मंगलवार, 22 सितंबर 2020

 बिना माओवादी बने एक 

‘योगी’ ने कर दिया कमाल !

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कारोबारी सुगमता की दृष्टि से देश में उत्तर प्रदेश

का स्थान अब दूसरा हो गया है।

2017-18 में वह प्रदेश 12 वें स्थान पर था।

तमिलनाडु का पहली और बिहार का 26 वां स्थान है।

 आखिर उत्तर प्रदेश में  यह फर्क आया कैसे ?

इस बीच क्या चमत्कार हो गया ?

एक ही बात ध्यान में आती है।

इस बीच उत्तर प्रदेश पुलिस और खूंखार अपराधियों के बीच अनगनित मुंठभेड़ें हुईं।

संभव है कि इनमें से कुछ मुंठभेड़ें फर्जी रही होंगी।

पर,यदि ऐसी मुंठभेड़ें ही  किसी राज्य को उद्यमियों के लिए सुगम स्थान बनाती हैं तो फिर कानून के शासन 

का क्या होगा ?

इस पर सबको विचार करना है।

  क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को कौन ठीक करेगा ?

क्या उसके लिए किसी तानाशाह को आना पड़ेगा ?

यहां तो टेनें भीए समय पर तभी चलती हैं जब आपातकाल  (1975-77) होता है।

याद रहे कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से आज के अखबार में जारी विज्ञापन में कहा गया है कि 

‘‘ईज आॅफ डूइंग बिजनेस में ऊंची छलांग का एक कारण प्रदेश में बेहतर कानून व्यवस्था भी रही है।’’

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कुछ साल पहले मैं रांची में था।

देश के एक बड़े औद्योगिक समूह के एक प्रबंधक से संयोग से मुलाकात हो गई।

मैंने पूछा,‘‘कैसा कारोबार चल रहा है ?’’

उन्होंने कहा, ‘‘अब ठीक चल रहा है।

पहले हर माह रिश्वत व रंगदारी के मद में कुल 27 लिफाफे बनाने पड़ते थे।

अब एक ही लिफाफे से काम चल जा रहा है।

अपमान भी नहीं झेलना पड़ता है।

हमारे यहां आने वाले सरकारी महकमे के लोगांे के अलावा राजनीतिक दल व अपराधियों -रंगदारों की संख्या 27 थी।

अब सिर्फ माओवादियों को एक लिफाफा दे देता हूं।

माओवादी उन 27 से निपट लेते हैं।

   माओवादियों के डर से अब अन्य कोई लिफाफे के लिए नहीं आता।

पहले वे आकर हम पर रंगदारी भी झाड़ते थे।

हमें अपमानित भी करते थे और पैसे भी ले जाते थे।

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कुछ समय पहले बिहार के एक उद्यमी ने कहा कि 

अब इस राज्य में ‘जंगल राज’ तो नहीं है,

किंतु कानून -व्यवस्था में थोड़ा और सुधार की जरूरत है।

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--सुरेंद्र किशोर -19 सितंबर 20


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