परदा थोड़ा और उठने तो दो !
.................
सुशांत सिंह राजपूत और कंगना राणावत के मामले
को गहराई से समझने की जरूरत है।
जांच के दौरान जैसी -जैसी गंभीर सूचनाएं अब आ रही हैं,उनसे इस जरूरत को बल मिल रहा है।
गंम्भीर बात यह भी है कि इससे ठीक पहले मुम्बई पुलिस क्यों इन सूचनाओं को दबा रही थी ?
जाहिर है कि राजनीतिक कार्यपालिका के दबाव के बिना किसी राज्य की पुलिस ऐसी हरकत नहीं कर सकती ।
यानी, इस आरोप में दम लगता है कि अनेक समर्थवान नेताओं का समर्थन देश विरोधी तत्वों को हासिल रहा है।
किसी बंदरगाह वाले महा नगर की ऐसी स्थिति हो तो पूरे देश की सुरक्षा के लिए यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है।
सुशांत की मौत या हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या का मामला नहीं है।
यह मुम्बई की लगभग पूरी फिल्मी दुनिया के ड्रग्स में डूबे रहने का मामला है।
यह बात और है कि अब भी फिल्मी दुनिया के कुछ लोग ड्रग्स नहीं लेते।पर वह तो अपवाद है।
यह मामला भी है कि किस तरह फिल्म जगत का बड़ा हिस्सा पड़ोस के देश में बैठे माफिया के कब्जे में है।
सवाल यह भी है क्या ड्रग्स के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के पैसों में से काफी पैसे इस देश में आतंकियों को ताकत पहुंचाने में तो नहीं लग रहे हैं ?
क्या यह संयोग है कि कुछ वैसे राजनीतिक दल आज रिया चक्रवर्ती के पक्ष में खड़े हो गए हैं जो जे.एन.यू.में ‘‘भारत तेरे
टुकड़े होंगे’’ का नारा लगाने वालों के साथ भी जाकर खड़े हो गए थे ?खुदा करे कि यह संयोग ही हो।
........................
मुम्बई में संभवतः पहली बार ईमानदारी से केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जांच चल रही है।
इस बीच यदि साथ-साथ मीडिया का दबाव व खोजबीन जारी रहेगा तो केंद्रीय एजेंसियां इस देश विरोधी धंधे में लगी ताकतों को उनके असली मुकाम तक सफलतापूर्वक पहुंचा पाएंगी।
...............................
पर कुछ लोग चाहते हैं कि मीडिया अपना ध्यान मुम्बई से हटा कर दूसरी ओर लगाए।
इस सलाह के पीछे क्या उनका भी कोई निहित स्वार्थ है ?
...........................
----सुरेंद्र किशोर--12 सितंबर 20
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें