मंगलवार, 21 मार्च 2023

 कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

.........................

संसद और विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने की जरूरत

...............................................

लोक सभा और विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने की दिशा में केंद्र सरकार प्रयत्नशील है।इसके लिए विभिन्न स्तरों पर विमर्श जारी है।अब यह मामला विधि आयोग में विचाराधीन है।

1967 तक दोनों चुनाव एक साथ हुए थे।

दरअसल इस काम में सबसे बडे बाधक कुछ राजनीतिक दल रहे हैं।

उसके पीछे राजनीतिक स्वार्थ है।पर,यह व्यापक जनहित में होगा कि यह काम हो जाए।

इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा।

 एक साथ चुनाव के विरोध का सबसे बड़ा तर्क यह कि ‘‘मतदाता लोग स्थानीय मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट देंगे।

इससे एक दल को लाभ होगा।’’

पर, पिछला इतिहास इस तर्क की पुष्टि नहीं करता।

सन 1967 में मतदाताओं ने केंद्र में तो कांग्रेस को सत्तासीन किया किंतु सात राज्यों में गैरकांग्रेसी दलों को जिता दिया

जबकि, चुनाव एक ही साथ हुए थे।

संविधान निर्मातागण भी जानते थे कि यह देश विविधताओं का है।

फिर भी उनका भरोसा मतदाताओं के विवेक पर था।

एक साथ चुनाव के फायदे ही फायदे हैं।

उससे जनता का पैसा बचेगा।

चुनाव खर्चों में कमी आएगी।

यानी राजनीतिक दलों को अपेक्षाकृत कम चंदा वसूली करनी पड़ेगी।उससे भ्रष्टाचार कम करने में आसानी होगी।

ऐसे तो इस देश में लगभग हर दूसरे-तीसरे साल जहां- तहां चुनाव होते ही रहते हैं।इस कारण बड़े पैमाने पर सरकारी मशीनरी को आए दिन एक काम को छोड़वा कर दूसरे काम में लगाना पड़ता है।

चुनावी आचार संहिता के कारण विकास कार्य भी बार-बार रुकते हैं।सरकारी मशीनरी के जिम्मे आम तौर से जो काम रहते हैं,उनमें भी बाधा पड़ती है।देश नाहक इतना नुकसान क्यों सहे जबकि संविधान निर्माताओं ने एक ही साथ चुनाव की प्रावधान किया था ?

.....................................

किन्नरों के लिए रोजगार

   .....................................

ओड़िशा के भुवनेश्वर नगर निकाय ने बकाया करों की वसूली का काम

सन 2019 में किन्नरों को सौंपा था।

खबर आई थी कि किन्नरों ने स्वयं सहायता समूह बनाकर यह काम शुरू किया था।

ओड़िशा सरकार ने उन्हें कुछ अधिकार भी दिए थे।

आगे उस स्वयं सहायता समूह की कैसी उपलब्धि रही,यह पता नहीं चल सका।

   पता लगाना चाहिए कि नए तरह के उस प्रयास का अंततः कैसा नतीजा आया। सकारात्मक नतीजा आया तो वह काम बिहार में भी किया जाना चाहिए।

  इससे एक तरफ तो कर वसूली में रफ्तार आएगी,दूसरी तरफ किन्नरों को रोजगार मिलेगा।

 अभी किन्नर आय के लिए परपंरागत तरीके अपनाते हैं।पहले तो शिशु जन्म के अवसर पर उन्हें लोगों से कुछ मिलता रहा।अब उन्हें वह काफी नहीं पड़ रहा है।

दूसरे मांगलिक अवसरों पर भी लोगों के यहां किन्नर पहुंच जाते हैं।

अधिक से अधिक वसूली के लिए जोर-जबर्दश्ती होने लगती है।कई बार कानून -व्यवस्था की समस्या भी खड़ी हो जाती है।ं

ऐसे में भुवनेश्वर फार्मला बीच का रास्ता है।

किन्नरों की वसूली -क्षमता का नगर निकाय लाभ उठाएं।

...........................

 नगरों का विस्तार

.........................

