सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर
निरंतर नजर रखे चुनाव आयोग-
--सुरेद्र किशोर--
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बिहार में चुनाव सामने है।
इसमें सोशल मीडिया के भारी दुरुपयोग की आशंका प्रकट की जा रही है।दुरुपयोग शुरू भी हो चुका है।
वैसे तो आम दिनों में भी इस माध्यम के दुरुपयोग की खबरें आती रहती हंै।पर चुनाव तो कई दलों व लोगों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन जाता है।वैसे में सोशल मीडिया का दुरुपयोग करें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।
ऐसे में चुनाव आयोग की जिम्मेदारी बढ़ गई है।
वह देखे कि यह मीडिया गलत ढंग से मतदाताओं को प्रभावित न करे।
हाल ही में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह सोशल मीडिया को सुव्यवस्थित करे।
क्योंकि इस मीडिया की पहुंच काफी बढ़ गई है।
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चुनाव प्रचार में नेताओं
से शालीनता की उम्मीद
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2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में प्रचारकों ने कई बार शालीनता की लक्ष्मण रेखा पार कर दी थी।
उम्मीद है कि 2020 के राज्य विधान सभा चुनाव प्रचार में ऐसा नहीं होगा।
याद रहे कि लोक सभा चुनाव की अपेक्षा विधान सभा चुनाव में लक्ष्मण रेखा पार करने की अपेक्षाकृत अधिक घटनाएं होती रही हैं।
ध्यान रहे कि जब कोई चुनाव प्रचारक, नेता या कार्यकत्र्ता लक्षण रेखा पार करता है तो वह अपना ही चरित्र और संस्कार उजागर करता है।
साथ ही, वह मुकदमे को भी आमंत्रित करता है।
2015 के चुनाव में मुकदमे हुए भी थे।
एक नेता पर ‘चारा चोर’ कहने के लिए केस हुआ था तो दूसरे पर ‘नरभक्षी’ कहने पर मुकदमा हुआ।
पर ऐसे मुकदमों का अंततः क्या हश्र होता है ?
आम तौर से कुछ नहीं होता।
तब एक वरिष्ठ नेता ने तो कहा भी था कि चुनाव प्रचार के दौरान प्रचारकों के मुंह से निकली गालियों को होली की गाली मान कर बाद में भुला दिया जाना चाहिए।
वैसे आप भले भुला देंगे,पर आम लोगों के दिल ओ दिमाग पर संबंधित गालीबाज नेताओं के बारे में जो छाप पड़ती है,वह उन नेताओं के लिए ही अच्छा नहीं होता।
गाली-गलौज,अपशब्दों का प्रयोग और निराधार आरोप-प्रत्यारोप स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक है।
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भारी वाहनों से सड़कें ध्वस्त
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सारण जिला स्थित नवनिर्मित दिघवारा-भेल्दी-अमनौर स्टेट हाईवे की स्थिति इन दिनों जर्जर है।
यह पहले ग्रामीण सड़क थी।मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने इसमें रूचि लेकर इसे कुछ ही साल पहले स्टेट हाईवे में परिणत कराया ।
चूंकि यह सड़क मुख्य मंत्री की नजर में थी,इसलिए इसका निर्माण भी बेहतर हुआ।
पर हाल के महीनों में इस सड़क पर अत्यंत भारी वाहनों की बेरोकटोक आवाजाही के कारण यह रोड जर्जर हो गया।
इसके पुनर्निर्माण में भारी धन की जरूरत पड़ेगी।
निर्माण पर करीब 44 करोड़ रुपए खर्च हुए थे।
अब सवाल है कि उस सड़क को बर्बाद करने के लिए किसने उस सड़क पर भारी वाहनों की आवाजाही की अनुमति दी ?
इस सड़क का मामला तो एक नमूना है।
ऐसा पूरे राज्य में होता रहता है।
यह सार्वजनिक धन की बर्बादी नहीं तो और क्या है ?
पहले निर्माण में भारी खर्च करो।फिर कुछ ही समय बाद उसके पुनर्निर्माण में धन लगाओ।
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खुले में शौच का हाल
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बिहार सरकार ने खुले में शौच रोकने के लिए काफी प्रयास किया।उसका कुछ सकारात्मक नतीजे भी सामने आए।
पर कुल मिलाकर स्थिति यह है कि वैसी सफलता नहीं मिली जिसकी उम्मीद थी।
जबकि खुले में शौच से मुक्ति के कई फायदे हैं।
बिहार सरकार को चाहिए कि वह चुनाव के बाद एक बार फिर उस दिशा में पहल करे।
इस बार सख्ती से लागू करे।
कोरोना तथा इस तरह की किसी अन्य महामारी के इस दौर में
खुले में शौच एक जघन्य अपराध है।
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अलबर्ट एक्का भवन में काॅफी हाउस बने
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पटना के निकट गंगा नदी पर निर्मित गांधी सेतु का
शुभारम्भ 1982 में हुआ था।
अब उसका फिर से निर्माण हो रहा है।
पटना के अदालतगंज के विशाल परिसर में स्थित अलबर्ट एक्का भवन का 1984 में उद्घाटन हुआ था।
पर, इतने ही साल में वह जर्जर हो गया।
वहां फिर से नए व भव्य भवन का निर्माण होने जा रहा है।
कोइलवर में सोन नद पर अंग्रेजों ने किस साल पुल बनवाया था ?
फिर भी अब भी उस पर आवागमन जारी है।
जब नवीन अलबर्ट एक्का भवन बने तो उसमें ‘काॅफी हाउस’
भी खुलना चाहिए।
पटना में उसका अभाव खटकता है।
शासन को चाहिए कि उसके लिए उस भवन में स्थान उपलब्ध होना चाहिए।
कभी काॅफी बोर्ड द्वारा संचालित पटना स्थित काॅफी हाउस के बंद हो जाने के बाद यहां उसकी कमी महसूस की जाती रही है।
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और अंत में
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बिहार के मुख्य मंत्री डा.श्रीकृष्ण सिंह और उप मुख्य मंत्री डा. अनुग्रह नारायण सिंह अपने चुनावी टिकट के लिए कभी कोई आवदेन पत्र नहीं देते थे।
बल्कि कांग्रेस पार्टी उन्हें टिकट आॅफर करती थी।
नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद डा.श्रीकृष्ण सिंह यानी श्रीबाबू कभी अपने क्षेत्र में चुनाव प्रचार करने नहीं जाते थे।
हां, श्रीबाबू ने 1957 में अपना चुनाव क्षेत्र जरुर बदला।
किंतु अनुग्रह बाबू यानी ‘बाबू साहब’ लगातार एक ही चुनाव क्षेत्र से लड़े।
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कानोंकान ,प्रभात खबर 25 सितंबर 20
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