सोमवार, 20 मार्च 2023

   ‘‘सभ्यताओं का संघर्ष’’ के साथ-साथ इस देश में ‘‘भ्रष्टाचार

   -समर्थन बनाम भ्रष्टाचार -विरोध’’ का संघर्ष भी तेज होगा

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    सुरेंद्र किशोर

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नब्बे के दशक में अमरीकी राजनीतिक वैज्ञानिक सैमुएल पी.हंटिंगटन की एक किताब आई थी।

उसका नाम था ‘‘सभ्यताओं का संघर्ष’’।

उस पुस्तक के जरिए लेखक ने यह कहा था कि 

‘‘शीत युद्धोत्तर संसार में लोगों की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान ही संघर्षों का मुख्य कारण होगी।’’

भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में वैसा संघर्ष इन दिनों जारी भी है जिसकी कल्पना हंटिंगटन ने की थी।हाल के वर्षों में वैसा संघर्ष भारत में भी तेज हो गया है।

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इसके साथ ही ,भारत में एक अन्य तरह का संघर्ष भी चल रहा है।

इस संघर्ष का मुख्य आधार ‘‘भ्रष्टाचार समर्थन बनाम भ्रष्टाचार विरोध’’ है।

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इस संबंध में नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी ने सन 2019 में एक महत्वपूर्ण बात कही थी।

उन्होंने कहा था कि 

‘‘चाहे यह भ्रष्टाचार का विरोध हो या भ्रष्ट के रूप में देखे जाने का भय,

शायद भ्रष्टाचार अर्थ -व्यवस्था के पहियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण था,(इस देश में ) इसे काट दिया गया है।

मेरे कई व्यापारिक मित्र मुझे बताते हैं इस कारण निर्णय लेेने की गति धीमी हो गई है।

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--नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी,

दैनिक हिन्दुस्तान 

23 अक्तूबर 2019 

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 बनर्जी ने ,जो नोबल विजेता अमत्र्य सेन के शिष्य बताए जाते हैं,यह संकेत दिया है कि नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद ही भ्रष्टाचार को अर्थ -व्यवस्था से काट दिया गया है।

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इन दिनों पूरे देश में सी.बी.आई. और ई.डी.कुछ अधिक ही सक्रिय हो गए हैं।

मुख्यतः प्रतिपक्षी दलों के नेता गण निशाने पर हैं।

नाजायज तरीके से एकत्र किए गए करोड़ों-अरबांे रुपए उनके यहां पाए जा रहे हैं।

अदालतों से भी उन्हें राहत नहीं मिल रही है।

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नतीजतन एक खास तरह का राजनीतिक संघर्ष जारी है जिसके तेज होने की ही आश्ंाका है।

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यह संघर्ष भ्रष्टाचार जारी रखने वालों और भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकारी एजेंसियों को लगा देने वालों के बीच है।

  एजेंसियों से पीड़ित लोग सड़कों पर आ रहे हैं।

अगले महीनों में कई बड़े प्रतिपक्षी नेताओं के जेल जाने की संभावना है। 

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जो नेतागण एजेंसियों के निशाने पर हैं,उनके पास कहने के लिए सिर्फ यही बात है कि ‘‘सरकार प्रतिपक्ष को खत्म कर देना चाहती है।

क्या सत्ता दल के सारे नेता दूध के धुले हैं ?

उनके यहां एजेंसियां क्यों नहीं जा रही हैं ?’’

क्या भ्रष्टाचार को प्रतिपक्ष से माइनस कर दिया जाए तो प्रतिपक्ष खत्म हो जाएगा ?

सवाल है कि यह कैसा प्रतिपक्ष है ?!!

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प्रतिपक्ष से अपील है कि आप लोग डा.सुब्रहमण्यन स्वामी से शिक्षा लेकर सत्ताधारी नेताओं के खिलाफ सबूत जुटाइए और कोर्ट की शरण लीजिए।

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पर,लगता है कि वे ऐसा नहीं करेंगे।

तब क्या होगा ?

‘‘सभ्यताओं का संघर्ष’’ के साथ-साथ इस देश में ‘‘भ्रष्टाचार समर्थकों और विरोधियों’’ के बीच भी समानांतर संघर्ष चलेगा।

  कभी- कभी ये दोनों ‘‘संघर्ष’’ आपस में मिल भी सकते हैं।फिर तो स्थिति गंभीर होगी।

ऐसे में देश की आम जनता को सन 2024 के लोक सभा चुनाव में यह फैसला करना होगा कि वह किस तरह की सभ्यता, समाज और राजनीति चाहती है।

देश के इतिहास में 2024 का चुनाव नतीजा निर्णायक मोड़ साबित होगा। 

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 12 मार्च 23  


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