 शोभन बाइपास पर एम्स बनाने से दरभंगा नगर का विस्तार होगा।दूसरी ओर 

बीच नगर में एम्स जैसे बड़े संस्थान के निर्माण से भीड़भाड़ बढ़ेगी।उससे रोड जाम और प्रदूषण होंगे।

शोभन के पक्ष में बिहार सरकार का निर्णय सही है।इसी तर्ज पर अन्य नगरों का भी विस्तार होना चाहिए।

यह बात प्रादेशिक राजधानी पटना पर भी लागू होनी चाहिए।

नए संस्थान बीच पटना के बदले आसपास के इलाकांे में स्थापित हों।

बहुत पहले इन पंक्तियों के लेखक ने इस बात की जरूरत बताई थी कि पटना कोर्ट-कलक्टरी,पी.एम.सी.एच. और पटना विश्व विद्यालय में से किसी एक को 

नगर से बाहर किया जाना चाहिए।

खैर,वह तो नहीं हुआ।पर,एक काम अच्छा हो रहा है।यानी,पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय को बख्तियारपुर के पास ले जाने का काम।

............................ 

भूली बिसरी यादें 

...............................

डा.राममनोहर लोहिया सन 1958 में माखनलाल चतुर्वेदी से मिलने खंडवा गए थे।

‘‘पुष्प की अभिलाषा’’ के रचयिता चतुर्वेदी जी से डा.लोहिया ने कहा,‘‘दादा,हमारी पार्टी ने अंग्रेजी अखबारों की ‘होलिका’जलाने का निर्णय किया है।हिन्दी के विकास में अंग्रेजी अखबार बाधक हैं।ये हमारी गुलाम प्रवृति को कायम रखे हुए हैं।

हम इसके लिए आपका आशीर्वाद चाहते हैं।इस पर चतुर्वेदी जी ने कहा कि ‘‘लोहिया जी, हिन्दी के प्रति आपकी चिंता से मुझे प्रसन्नता हुई।

राजनीति में मुझे इतनी गहन चिंता अन्य किसी के मस्तिष्क में अंकित नहीं दिखाई दे रही है।यह बहुत बड़ी बात है।

आपकी वाणी ने हमारी निराशा को कम किया है।

लेकिन हिन्दी के विकास के लिए अंग्रेजी अखबारों को जलाना जरूरी नहीं है।यदि हम जलाते हैं तो अपनी ही कमजोरी का इजहार करते हैं।’’

दादा से उनकी कुछ और बातें भी हुईं और डा.लोहिया ने अंगे्रजी अखबारों को जलाने का अपना विचार त्याग दिया।  

 ........................

और अंत में

......................

‘स्मार्ट वाच’ में लगे जासूसी कैमरे में रिश्वतखोरी का दृश्य कैद किया गया था।

कर्नाटका में पिछले दिन इस विधि से 40 लाख रुपए स्वीकार करते हुए जो व्यक्ति पकड़ा गया था,वह वहां के एक सत्ताधारी विधायक का बेटा है।

उस विधायक को कोर्ट ने जमानत दे दी है।पर लोकायुक्त ने जमानत के खिलाफ ऊपरी अदालत मंे अपील कर दी है।

 स्मार्ट वाॅच में जासूसी कैमरे को फिट करवाने की पहल अनुकरणीय है।क्यों न इसका इस्तेमाल अन्य राज्यों में भी हो ? 

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कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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संसद और विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने की जरूरत

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लोक सभा और विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने की दिशा में केंद्र सरकार प्रयत्नशील है।इसके लिए विभिन्न स्तरों पर विमर्श जारी है।अब यह मामला विधि आयोग में विचाराधीन है।

1967 तक दोनों चुनाव एक साथ हुए थे।

दरअसल इस काम में सबसे बडे बाधक कुछ राजनीतिक दल रहे हैं।

उसके पीछे राजनीतिक स्वार्थ है।पर,यह व्यापक जनहित में होगा कि यह काम हो जाए।

इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा।

 एक साथ चुनाव के विरोध का सबसे बड़ा तर्क यह कि ‘‘मतदाता लोग स्थानीय मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट देंगे।

इससे एक दल को लाभ होगा।’’

पर, पिछला इतिहास इस तर्क की पुष्टि नहीं करता।

सन 1967 में मतदाताओं ने केंद्र में तो कांग्रेस को सत्तासीन किया किंतु सात राज्यों में गैरकांग्रेसी दलों को जिता दिया

