भी किया था --सन 1967 में।

उन्होंने पत्थर तोड़ने वाली भगवतिया देवी उर्फ भगवती देवी को उस साल गया जिले के इमाम गंज विधान सभा क्षेत्र में अपनी पार्टी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का उम्मीदवार बनाया।

1967 में कांग्रेस के देवधारी राम से वह सिर्फ तीन हजार मतों से हार गयीं।

पर,भगवती देवी को संसोपा ने सन 1969 में भी बाराचट्टी विधान सभा क्षेत्र से  अपना उम्मीदवार बनाया।

भगवती देवी कांग्रेस उम्मीदवार को करीब साढ़े पांच हजार मतों से हरा कर विजयी र्हुइं।

डा.लोहिया का सन 1967 के अक्तूबर में निधन हो गया।पर,उन्हीं की लाइन पर बिहार के समाजवादी कुछ साल तक चलते रहे।

1967 में चुनाव हारने के बाद ‘‘भगवतिया देवी’’ दुबारा पत्थर तोड़ने लगी थीं।

सन 1969 में बिहार संसोपा के शीर्ष नेता थे--कर्पूरी ठाकुर और रामानन्द तिवारी।

लालू प्रसाद सन 1969 में बिहार राज्य युवजन सभा के संयुक्त सचिव थे।(तब एक संयुक्त सचिव मैं भी था।)

भगवती देवी सन 1972 में विधान सभा का चुनाव हार गयीं।हार के बाद फिर पत्थर तोड़ने लगी थीं या नहीं, यह मुझे नहीं मालूम।

पर 1977 में विधान सभा का चुनाव वह जीत गयीं।

उन्हीं दिनों सांसदों और विधायकों के लिए पेंशन का प्रावधान हुआ।

लालू प्रसाद ने सन 1996 में पूर्व विधायक भगवती देवी को गया से टिकट देकर लोक सभा पहुंचा दिया।सन 1980 से 1996 तक उन्हें पेशन मिल रही थी।इसलिए तब उन्हें पत्थर नहीं तोड़ना पड़ता था। 

संसद तक पहुंचाने का श्रेय तो लालू प्रसाद को मिलना ही चाहिए।

किंतु एक पत्थर तोड़ने वाली को राजनीति की मुख्य धारा में लाने का श्रेय  लोहिया और कर्पूरी ठाकुर आदि को जाता है।

इसलिए मनोज जी,

समाजवादी आंदोलन का पूरा इतिहास पढ़िए।

लालू प्रसाद ने नब्बे के दशक में सामाजिक न्याय के क्षेत्र में युगांतरकारी काम किया है।उनको श्रेय देने के लिए अन्य मुद्दे भी हो ही सकते हैं।

  पर,सारा श्रेय लालू प्रसाद को ही दीजिएगा तो आप समाजवादी इतिहास के साथ अन्याय कीजिएगा।

(यह काम श्रीमान मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे कांग्रेसियों को करने दीजिए जो कहते हैं कि आजादी के समय भारत में तो सूई भी नहीं बनती थी।सारा काम आजादी के बाद में जवाहरलाल नेहरू ने किया।)

चूंकि आप दिल्ली विश्व विद्यालय में पढ़ाते हैं,इसलिए अनेक लोग आपको  अध्ययनशील मानकर आपकी बातों पर विश्वास करेंगे।

  यदि किसी ने सिर्फ राज्य सभा की कार्यवाही को ही आधार मान कर भगवती देवी का इतिहास लिखा तो वह गलत साबित होगा। 

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याद रहे कि जिन्हें आपने भगवतिया देवी कहा है ,उनका सही नाम भगवती देवी है।

चुनाव आयोग के रिकाॅर्ड में यही नाम है।हां,यह बात सच है कि पहले लोगबाग उन्हें भगवतिया देवी कहते थे जब वह पत्थर तोड़ती थीं।

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27 सितंबर 23


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