गुरुवार, 3 जनवरी 2019

 आतंकी तत्वों से हमदर्दी की आदत--सुरेंद्र किशोर
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   हाल में दिल्ली के जाफराबाद और उत्तर प्रदेश के अमरोहा से एनआइए ने एक मौलवी और इंजीनियरिंग छात्र सहित दस लोगों को देश के खिलाफ आतंकी साजिश रचने के आरोप में  गिरफ्तार किया। 
    उनकी योजना देश को दहलाने और कुछ हस्तियों को नुकसान पहुंचाने की थी।बताया जा रहा है कि ये लोग आइएस से प्रेरित थे।हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि अतीत में प्रतिबंधित आतंकी संगठन ‘सिमी’ के साथ इस देश के कुछ दलों और नेताओं का  स्नेह-समर्थन का  संबंध रहा है।
   संभवतः ऐसी ‘उर्वर भूमि’ देख-सुन कर ही अबु बकर अल बगदादी के समर्थकों ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी हो।
नतीजतन यह मामला सामने आया।
पता नहीं, इस देश में अभी और कहां-कहां अमरोहा या जाफराबाद पल रहा है !
  देखा जाए तो  सिमी, खलीफा के शासन का पक्षधर था और बगदादी का आइ.एस. भी।
      1977 में अलीगढ़ में गठित छात्र संगठन सिमी अपने प्रेस इंटरव्यू में साफ-साफ कहता रहा कि हम हथियारों के बल पर इस देश में इस्लामिक शासन कायम करना चाहते हंै।ं
स्थापना के समय सिमी का संबंध जमात ए इस्लामी से था।
लेकिन  जब उसने  इस्लाम के जरिए भारत की मुक्ति का नारा दिया तो 1986 में जमात ए इस्लामी ने सिमी से अपना नाता तोड़ लिया।
इसके बावजूद कुछ तथाकथित सेक्यूलर दलों के बड़े नेतागण उसे छात्रों का निर्दोष संगठन बताने लगे। जब उस पर 2001 में प्रतिबंध लगा तो कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद सिमी के बचाव  में सुप्रीम कोर्ट में खड़े हो गए।खुर्शीद उस समय उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे।
     इसके अलवा बिहार,उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के कई बड़े नेताओं ने भी खुलेआम सिमी का बचाव करते हुए कहा कि सिमी एक निर्दोष संगठन है।
2008 में दिल्ली हाईकोर्ट के ट्रिब्यूनल ने सिमी पर लगे प्रतिबंध को समाप्त कर दिया तो सपा नेता मुलायम सिंह यादव और राजद नेता लालू प्रसाद ने ट्रिब्यूनल के निर्णय का स्वागत किया।लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के निर्णय को रद कर दिया।उसके बाद भी लालू प्रसाद ने प्रतिबंध हटाने की वकालत की।
     मुलायम सिंह ने इसी तरह की मांग करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में सिमी ने कोई आतंकी कार्रवाई नहीं की है।पर सिमी की हिंसक और देशद्रोही करतूतों को ध्यान में रखते हुए पूर्ववर्ती केंद्र सरकार@कांग्रेसनीत सरकार@ ने सिमी पर से प्रतिबंध नहीं हटाया।
चूंकि हमारे यहां आतंकियों का खुलेआम समर्थन करने वालों के लिए किसी तरह की सजा का प्रावधान नहीं है,इसलिए भी उन लोगों ने अपना काम जारी रखा है।  
यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी के नेतृत्व में भाजपा 
का शिष्टमंडल 19 अगस्त, 2008 को चुनाव आयोग दफ्तर गया था।
 शिष्टमंडल ने आयोग से मांग की थी कि सिमी जैसे चरमपंथी संगठन का पक्ष  लेने वाले राजनीतिक  दलों की मान्यता खत्म की जाए।परंतु यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी जैसे नेता आज चुप हैं क्योंकि अब वे भाजपा में नहीं हैं।
      इस देश में पार्टी बदल जाने पर देश की रक्षा के प्रति नेताओं की गंभीरता में भी फर्क आ जाता है।