जबकि, चुनाव एक ही साथ हुए थे।

संविधान निर्मातागण भी जानते थे कि यह देश विविधताओं का है।

फिर भी उनका भरोसा मतदाताओं के विवेक पर था।

एक साथ चुनाव के फायदे ही फायदे हैं।

उससे जनता का पैसा बचेगा।

चुनाव खर्चों में कमी आएगी।

यानी राजनीतिक दलों को अपेक्षाकृत कम चंदा वसूली करनी पड़ेगी।उससे भ्रष्टाचार कम करने में आसानी होगी।

ऐसे तो इस देश में लगभग हर दूसरे-तीसरे साल जहां- तहां चुनाव होते ही रहते हैं।इस कारण बड़े पैमाने पर सरकारी मशीनरी को आए दिन एक काम को छोड़वा कर दूसरे काम में लगाना पड़ता है।

चुनावी आचार संहिता के कारण विकास कार्य भी बार-बार रुकते हैं।सरकारी मशीनरी के जिम्मे आम तौर से जो काम रहते हैं,उनमें भी बाधा पड़ती है।देश नाहक इतना नुकसान क्यों सहे जबकि संविधान निर्माताओं ने एक ही साथ चुनाव की प्रावधान किया था ?

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किन्नरों के लिए रोजगार

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ओड़िशा के भुवनेश्वर नगर निकाय ने बकाया करों की वसूली का काम

सन 2019 में किन्नरों को सौंपा था।

खबर आई थी कि किन्नरों ने स्वयं सहायता समूह बनाकर यह काम शुरू किया था।

ओड़िशा सरकार ने उन्हें कुछ अधिकार भी दिए थे।

आगे उस स्वयं सहायता समूह की कैसी उपलब्धि रही,यह पता नहीं चल सका।

   पता लगाना चाहिए कि नए तरह के उस प्रयास का अंततः कैसा नतीजा आया। सकारात्मक नतीजा आया तो वह काम बिहार में भी किया जाना चाहिए।

  इससे एक तरफ तो कर वसूली में रफ्तार आएगी,दूसरी तरफ किन्नरों को रोजगार मिलेगा।

 अभी किन्नर आय के लिए परपंरागत तरीके अपनाते हैं।पहले तो शिशु जन्म के अवसर पर उन्हें लोगों से कुछ मिलता रहा।अब उन्हें वह काफी नहीं पड़ रहा है।

दूसरे मांगलिक अवसरों पर भी लोगों के यहां किन्नर पहुंच जाते हैं।

अधिक से अधिक वसूली के लिए जोर-जबर्दश्ती होने लगती है।कई बार कानून -व्यवस्था की समस्या भी खड़ी हो जाती है।ं

ऐसे में भुवनेश्वर फार्मला बीच का रास्ता है।

किन्नरों की वसूली -क्षमता का नगर निकाय लाभ उठाएं।

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 नगरों का विस्तार

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 शोभन बाइपास पर एम्स बनाने से दरभंगा नगर का विस्तार होगा।दूसरी ओर 

बीच नगर में एम्स जैसे बड़े संस्थान के निर्माण से भीड़भाड़ बढ़ेगी।उससे रोड जाम और प्रदूषण होंगे।

शोभन के पक्ष में बिहार सरकार का निर्णय सही है।इसी तर्ज पर अन्य नगरों का भी विस्तार होना चाहिए।

यह बात प्रादेशिक राजधानी पटना पर भी लागू होनी चाहिए।

नए संस्थान बीच पटना के बदले आसपास के इलाकांे में स्थापित हों।

बहुत पहले इन पंक्तियों के लेखक ने इस बात की जरूरत बताई थी कि पटना कोर्ट-कलक्टरी,पी.एम.सी.एच. और पटना विश्व विद्यालय में से किसी एक को 

नगर से बाहर किया जाना चाहिए।

खैर,वह तो नहीं हुआ।पर,एक काम अच्छा हो रहा है।यानी,पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय को बख्तियारपुर के पास ले जाने का काम।

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भूली बिसरी यादें 

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डा.राममनोहर लोहिया सन 1958 में माखनलाल चतुर्वेदी से मिलने खंडवा गए थे।

