कानोंकान
सुरेंद्र किशोर
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सरकार के अलावा सामाजिक संगठन भी चलाए दहेज विरोधी अभियान
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दहेज जनित बुराइयों की जितनी खबरें बाहर आती हैं,उससे बहुत अधिक खबरें घरों की दीवारों के भीतर ही रह जाती हैं।
दहेज प्रताड़ना की पीड़िताएं घुट -घुट कर उपेक्षित जीवन बिताती हैं।
हर पीड़िता के पिता इतने प्रभावशाली व साहसी व साधनसंपन्न नहीं होते कि वे दहेज दानवों को सजा दिला सकें।
यह कहना कठिन है कि शराब-पान से मरने वालों की संख्या अधिक है या दहेज दानवों से पीड़ित होकर घुट-घुट कर रोज मरने वाली कितनी नारियां !
यदि इस देश-प्रदेश में सक्रिय सामाजिक व राजनीतिक संगठनों ने दहेज पीडि
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गंगा की अविरलता में बाधक
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बादशाह अकबर दूर से मंगा कर रोज गंगा जल पीता था।
वह उसकी निर्मलता व औषधीय गुणों से परिचित था।
ब्रिटिश शासकों ने भी गंगा को गंदा नहीं होने दिया या नहीं किया।
बचपन में मैं गंगा के किनारे घुटने भर पानी में खड़ा होता था तो मेरे पैरों की अंगुलियां भी दिखाई पड़ती थी।
आजादी के बाद गंगा को बांध कर और इसके किनारे बड़ी संख्या में कारखाने लगाने की अनुमति देकर इसे गंदे नाले में परिणत कर दिया गया।
गंगा को गंदा करने में कारखाने से निकले गंदे जल की भमिका महत्वपूर्ण रही।
कुम्भ मेले के समय गंगा के ऊपरी प्रवाह के किनारे स्थित कारखानों को कुछ दिनों के लिए बंद करना पड़ता है।
जानकार सूत्रों के अनुसार सन 1985 से 2014 तक गंगा की सफाई पर चार हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए।
नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता संभालने के बाद अगले 15 साल के लिए गंगा की सफाई पर 30 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई है।
उस में से अब तक 11 हजार करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।
कई जगह गंगा जल में गुणात्मक सुधार हुआ भी है।
.पर,सवाल है कि पूरी गंगा साफ कब होगी ?
जानकार लोग बताते हैं कि उसके लिए न सिर्फ गंगा से मिलने वाली नदियों को साफ करना होगा बल्कि गंगा की अविरलता भंग करने व दूषित करने वाले बांधों -नहरों-कारखानों को लेकर कठोर कदम उठाने होंगे।
औषधीय गुणों के कारण गंगा को विशेष स्थान देना होगा।
प्रकृति किसी अन्य देश को ऐसी नदी दी होती तो वह देश इसे संजो कर रखता।
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देश के सर्वाधिक स्वच्छ नगर इन्दौर से हाल में एक चिकित्सक पटना आए थे।
पटना नगर की गंदगी देखकर उन्होंने कुछ टिप्पणी भी की।
स्वाभाविक ही है कि उन्होंने क्या कहा होगा !
बिहार की राजधानी पटना में गंदगी व मुख्य ड़कों पर भी अतिक्रमण की समस्या पुरानी है।इससे आगंतुकों में बिहार की छवि खराब होती है।
कानून -व्यवस्था के मामले में तो अब इस राज्य की स्थिति बेहतर है।क्योंकि पिछले डेढ़ दशक में इस दिशा मंें राज्य सरकार ने काम किया है।उसी तरह की गंभीरता नगर की सफाई व अतिक्रमण मुक्ति को लेकर दिखाने में बिहार सरकार के सामने कौन सी दिक्कतें हैं ?
क्या अतिक्रमणकारी व साफ-सफाई
में जानबूझ कर कोताही बरतने वाले लोग बिहार सरकार
से अधिक ताकतवर हंै ?
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भूली-बिसरी याद
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भारतीय संसद में दशकों से जारी हुड़दंग को लेकर लोक सभा के पूर्व स्पीकर बलिराम भगत की टिप्पणी भुलाए नहीं भूलती।
कई साल पहले उन्होंने कहा था कि हमारी संसद कैरिकेचर बन कर रह गई है।
दिवंगत भगत ने, जिनका सन 2011 में निधन हुआ,बिहार के ही मूल निवासी थे।वे केंद्र में मंत्री और लोक सभा के स्पीकर रह चुके थे।
सन 2003 में मीडिया
से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा था कि ‘‘हमारी संसद महज केरिकेचर बन कर रह गई है।
लोक सभा के काम काज में दिन ब दिन गिरावट आ रही है।’’
2003 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी।
कांग्रेस प्रतिपक्ष में थी।
उस गिरावट के लिए कौन कौन दल और कौन कौन तथा कौन कौन तत्व कसूरवार हैं ,यह बात उन्होंने नहीं बताई।
खैर,अपने पुराने अनुभवों के आधार पर भगत जी ने कहा कि
‘‘अब हालात बहुत बदल गए हैं।पहले लोक सभा अध्यक्ष कुछ कहने के लिए अपने आसन से जब उठता था तब सभी सदस्य चुपचाप होकर उनकी बातों को सुनते थे।
पर अब सदस्यों की हुल्लड़बाजी से अध्यक्ष को ही पलायन करना पड़ रहा है।
यह परिपाटी संसदीय प्रणाली आधारित सरकारों के लिए घातक साबित होगी।
शैक्षणिक योग्यता नहीं रहने के कारण अब ऊंचे दर्जे के महत्वपूर्ण विषयों पर बहस नहीं होती।’’
अब तो संसद हुल्लड़बाजी से हंगामे की ओर बढ़ गई है।अब पीठासीन अधिकारी के साथ हाथापाई होती है।महिला मार्शलों के साथ दुव्र्यवहार होता है।आज भगत जी जीवित होते तो क्या कहते,कल्पना कर लीजिए।
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और अंत में
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शराब में अधिक नशा है या रिश्वत में ?
यह सवाल ही क्यों ?
क्योंकि बिहार में इन दिनों शराबखोरी और रिश्वतखोरी के आरोप में गिरफ्तारियां रुकने का नाम नहीं ले रही हैं।किंतु इसके बावजूद उतनी ही तेजी से ये दोनों अपराध घटित भी हो रहे हैं।दरअसल नशे के अभ्यस्त लोग अर्ध चेतन अवस्था में जो होते हैं !उन्हें न तो अपना ख्याल रहता है और न परिवार का।
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प्रभात खबर, पटना
31 दिसंबर 21