शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

बात बहुत पुरानी है।
एक टोपी बेचने वाला अपनी टोपियों के गट्ठर के साथ 
दोपहर एक पेड़ के नीचे सो गया।
 उस पेड़ के ऊपर बहुत सारे बंदर थे।
वे एक -एक कर नीचे उतरे और एक -एक टोपी लेकर पेड़ पर जा बैठे।
टोपी वाले के सिर पर एक टोपी बची थी।
उसने बंदरों को दिखा कर वह टोपी अपने सिर से उतार कर जमीन पर फेंक दी।
बंदर तो नकल करते हैं।
बारी- बारी से सभी बंदरों ने अपनी -अपनी टोपियां जमीन पर फेंक दी।टोपी वाले ने टोपियां समेटीं और वह आगे निकल पड़ा।
   टोपी वाले ने अपने पुत्र को यह कहानी बता रखी थी।
टोपी वाले का बेटा भी एक दिन उसी रास्ते टोपी  बेचने निकला।
उसी पेड़े के नीचे जाकर सो गया।
बंदरों ने फिर वही काम दुहराया।
उसी उम्मीद में जूनियर  टोपी वाले ने भी अपने सिर की टोपी जमीन पर फेंक दी।
पर इस बीच बंदरों ने शिक्षा ग्रहण कर ली थी।एक बंदर पेड़ से नीचे उतरा और वह टोपी भी लेकर ऊपर चला गया।
  यानी इस बीच बंदर ने तो शिक्षा ग्रहण कर ली थी।पर टोपी वाले ने नहीं।
 बहुत पहले यह कहानी मैंने आचार्य रजनीश से सुनी थी।
 अब आज के बारे में सोचिए।
  जयचंद ने पृथ्वीराज चैहान के सफाए में  मोहम्मद गोरी की मदद की थी।पर जयचंद का सफाया कैसे हुआ ? कोई कल्पना कर सकता है कि खुद गोरी ने जयचंद का भी काम तमाम कर दिया था ?
 हां, ऐसा ही हुआ था।
यह एक ऐसा प्रकरण है जिससे शिक्षा ग्रहण की जा सकती थी।
 शिक्षा यह कि कैसे -कैसे लोगों की हमें मदद करनी चाहिए और कैसे -कैसे लोगों की मदद बिलकुल नहीं।
 पर लगता है कि हम में से कम ही लोगों ने ऐसी कोई शिक्षा ग्रहण की है।

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