‘‘पुष्प की अभिलाषा’’ के रचयिता चतुर्वेदी जी से डा.लोहिया ने कहा,‘‘दादा,हमारी पार्टी ने अंग्रेजी अखबारों की ‘होलिका’जलाने का निर्णय किया है।हिन्दी के विकास में अंग्रेजी अखबार बाधक हैं।ये हमारी गुलाम प्रवृति को कायम रखे हुए हैं।

हम इसके लिए आपका आशीर्वाद चाहते हैं।इस पर चतुर्वेदी जी ने कहा कि ‘‘लोहिया जी, हिन्दी के प्रति आपकी चिंता से मुझे प्रसन्नता हुई।

राजनीति में मुझे इतनी गहन चिंता अन्य किसी के मस्तिष्क में अंकित नहीं दिखाई दे रही है।यह बहुत बड़ी बात है।

आपकी वाणी ने हमारी निराशा को कम किया है।

लेकिन हिन्दी के विकास के लिए अंग्रेजी अखबारों को जलाना जरूरी नहीं है।यदि हम जलाते हैं तो अपनी ही कमजोरी का इजहार करते हैं।’’

दादा से उनकी कुछ और बातें भी हुईं और डा.लोहिया ने अंगे्रजी अखबारों को जलाने का अपना विचार त्याग दिया।  

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और अंत में

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‘स्मार्ट वाच’ में लगे जासूसी कैमरे में रिश्वतखोरी का दृश्य कैद किया गया था।

कर्नाटका में पिछले दिन इस विधि से 40 लाख रुपए स्वीकार करते हुए जो व्यक्ति पकड़ा गया था,वह वहां के एक सत्ताधारी विधायक का बेटा है।

उस विधायक को कोर्ट ने जमानत दे दी है।पर लोकायुक्त ने जमानत के खिलाफ ऊपरी अदालत मंे अपील कर दी है।

 स्मार्ट वाॅच में जासूसी कैमरे को फिट करवाने की पहल अनुकरणीय है।क्यों न इसका इस्तेमाल अन्य राज्यों में भी हो ? 

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कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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संसद और विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने की जरूरत

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लोक सभा और विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने की दिशा में केंद्र सरकार प्रयत्नशील है।इसके लिए विभिन्न स्तरों पर विमर्श जारी है।अब यह मामला विधि आयोग में विचाराधीन है।

1967 तक दोनों चुनाव एक साथ हुए थे।

दरअसल इस काम में सबसे बडे बाधक कुछ राजनीतिक दल रहे हैं।

उसके पीछे राजनीतिक स्वार्थ है।पर,यह व्यापक जनहित में होगा कि यह काम हो जाए।

इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा।

 एक साथ चुनाव के विरोध का सबसे बड़ा तर्क यह कि ‘‘मतदाता लोग स्थानीय मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट देंगे।

इससे एक दल को लाभ होगा।’’

पर, पिछला इतिहास इस तर्क की पुष्टि नहीं करता।

सन 1967 में मतदाताओं ने केंद्र में तो कांग्रेस को सत्तासीन किया किंतु सात राज्यों में गैरकांग्रेसी दलों को जिता दिया

जबकि, चुनाव एक ही साथ हुए थे।

संविधान निर्मातागण भी जानते थे कि यह देश विविधताओं का है।

फिर भी उनका भरोसा मतदाताओं के विवेक पर था।

एक साथ चुनाव के फायदे ही फायदे हैं।

उससे जनता का पैसा बचेगा।

चुनाव खर्चों में कमी आएगी।

यानी राजनीतिक दलों को अपेक्षाकृत कम चंदा वसूली करनी पड़ेगी।उससे भ्रष्टाचार कम करने में आसानी होगी।

ऐसे तो इस देश में लगभग हर दूसरे-तीसरे साल जहां- तहां चुनाव होते ही रहते हैं।इस कारण बड़े पैमाने पर सरकारी मशीनरी को आए दिन एक काम को छोड़वा कर दूसरे काम में लगाना पड़ता है।

चुनावी आचार संहिता के कारण विकास कार्य भी बार-बार रुकते हैं।सरकारी मशीनरी के जिम्मे आम तौर से जो काम रहते हैं,उनमें भी बाधा पड़ती है।देश नाहक इतना नुकसान क्यों सहे जबकि संविधान निर्माताओं ने एक ही साथ चुनाव की प्रावधान किया था ?

