‘कृतघ्न’ कांग्रेसी अब सोनिया को यह उपदेश दे रहे हैं कि
वह परिवार के मोह से ऊपर उठें।
अरे लेटर बम वालो,कांग्रेस परिवारवाद से कब ऊपर थी ?!!
जब कांग्रेस सत्ता में थी,तब तो आपने ऐसी कोई चिट्ठी नहीं लिखी थी ?
क्यों ?
कारण लोग समझ रहे हैं।
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कांग्रेस सुप्रीमो पर लेटर फोड़ने वाले खुद को धोखा दे रहे हैं या जनता को ?कुछ लोग तो उन्हें कृतघ्न भी कह रहे हैं।
अब वे सांनिया गांधी को उपदेश दे रहे हैं कि आप परिवार के मोह से ऊपर उठिए।
क्या ये लोग नहीं जानते कि सन 1928-29 से लेकर आज तक नेहरू-इंदिरा परिवार कभी परिवारवाद के मोह से ऊपर नहीं उठ पाया ?
इसके बावजूद लेटर बम फेंकने वाले तीसमार खान लोग व उनके ‘पूर्ववर्ती तब कहां थे जब कांग्रेस सत्ता में थी ?
मनमोहन सिंह के 10 साल के शासनकाल में इन तीसमार खानों ने सोनिया गांधी पर दबाव डालकर महा घोटाला दर -महा घोटालों को रोकने के लिए एक भी पत्र लिखा ?
जब कांग्रेस नेतृत्व अतिवादी मुस्लिमों के तुष्टिकरण में लगी हुई थी,तब ये तीसमार खान कहां थे ?
क्या इन दो मुद्दों पर अपना रवैया बदले बिना कांग्रेस का पुनरुद्धार संभव है ?
क्या नेतृत्व बदल देने मात्र से ये दो ‘नीतियां’ बदल जाएंगी ?
अरे भई,परिवारवाद से ऊपर उठने का उपदेश देने से पहले कांग्रेस का इतिहास जरा पढ़ लेते !
नहीं पढ़े तो मैं संक्षेप में उसकी हल्की झलक यहां पेश कर रहा हूं।
मुलायम सिंह यादव परिवार जब उत्तर प्रदेश में सत्ता में थी तो यह खबर आई कि
उनके परिवार के 25 सदस्यों को विभिन्न सरकारी पदों पर बैठाया गया है।
मैंने लखनऊ के एक वरिष्ठ पत्रकार से कहा कि इस परिवार ने तो इस देश का रिकाॅर्ड तोड़ दिया।
उस पर उन्होंने कहा कि नेहरू परिवार का अभी रिकाॅर्ड नहीं टूटा है।
याद रहे कि 1928 में कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू ने अपने पुत्र को कांग्रेस अध्यक्ष बनवाने के लिए गांधी जी को लगातार तीन चिट्ठयां लिखीं।
मोतीलाल की दो चिट्ठियों पर तो गांधी जी नहीं माने थे।
पर तीसरी चिट्ठी पर गांधी जी मजबूर हो गए।
उन्होंने 1929 में जवाहरलाल को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का रास्ता साफ कर दिया।
1937 में जब राज्यों में सरकार बन रही थी तो जवाहरलाल नेहरू ने अपने परिजन को उत्तर प्रदेश में मंत्री बनाने के चक्कर में मुहम्मद जिन्ना को नाराज कर लिया।
1946 में क्या हुआ ?
सरदार पटेल के पक्ष में कांग्रेस का बहुमत था।
किंतु गांधी जी ने जवाहरलाल नेहरू को पहले कांग्रेस अध्यक्ष और बाद में प्रधान मंत्री बनवा दिया।
जवाहर लाल ने जब इंदिरा गांधी को 1958 में कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य बनवाया,क्या उस समय इंदिरा गांधी को वह दर्जा परिवारवाद के कारण नहीं मिला था ?
हद तो तब हो गई जब 1959 में जवाहरलाल नेहरू की सहमति से इंदिरा गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बना दी गईं।
बाद के वर्षों में क्या-क्या हुआ,वह आज की पीढ़ी को याद है।
लेटर बम फोड़ने वालों में एक हैं सत्यदेव त्रिपाठी।
पहले लोहियावादी थे।
बाद में संभवतः एच.एन.बहुगुणा के साथ कांग्रेस में चले गए।
हाल तक तो त्रिपाठी जीे नेहरू-गांधी का वंशवाद-परिवारवाद
सहर्ष स्वीकार करते रहे।
क्या इसलिए कि तब कांग्रेस सत्ता में थी ?
या फिर सत्ता में लौट आने की संभावना थी ?
पर अब वैसा कुछ नहीं है तो लेटर बम फोड़ रहे हैं !
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मोतीलाल ने जो नींव डाली थी,उसका हश्र वही होना था जो कांग्रेस के साथ हो रहा है।इस देश के अन्य वंशवादी दलों के साथ भी देर -सवेर वही होने वाला है।
कांग्रेस के स्वतंत्रता सेनानियों के पुराने पुण्य प्रताप के कारण जनता भी वर्षों तक वंशवाद भी बर्दाश्त करती रही।
पर अब वैसा नहीं होगा,चाहे कितना लेटर बम कोई फोड़े।
कांग्रेस ने खुद को सुधारने की क्षमता खो दी है।
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इस देश के एक नामी नेता कभी पाकिस्तान जाकर वहां के लोगों से अपील कर आए थे कि आपलोग नरेंद्र मोदी को हराइए।
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अब कुछ अन्य नेता यह उम्मीद पाल रहे हैं कि चीन भारत को युद्ध में हरा दे ताकि मोदी सरकार अगले चुनाव में हार जाए।
यह भी नहीं होने वाला है।
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क्योंकि जनता जानती है कि महाराणा प्रताप की तरह लड़ते हुए हारने वाले का कोई कसूर नहीं होता।
पर विश्व नेता बनने के चक्कर में जानबूझ कर सेना व सीमा को कमजोर रखने वालों को जनता माफ नहीं करती।
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--सुरेंद्र किशोर--7 सितंबर 20
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