बुधवार, 2 जनवरी 2019

एक ऐसी पेंशन योजना जिसमें बढ़ोत्तरी 
का कोई प्रावधान ही नहीं
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कर्मचारी पेंशन स्कीम, 1995 के तहत मुझे हर माह 1231 रुपए मिलते हैं।
यह राशि 2005 में तय हुई थी जिसमें आज तक कोई परिवत्र्तन नहीं हुआ।
हां, इसे उन लोगों के लिए न्यूनत्तम 1000 रुपए जरूर किया गया जिन्हें उससे भी कम मिलते थे।
संभवतः दुनिया का यह एक मात्र पेंशन स्कीम है जिसमें बढ़ोत्तरी का कोई प्रावधान ही नहीं है।
इस पेंशन के लिए हम कर्मचारियों ने भी अपने सेवाकाल में पेंशन फंड में हर माह आर्थिक योगदान किया है।
यदि योगदान के पैसे हमने सेवा निवृत्ति के समय ही उठा लिए होते तो हम फायदे में रहते या घाटे में ,मैं यह कह नहीं सकता।
 कर्मचारी भविष्य निधि पेंशनर्स संघर्ष समिति को 6 दिसंबर 2017 को केंद्रीय श्रम मंत्री ने आश्वासन दिया था कि न्यूनत्तम पेंशन हर माह 7500 रुपए कर देने की आपकी मांग को प्रधान मंत्री के सामने रखा जाएगा।
पर अब तक उस दिशा में क्या हुआ, यह पता नहीं चला।
कुछ माह पहले जदयू के हरिवंश ने भी यह मामला राज्य सभा में मजबूती से उठाया था।
श्रमजीवी पत्रकार सहित देश के गैर सरकारी क्षेत्र के कुल 60 लाख रिटायर कर्मचारी यह पेंशन उठाते हैं।इनमें से 40 लाख कर्मचारियों को हर माह 15 सौ रुपए से भी कम मिलते हैं।
   बिहार सरकार ने भी कुछ साल पहले पत्रकार पेंशन योजना  शुरू करने की घोषणा की थी।मैंने उसके लिए आवेदन नहीं किया क्योंकि मैंने बिहार सरकार की कोई सेवा नहीं की है।मैं तो वहीं से बढ़ोत्तरी की मांग करूंगा जहां के पेंशन फंड में मेरा कुछ आर्थिक योगदान हुआ है।
हालांकि बिहार सरकार की पेंशन योजना को मैं गलत नहीं मानता।उससे पत्रकारों को भी राहत मिलती और सरकार को भी यश मिलता।
पर, पता नहीं क्यों वह घोषित योजना वर्षों बाद भी लागू नहीं हो सकी है।सरकारी काम ऐसे ही चलता है !
  अब पत्रकारों की स्थिति व उनका योगदान समझिए।
 आज का ही अखबार आप देख रहे हैं।हर दिन का अखबार तैयार करने के लिए पत्रकार अपनी पूरी प्रतिभा के साथ रात -दिन खटते हैं ।तभी आपके पढ़ने लायक  एक अखबार तैयार होता है ।जिस दिन अखबार नहीं मिलता ,उस दिन पाठकों की बेचैनी देखते बनती है।उन पाठकों में सत्ताधारी व प्रतिपक्षी नेता भी शामिल  हैं।
फिर भी श्रमजीवी पत्रकारों की ऐसी उपेक्षा ! ! 
क्योंकि वे रिटायर हो गए ?
 पेंशन में कोई बढ़ोत्तरी तक नहीं ?
कमाल की होती हैं हमारी सरकारें !
मैं तो स्वतंत्र लेखन करके अपने जरूरी खर्चे निकाल लेता हूंं।पर जिन रिटायर पत्रकारों को यह सुविधा उपलब्ध नहीं है या जो यह काम नहीं करना चाहते,उनकी आर्थिक स्थिति पर गौर कीजिए।
मेरा भी तब क्या होगा, जब हाथ-पांव-दिमाग सुस्त पड़ने लगेंगे ? 
   

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