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किन्नरों के लिए रोजगार

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ओड़िशा के भुवनेश्वर नगर निकाय ने बकाया करों की वसूली का काम

सन 2019 में किन्नरों को सौंपा था।

खबर आई थी कि किन्नरों ने स्वयं सहायता समूह बनाकर यह काम शुरू किया था।

ओड़िशा सरकार ने उन्हें कुछ अधिकार भी दिए थे।

आगे उस स्वयं सहायता समूह की कैसी उपलब्धि रही,यह पता नहीं चल सका।

   पता लगाना चाहिए कि नए तरह के उस प्रयास का अंततः कैसा नतीजा आया। सकारात्मक नतीजा आया तो वह काम बिहार में भी किया जाना चाहिए।

  इससे एक तरफ तो कर वसूली में रफ्तार आएगी,दूसरी तरफ किन्नरों को रोजगार मिलेगा।

 अभी किन्नर आय के लिए परपंरागत तरीके अपनाते हैं।पहले तो शिशु जन्म के अवसर पर उन्हें लोगों से कुछ मिलता रहा।अब उन्हें वह काफी नहीं पड़ रहा है।

दूसरे मांगलिक अवसरों पर भी लोगों के यहां किन्नर पहुंच जाते हैं।

अधिक से अधिक वसूली के लिए जोर-जबर्दश्ती होने लगती है।कई बार कानून -व्यवस्था की समस्या भी खड़ी हो जाती है।ं

ऐसे में भुवनेश्वर फार्मला बीच का रास्ता है।

किन्नरों की वसूली -क्षमता का नगर निकाय लाभ उठाएं।

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 नगरों का विस्तार

.........................

 शोभन बाइपास पर एम्स बनाने से दरभंगा नगर का विस्तार होगा।दूसरी ओर 

बीच नगर में एम्स जैसे बड़े संस्थान के निर्माण से भीड़भाड़ बढ़ेगी।उससे रोड जाम और प्रदूषण होंगे।

शोभन के पक्ष में बिहार सरकार का निर्णय सही है।इसी तर्ज पर अन्य नगरों का भी विस्तार होना चाहिए।

यह बात प्रादेशिक राजधानी पटना पर भी लागू होनी चाहिए।

नए संस्थान बीच पटना के बदले आसपास के इलाकांे में स्थापित हों।

बहुत पहले इन पंक्तियों के लेखक ने इस बात की जरूरत बताई थी कि पटना कोर्ट-कलक्टरी,पी.एम.सी.एच. और पटना विश्व विद्यालय में से किसी एक को 

नगर से बाहर किया जाना चाहिए।

खैर,वह तो नहीं हुआ।पर,एक काम अच्छा हो रहा है।यानी,पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय को बख्तियारपुर के पास ले जाने का काम।

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भूली बिसरी यादें 

...............................

डा.राममनोहर लोहिया सन 1958 में माखनलाल चतुर्वेदी से मिलने खंडवा गए थे।

‘‘पुष्प की अभिलाषा’’ के रचयिता चतुर्वेदी जी से डा.लोहिया ने कहा,‘‘दादा,हमारी पार्टी ने अंग्रेजी अखबारों की ‘होलिका’जलाने का निर्णय किया है।हिन्दी के विकास में अंग्रेजी अखबार बाधक हैं।ये हमारी गुलाम प्रवृति को कायम रखे हुए हैं।

हम इसके लिए आपका आशीर्वाद चाहते हैं।इस पर चतुर्वेदी जी ने कहा कि ‘‘लोहिया जी, हिन्दी के प्रति आपकी चिंता से मुझे प्रसन्नता हुई।

राजनीति में मुझे इतनी गहन चिंता अन्य किसी के मस्तिष्क में अंकित नहीं दिखाई दे रही है।यह बहुत बड़ी बात है।

आपकी वाणी ने हमारी निराशा को कम किया है।

लेकिन हिन्दी के विकास के लिए अंग्रेजी अखबारों को जलाना जरूरी नहीं है।यदि हम जलाते हैं तो अपनी ही कमजोरी का इजहार करते हैं।’’