 सिमी की पत्रिका ‘इस्लामिक मूवमेंट’@सितंबर 1999@ के  संपादकीय ने सेक्यूलर लोकतंत्र के बजाए जेहाद और शहादत की अपील की।
सिमी @अहमदाबाद@के जोनल सेके्रट्री साजिद मंसूरी ने एक अंग्रेजी अखबार टाइम्स आॅफ इंडिया  @30 सितंबर 2001@से कहा था  कि ‘जब भी हम सत्ता में आएंगे ,हम मंदिरों को नष्ट कर देंगे और वहां मस्जिद बनाएंगे।’
 इसी तरह ‘सिमी-संघर्ष यात्रा के 25 वर्ष’ नामक पुस्तिका में सिमी ने लिखा था कि ‘राष्ट्रवाद खिलाफत में सबसे बड़ी बाधा है।’
       सिमी बिहार जोन के सचिव रियाजुल मुसाहिल ने 20 सितंबर 2001 को कहा था कि ‘कुरान हमारा संविधान है।हम भारतीय संविधान से बंधे हुए नहीं हैं।हम भारत सहित पूरी दुनिया में खलीफा का शासन चाहते हैं।’
    अहमदाबाद धमाके के बाद पकड़े गए सिमी सदस्य अबुल बशर ने बताया कि सिमी की इस नीति से प्रभावित हूं कि लोकतांत्रिक तरीके से इस्लामिक शासन संभव नहीं।उसके लिए एकमात्र रास्ता जिहाद है।
इसके बावजूद कांग्रेसी नेता डा.शकील अहमद ने कहा था कि गुजरात दंगे के विरोध स्वरूप इंडियन मुजाहिदीन यानी आइएम का गठन हुआ।
जबकि  हकीकत यह है कि अनेक हिंसक कारनामों की खबरों के बीच 2001 में जब केंद्र सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध लगाया तो सिमी के नेताओं ने 2002 में इंडियन मुजाहिदीन बना लिया।
2002 के गुजरात दंगे से बहुत पहले सिमी एलान कर चुका था कि हमारा उद्देश्य हथियार के बल पर भारत में इस्लामिक शासन कायम करने का है।हमारे आदर्श ओसामा बिन लादेन हैं।माना जाता है कि आइ एम के मोस्ट वांटेड आतंकी अब्दुल सुभान कुरैशी उर्फ लादेन और उसके साथियों ने पाकिस्तान के पैसे के बल पर इंडियन मुजाहिदीन की जड़ें जमाईं।
    26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में एक साथ 21 बम विस्फोट हुए जिनमें 56 लोगों की जान गई थीं।
उस विस्फोट की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन ने ली थी।दरअसल सिमी के सदस्य ही आइ एम में सक्रिय हो गए थे।
यह तथ्य सिमी और इंडियन मुजाहिदीन की कार्यशैली को समझने के लिए पर्याप्त होना चाहिए।फिर भी कुछ कथित सेक्युलर दलों के नेताओं ने सिमी से संबंध जारी रखा।
याद रहे कि 2012 में पश्चिम बंगाल के तत्कालीन डी.जी.पी.एन.मुखर्जी ने कहा था कि सिमी के जरिए आई.एस.आई.ने माओवादियों से तालमेल बना रखा है।
इसके अलावा हाल में  केरल पुलिस ने वहां के हाई कोर्ट को यह बताया है कि पोपुलर फं्रट आॅफ इंडिया, सिमी का ही नया रूप है।
 पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी जब गत वर्ष  पी.एफ.आई. से जुड़े महिला संगठन के कार्यक्रम में केरल गए थे,तो उस पर भारी विवाद हुआ था। 
इस पृष्ठभूमि में एनआइए की ओर से की गई गिरफ्तारी को देखना मौजूं होगा।
 दुख की बात है कि आइएस की बर्बरता की खबरें मिलते जाने पर भी राजनीतिक कारणों से कई दलोें में कोई खास चिंता नहीं देखी जा रही है।
तथाकथित सेक्यूलर बुद्धिजीवी भी बेपरवाह हैं।कुछ तो इस पर एनआइए का मजाक उड़ाने के लिए सक्रिय हो गए कि उसने सुतली बम बरामद किए।
यह एक तरह से राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति प्रदर्शित की जाने वाली घोर अगंभीरता ही है।
इस अगंभीरता से यही प्रकट हुआ कि अपने देश में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े सवालों को किस तरह संकीर्ण राजनीतिक चश्मे से देखने की आदत भी पनपने लगी है।
@ 3 जनवरी , 2019 के  दैनिक जागरण में प्रकाशित@ 

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