बिहार राजद अध्यक्ष डा.राम चंद्र पूर्वे ने कहा है कि सवर्ण आरक्षण पर पूर्व कें्रदीय मंत्री रघुवंश सिंह का दिया गया बयान उनका व्यक्तिगत बयान है।
बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि राजद गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के पक्ष में है,पर प्रावधानों पर पार्टी को आपत्ति है।
उधर अनुकूल राजनीतिक अवसर देख कर उप मुख्य मंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि डा.रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे नेता को राजद में समुचित सम्मान नहीं मिल रहा है।हम उन्हें एन.डी.ए.में उचित सम्मान देंगे।
पता नहीं रघुवंश जी सुशील मोदी के आॅफर को स्वीकार करेंगे या नहीं,पर एक बात साफ है कि उनका चुनावी भविष्य अब अनिश्चित सा हो गया है।बेहतर है कि वे अपने चुनाव क्षेत्र के सवर्ण मतदाताओं के बीच जाकर उनका मन एक बार फिर टटोलें।
लगता है कि प्रारंभिक तौर पर उनका मन जानने के बाद ही उन्होंने परसों एक ऐसा बयान दे दिया था जिसका पूर्वे जी को खंडन करना पड़ा।
फिर या तो डा.लोहिया के शब्दों पिछड़ों के लिए रघुवंश जी खाद बनें या अपनी प्रतिभा के बेहतर इस्तेमाल के लिए कोई और राह चुनें।हालांकि यह सब तो उन पर ही निर्भर करता है।पर एक बात तय है कि उनके जैसे ईमानदार व कत्र्तव्यनिष्ठ नेता के राजनीतिक कैरियर का अवसान देख कर अनेक लोगों को अच्छा नहीं लगेगा।
राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार संकेत यह है कि राजद अगले लोक सभा चुनाव को एक बार फिर अगड़ों और पिछड़ों के बीच की लड़ाई में बदलना चाहता है।उसने 2015 में भी ऐसा ही किया था।
तब तो जदयू के साथ के कारण 80 विधान सभा सीटें मिल गयीं थीं,पर इस बार वह स्थिति नहीं है।
गत साल मार्च में हुए उप चुनाव के नतीजे राजद के लिए कोई शुभ संकेत नहीं देते।
यानी राजद को अब सिर्फ एम वाई से काम नहीं चलेगा।
सिर्फ उसी से निर्णायक जीत मिलने वाली नहीं।यदि लोक सभा चुनाव में बिहार में राजद ने अगड़ा बनाम पिछड़ा करने की कोशिश की तो राजद के सवर्ण उम्मीदवारों की स्थिति अनिश्चित हो जाने का खतरा है।
10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण ने वह पृष्ठभूमि तैयार भी कर दी है।
बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि राजद गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के पक्ष में है,पर प्रावधानों पर पार्टी को आपत्ति है।
उधर अनुकूल राजनीतिक अवसर देख कर उप मुख्य मंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि डा.रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे नेता को राजद में समुचित सम्मान नहीं मिल रहा है।हम उन्हें एन.डी.ए.में उचित सम्मान देंगे।
पता नहीं रघुवंश जी सुशील मोदी के आॅफर को स्वीकार करेंगे या नहीं,पर एक बात साफ है कि उनका चुनावी भविष्य अब अनिश्चित सा हो गया है।बेहतर है कि वे अपने चुनाव क्षेत्र के सवर्ण मतदाताओं के बीच जाकर उनका मन एक बार फिर टटोलें।
लगता है कि प्रारंभिक तौर पर उनका मन जानने के बाद ही उन्होंने परसों एक ऐसा बयान दे दिया था जिसका पूर्वे जी को खंडन करना पड़ा।
फिर या तो डा.लोहिया के शब्दों पिछड़ों के लिए रघुवंश जी खाद बनें या अपनी प्रतिभा के बेहतर इस्तेमाल के लिए कोई और राह चुनें।हालांकि यह सब तो उन पर ही निर्भर करता है।पर एक बात तय है कि उनके जैसे ईमानदार व कत्र्तव्यनिष्ठ नेता के राजनीतिक कैरियर का अवसान देख कर अनेक लोगों को अच्छा नहीं लगेगा।
राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार संकेत यह है कि राजद अगले लोक सभा चुनाव को एक बार फिर अगड़ों और पिछड़ों के बीच की लड़ाई में बदलना चाहता है।उसने 2015 में भी ऐसा ही किया था।
तब तो जदयू के साथ के कारण 80 विधान सभा सीटें मिल गयीं थीं,पर इस बार वह स्थिति नहीं है।
गत साल मार्च में हुए उप चुनाव के नतीजे राजद के लिए कोई शुभ संकेत नहीं देते।
यानी राजद को अब सिर्फ एम वाई से काम नहीं चलेगा।
सिर्फ उसी से निर्णायक जीत मिलने वाली नहीं।यदि लोक सभा चुनाव में बिहार में राजद ने अगड़ा बनाम पिछड़ा करने की कोशिश की तो राजद के सवर्ण उम्मीदवारों की स्थिति अनिश्चित हो जाने का खतरा है।
10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण ने वह पृष्ठभूमि तैयार भी कर दी है।
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