दादा से उनकी कुछ और बातें भी हुईं और डा.लोहिया ने अंगे्रजी अखबारों को जलाने का अपना विचार त्याग दिया।  

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और अंत में

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‘स्मार्ट वाच’ में लगे जासूसी कैमरे में रिश्वतखोरी का दृश्य कैद किया गया था।

कर्नाटका में पिछले दिन इस विधि से 40 लाख रुपए स्वीकार करते हुए जो व्यक्ति पकड़ा गया था,वह वहां के एक सत्ताधारी विधायक का बेटा है।

उस विधायक को कोर्ट ने जमानत दे दी है।पर लोकायुक्त ने जमानत के खिलाफ ऊपरी अदालत मंे अपील कर दी है।

 स्मार्ट वाॅच में जासूसी कैमरे को फिट करवाने की पहल अनुकरणीय है।क्यों न इसका इस्तेमाल अन्य राज्यों में भी हो ? 

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कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

.........................

संसद और विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने की जरूरत

...............................................

लोक सभा और विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने की दिशा में केंद्र सरकार प्रयत्नशील है।इसके लिए विभिन्न स्तरों पर विमर्श जारी है।अब यह मामला विधि आयोग में विचाराधीन है।

1967 तक दोनों चुनाव एक साथ हुए थे।

दरअसल इस काम में सबसे बडे बाधक कुछ राजनीतिक दल रहे हैं।

उसके पीछे राजनीतिक स्वार्थ है।पर,यह व्यापक जनहित में होगा कि यह काम हो जाए।

इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा।

 एक साथ चुनाव के विरोध का सबसे बड़ा तर्क यह कि ‘‘मतदाता लोग स्थानीय मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट देंगे।

इससे एक दल को लाभ होगा।’’

पर, पिछला इतिहास इस तर्क की पुष्टि नहीं करता।

सन 1967 में मतदाताओं ने केंद्र में तो कांग्रेस को सत्तासीन किया किंतु सात राज्यों में गैरकांग्रेसी दलों को जिता दिया

जबकि, चुनाव एक ही साथ हुए थे।

संविधान निर्मातागण भी जानते थे कि यह देश विविधताओं का है।

फिर भी उनका भरोसा मतदाताओं के विवेक पर था।

एक साथ चुनाव के फायदे ही फायदे हैं।

उससे जनता का पैसा बचेगा।

चुनाव खर्चों में कमी आएगी।

यानी राजनीतिक दलों को अपेक्षाकृत कम चंदा वसूली करनी पड़ेगी।उससे भ्रष्टाचार कम करने में आसानी होगी।

ऐसे तो इस देश में लगभग हर दूसरे-तीसरे साल जहां- तहां चुनाव होते ही रहते हैं।इस कारण बड़े पैमाने पर सरकारी मशीनरी को आए दिन एक काम को छोड़वा कर दूसरे काम में लगाना पड़ता है।

चुनावी आचार संहिता के कारण विकास कार्य भी बार-बार रुकते हैं।सरकारी मशीनरी के जिम्मे आम तौर से जो काम रहते हैं,उनमें भी बाधा पड़ती है।देश नाहक इतना नुकसान क्यों सहे जबकि संविधान निर्माताओं ने एक ही साथ चुनाव की प्रावधान किया था ?

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किन्नरों के लिए रोजगार

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ओड़िशा के भुवनेश्वर नगर निकाय ने बकाया करों की वसूली का काम

सन 2019 में किन्नरों को सौंपा था।

खबर आई थी कि किन्नरों ने स्वयं सहायता समूह बनाकर यह काम शुरू किया था।

ओड़िशा सरकार ने उन्हें कुछ अधिकार भी दिए थे।

आगे उस स्वयं सहायता समूह की कैसी उपलब्धि रही,यह पता नहीं चल सका।

   पता लगाना चाहिए कि नए तरह के उस प्रयास का अंततः कैसा नतीजा आया। सकारात्मक नतीजा आया तो वह काम बिहार में भी किया जाना चाहिए।

