सोमवार, 21 जनवरी 2019

हिंदुत्व पर सुप्रीम कोर्ट के 1995 के फैसले के धमाके की गूंज अब भी कायम



    सन 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हिंदुत्व धर्म नहीं,बल्कि जीवन शैली है।
मुख्य न्यायाधीश जे.एस.वर्मा के नेतृत्व वाले खंडपीठ के इस जजमेंट की गूंज अब भी बाकी है।
 इस निर्णय को पलटने की कोशिश अब तक विफल रही है।इस बीच गत साल पूर्व प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह ने ए.बी.बर्धन स्मारक भाषणमाला में बोलते हुए इस निर्णय को गलत बताया था।
  हालांकि जस्टिस वर्मा ने इस्लाम धर्म के विशेषज्ञ मौलाना वहीदुद्दीन खान को उधृत करते हुए तब कहा था कि हिंदुत्व का मतलब भारतीयकरण हो गया है।
  महाराष्ट्र विधान सभा के दो शिव सेना सदस्यों की चुनाव याचिकाओं  पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 1995 को जो ऐतिहासिक निर्णय दिया,उसकी छिटपुट चर्चा अक्सर चुनावों के समय हो जाती है जब प्रचार में कोई हिंदुत्व शब्द का इस्तेमाल करता है।संभव है कि अगले चुनावमें भी हो !
उससे पहले बंबई हाईकोर्ट ने  शिव सेना विधायकों के चुनावों को रद कर दिया था।आरोप था कि उनके प्रचारकों बाल ठाकरे और प्रमोद महाजन ने सांप्रदायिक घृणा फैलाई थी और धर्म के नाम पर वोट मांगे थे।
सुप्रीम कोर्ट ने एक विधायक के खिलाफ हाई कोर्ट का निर्णय तो कायम रखा ,पर दूसरे विधायक के मामले में निर्णय उलट दिया।
वैसे उस मशहूर जजमेंट से पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक शिवसेना नेता को उनके इस बयान के लिए फटकारा था कि महाराष्ट्र देश का पहला ‘हिंदू राज्य’ होगा। 
 एक तरफ जहां कई हलकों में इस जजमेंट की आलोचना हुई,वहीं तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा था कि ‘अदालत ने हिंदुत्व की हमारी विचार धारा पर न्यायिक मुहर लगा दी।’         
  स्वाभाविक तौर पर ही राजनीतिक हलकों में इस फैसले पर मिली जुली प्रतिक्रिया हुई।न्यायिक क्षेत्र में भी यही हाल रहा।
मशहूर वकील पालकीवाला ने इस निर्णय पर अचरज जाहिर करते हुए  कहा कि इस पर पुनर्विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट का 11 सदस्यीय पीठ कायम होना चाहिए।
हालांकि शिव सेना सुप्रीमो बाल ठाकरे इस निर्णय से संतुष्ट नहीं थे।
उन्होंने कहा कि हमें कुछ हद तक ही इंसाफ मिला है।
क्योंकि पाकिस्तानी मुसलमानों और पाकिस्तान समर्थक मानसिकता वाले इस देश के  मुसलमानों का मामला कायदे से सुप्रीम कोर्ट के सामने नहीं आया।
दूसरी ओर मशहूर वकील ननी पालकीवाला ने कहा कि यह दो दशक पहले आपातकाल की वैधानिता को दी गयी चुनौती को याद दिलाता है।तब देश के सात हाई कोर्ट इंदिरा गांधी के खिलाफ थे,पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के सामने समर्पण कर दिया था।
याद रहे कि उस केस के सिलसिले में एटाॅर्नी जनरल नीरेन डे ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि यदि शासन आज किसी की जान भी ले ले तो भी उसके खिलाफ अदालत की शरण नहीं ली जा सकती।क्योंकि इमरजेंसी में मौलिक अधिकार स्थगित कर दिया गया है।सुप्रीम कोर्ट ने नीरेन डे की बात मान ली।  
 हिंदुत्व पर 1995 के जजमेंट के बारे में भाजपा नेताओं के वकील अरूण साठे ने कहा था कि चुनाव कानून वाकई बहुत तकनीकी है।ऐसे मामलों में आरोपों को पूरी तरह साबित होना जरूरी है।
  विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष विष्णु हरि डालमिया ने इस जजमेंट पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि हिंदुत्व के प्रचार में कानूनी बाधा अब दूर हो गयी है।
 स्वाभाविक ही है कि इस पर भाजपा विरोधी दलों व बुद्धिजीवियों की  प्रतिक्रियाएं विरोध में थीं।
चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का था,इसलिए भाजपा विरोधी दल व अन्य संगठन संभल कर सार्वजनिक तौर पर बोले।पर उन्होंने इस जजमेंट को  उलटवा देने का प्रयास जारी रखा।
 तिस्ता सेतलवाड ने सुप्रीम में याचिका भी दायर की ।पर उन्हें सीमित सफलता ही मिली।
 सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कायम रह गया कि ‘हिंदुत्व का मतलब भारतीय करण है और उसे धर्म जैसा नहीं माना जाना चाहिए।’पर इतना जरूर कहा कि धार्मिक भावनाएं जगा कर वोट लेना गलत है।
क्या इस जजमेंट ने वैसे लोगों के बीच भी भाजपा व संघ परिवार की स्वीकार्यता बढ़ाई जो तब तक उनसे अलग थे ?
यह यक्ष प्रश्न है जिसका अब तक कोई ठोस व प्रामाणिक जवाब सामने नहीं आया है।
@मेरा यह लेख फस्र्टपोस्ट हिन्दी में प्रकाशित @
    

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