कर्पूरी ठाकुर की स्मृति में
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सत्तर के दशक की बात है।समाजवादी कार्यकत्र्ता के
रूप में मैं कर्पूरी ठाकुर का निजी सचिव था।
कर्पूरी जी तब बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे।
तब नेता, प्रतिपक्ष को कोई खास सुविधा हासिल नहीं थी।सिर्फ विधान मंडल भवन में बैठने का एक बड़ा कमरा और सरकार की ओर से एक स्टेनो टाइपिस्ट।
एक दिन कर्पूरी जी ने मुझे एक बिल दिया और कहा कि जाकर एकाउंट सेक्सन में दे दीजिए।
बिल करीब छह सौ रुपए का था।
मैंने बिहार विधान सभा सचिवालय की उस शाखा के किरानी को वह बिल दिया।
उस घाघ किरानी ने बिल को पढ़ा और मुझे ऊपर से नीचे तक निहारा । कहा, कैसे -कैसे लोग कुत्र्ता -पायजामा पहन कर बड़े -बड़े नेताओं के साथ लग जाते है !
आपको कुछ एहसास है ? कर्पूरी जी जैसे बड़े नेता का काम इस छह सौ से कैसे चलेगा ?
जाइए, इसे 13 सौ का बना कर जल्दी ले लाइए।’
मुझे तो इन सब चीजों का यानी बिल ऊपर-नीचे करने का कोई ज्ञान था नहीं ।
मैं लौटकर कर्पूरी जी के पास गया।उनसे कहा कि ‘किरानी कह रहे हैं कि इसे 13 सौ का बना कर लाइए।’
इस पर कर्पूरी जी बिफर पड़े ।गुस्से में बोले, ‘लाइए बिल ! मुझे नहीं पास कराना ।ये लुटेरे हैं,बेईमान हैं।राज्य को लूट लेंगे।’
बाद में उस बिल का क्या हुआ,मुझे नहीं मालूम।
हां, वह किरानी बाद में बिहार के एक ऐसे सत्ताधारी नेता के स्टाफ का सदस्य बन गया जो बाद में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गया।सही जगह पर सही व्यक्ति पहुंच गया था !
वैसे भी मैं मात्र डेढ़ साल तक ही कर्पूरी जी के साथ रहा।
मुझे जब लगा कि राजनीति के लिए मैं अनफिट व्यक्ति हूं तो मुख्य धारा की पत्रकारिता में चला गया ।
पहले भी मैं पत्रकारिता करता था,पर वह समाजवादी धारा की पत्रकारिता थी।
कर्पूरी जी का कल धूमधाम से जन्म दिन मनाया जाएगा।
अधिकतर नेता लोग इस चुनावी साल में उन्हें अति पिछड़ों के नेता के रूप में ही पेश करेंगे ।
पर उनके मौलिक गुणों को याद करना अधिक जरूरी है ताकि शायद उससे नई पीढ़ी प्रेरित हो।
एक बात मैं कह सकता हूं ।करीब डेढ़ साल तक रात- दिन साथ रहने का मेरा अनुभव यह रहा कि उनके जैसा संयमी, ईमानदार व शालीन नेता मैंने नहीं देखा।
वे सिर्फ अपने पुत्र और नौकर को ही तुम कह कर पुकारते हैं।
अन्य सबको आप बोलते थे।निधन के बाद वे निजी संपत्ति के नाम पर गांव की वही पुश्तैनी झोपड़ी छोड़ गए जो उन्हें पूर्वज से मिली थी।
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सत्तर के दशक की बात है।समाजवादी कार्यकत्र्ता के
रूप में मैं कर्पूरी ठाकुर का निजी सचिव था।
कर्पूरी जी तब बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे।
तब नेता, प्रतिपक्ष को कोई खास सुविधा हासिल नहीं थी।सिर्फ विधान मंडल भवन में बैठने का एक बड़ा कमरा और सरकार की ओर से एक स्टेनो टाइपिस्ट।
एक दिन कर्पूरी जी ने मुझे एक बिल दिया और कहा कि जाकर एकाउंट सेक्सन में दे दीजिए।
बिल करीब छह सौ रुपए का था।
मैंने बिहार विधान सभा सचिवालय की उस शाखा के किरानी को वह बिल दिया।
उस घाघ किरानी ने बिल को पढ़ा और मुझे ऊपर से नीचे तक निहारा । कहा, कैसे -कैसे लोग कुत्र्ता -पायजामा पहन कर बड़े -बड़े नेताओं के साथ लग जाते है !
आपको कुछ एहसास है ? कर्पूरी जी जैसे बड़े नेता का काम इस छह सौ से कैसे चलेगा ?
जाइए, इसे 13 सौ का बना कर जल्दी ले लाइए।’
मुझे तो इन सब चीजों का यानी बिल ऊपर-नीचे करने का कोई ज्ञान था नहीं ।
मैं लौटकर कर्पूरी जी के पास गया।उनसे कहा कि ‘किरानी कह रहे हैं कि इसे 13 सौ का बना कर लाइए।’
इस पर कर्पूरी जी बिफर पड़े ।गुस्से में बोले, ‘लाइए बिल ! मुझे नहीं पास कराना ।ये लुटेरे हैं,बेईमान हैं।राज्य को लूट लेंगे।’
बाद में उस बिल का क्या हुआ,मुझे नहीं मालूम।
हां, वह किरानी बाद में बिहार के एक ऐसे सत्ताधारी नेता के स्टाफ का सदस्य बन गया जो बाद में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गया।सही जगह पर सही व्यक्ति पहुंच गया था !
वैसे भी मैं मात्र डेढ़ साल तक ही कर्पूरी जी के साथ रहा।
मुझे जब लगा कि राजनीति के लिए मैं अनफिट व्यक्ति हूं तो मुख्य धारा की पत्रकारिता में चला गया ।
पहले भी मैं पत्रकारिता करता था,पर वह समाजवादी धारा की पत्रकारिता थी।
कर्पूरी जी का कल धूमधाम से जन्म दिन मनाया जाएगा।
अधिकतर नेता लोग इस चुनावी साल में उन्हें अति पिछड़ों के नेता के रूप में ही पेश करेंगे ।
पर उनके मौलिक गुणों को याद करना अधिक जरूरी है ताकि शायद उससे नई पीढ़ी प्रेरित हो।
एक बात मैं कह सकता हूं ।करीब डेढ़ साल तक रात- दिन साथ रहने का मेरा अनुभव यह रहा कि उनके जैसा संयमी, ईमानदार व शालीन नेता मैंने नहीं देखा।
वे सिर्फ अपने पुत्र और नौकर को ही तुम कह कर पुकारते हैं।
अन्य सबको आप बोलते थे।निधन के बाद वे निजी संपत्ति के नाम पर गांव की वही पुश्तैनी झोपड़ी छोड़ गए जो उन्हें पूर्वज से मिली थी।
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