  इससे एक तरफ तो कर वसूली में रफ्तार आएगी,दूसरी तरफ किन्नरों को रोजगार मिलेगा।

 अभी किन्नर आय के लिए परपंरागत तरीके अपनाते हैं।पहले तो शिशु जन्म के अवसर पर उन्हें लोगों से कुछ मिलता रहा।अब उन्हें वह काफी नहीं पड़ रहा है।

दूसरे मांगलिक अवसरों पर भी लोगों के यहां किन्नर पहुंच जाते हैं।

अधिक से अधिक वसूली के लिए जोर-जबर्दश्ती होने लगती है।कई बार कानून -व्यवस्था की समस्या भी खड़ी हो जाती है।ं

ऐसे में भुवनेश्वर फार्मला बीच का रास्ता है।

किन्नरों की वसूली -क्षमता का नगर निकाय लाभ उठाएं।

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 नगरों का विस्तार

.........................

 शोभन बाइपास पर एम्स बनाने से दरभंगा नगर का विस्तार होगा।दूसरी ओर 

बीच नगर में एम्स जैसे बड़े संस्थान के निर्माण से भीड़भाड़ बढ़ेगी।उससे रोड जाम और प्रदूषण होंगे।

शोभन के पक्ष में बिहार सरकार का निर्णय सही है।इसी तर्ज पर अन्य नगरों का भी विस्तार होना चाहिए।

यह बात प्रादेशिक राजधानी पटना पर भी लागू होनी चाहिए।

नए संस्थान बीच पटना के बदले आसपास के इलाकांे में स्थापित हों।

बहुत पहले इन पंक्तियों के लेखक ने इस बात की जरूरत बताई थी कि पटना कोर्ट-कलक्टरी,पी.एम.सी.एच. और पटना विश्व विद्यालय में से किसी एक को 

नगर से बाहर किया जाना चाहिए।

खैर,वह तो नहीं हुआ।पर,एक काम अच्छा हो रहा है।यानी,पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय को बख्तियारपुर के पास ले जाने का काम।

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भूली बिसरी यादें 

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डा.राममनोहर लोहिया सन 1958 में माखनलाल चतुर्वेदी से मिलने खंडवा गए थे।

‘‘पुष्प की अभिलाषा’’ के रचयिता चतुर्वेदी जी से डा.लोहिया ने कहा,‘‘दादा,हमारी पार्टी ने अंग्रेजी अखबारों की ‘होलिका’जलाने का निर्णय किया है।हिन्दी के विकास में अंग्रेजी अखबार बाधक हैं।ये हमारी गुलाम प्रवृति को कायम रखे हुए हैं।

हम इसके लिए आपका आशीर्वाद चाहते हैं।इस पर चतुर्वेदी जी ने कहा कि ‘‘लोहिया जी, हिन्दी के प्रति आपकी चिंता से मुझे प्रसन्नता हुई।

राजनीति में मुझे इतनी गहन चिंता अन्य किसी के मस्तिष्क में अंकित नहीं दिखाई दे रही है।यह बहुत बड़ी बात है।

आपकी वाणी ने हमारी निराशा को कम किया है।

लेकिन हिन्दी के विकास के लिए अंग्रेजी अखबारों को जलाना जरूरी नहीं है।यदि हम जलाते हैं तो अपनी ही कमजोरी का इजहार करते हैं।’’

दादा से उनकी कुछ और बातें भी हुईं और डा.लोहिया ने अंगे्रजी अखबारों को जलाने का अपना विचार त्याग दिया।  

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और अंत में

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‘स्मार्ट वाच’ में लगे जासूसी कैमरे में रिश्वतखोरी का दृश्य कैद किया गया था।

कर्नाटका में पिछले दिन इस विधि से 40 लाख रुपए स्वीकार करते हुए जो व्यक्ति पकड़ा गया था,वह वहां के एक सत्ताधारी विधायक का बेटा है।

उस विधायक को कोर्ट ने जमानत दे दी है।पर लोकायुक्त ने जमानत के खिलाफ ऊपरी अदालत मंे अपील कर दी है।

 स्मार्ट वाॅच में जासूसी कैमरे को फिट करवाने की पहल अनुकरणीय है।क्यों न इसका इस्तेमाल अन्य राज्यों में भी हो ? 

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