कानोंकान
सुरेंद्र किशोर
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सावधानियां बरती जाएं तो महा गठबंधन का ही भारी रहेगा पलड़ा
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बिहार में राजग की अपेक्षा, महा गठबंधन का पलड़ा फिलहाल भारी नजर आ रहा है।
सन 2024 के लोक सभा चुनाव तक भी भारी ही रहने की उम्मीद है बशत्र्ते महा गठबंधन के नेताओं और बिहार सरकार की ओर से कुछ सवधानियां बरती जाएं।
इसे आप कुछ लोगों की ‘धारणा’ कहें या हकीकत ,किंतु यह सच है कि राज्य में कानून-व्यवस्था की हालत आज सही नहीं है।
साथ ही, महा गठबंधन के कुछ नेतागण रामचरित मानस और भारतीय सेना पर सवाल उठा कर भाजपा को जाने-अनजाने मजबूत बना रहे हैं।
गत साल जून में उत्तर प्रदेश के आजम गढ़ और राम पुर में लोक सभा के उप चुनाव हुए थे।
मुसलमान-यादव बहुल दोनों क्षेत्र समाजवादी पार्टी के गढ़ माने जाते थे।
पर, उप चुनाव में दोनों सीटों पर भाजपा जीत गई।
क्योंकि सन 2017 में सत्ता में आने के बाद योगी आदित्यनाथ ने कानून-व्यवस्था की बिगड़ी स्थिति को काफी हद तक सुधार दिया।
बिहार में भी नीतीश कुमार के प्रारंभिक शासन काल में कानून -व्यवस्था की स्थिति काफी अच्छी थी।हालांकि तब न तो बिहार में कहीं बुलडोजर चला था और न ही पुलिस की गाड़ियां पलटी थीं।
नतीजतन सन 2010 के बिहार विधान सभा चुनाव में राजग को भारी बहुमत मिल गया था।
यदि आज भी बिहार में कानून -व्यवस्था की स्थिति सन 2005-10 जैसी बना दी जाए तो इस राज्य में सचमुच राजग को कोई खास चुनावी सफलता नहीं मिलेगी।
हां, अब बिहार में जहां बुलडोजर चलाने की जरूरत हो, तो अनेक लोग यह चाहते हैं कि वह भी चलना ही चाहिए।
पर, क्या ऐसा हो पाएगा ?
यह तो महा गठबंधन के नेताओं की इच्छा शक्ति पर निर्भर करेगा।
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कहां खो गया लोहिया नगर
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लोहियावादियों के राज में लोहिया नगर कहीं खो गया।
सन 1967 में पटना के दक्षिणी हिस्से में लोहिया नगर बसाया गया था।
लोहिया नगर करीब नौ सौ एकड़ में फैला हुआ था।
केंद्र सरकार ने वहां जो पोस्ट आॅफिस स्थापित किया,उसके बोर्ड पर भी लोहिया नगर लिखा हुआ है।
डा.राम मनोहर लोहिया की मूर्ति उसी मुहल्ले में लगाई गई।
पर, पुलिस थाने के साइनबोर्ड पर उस मुहल्ले का
नाम कंकड़बाग लिखा हुआ है।
कंकड़बाग उस इलाके का पुराना नाम है।
इन पंक्तियों का लेखक करीब 20 साल तक लोहिया नगर में रहा था।
उन दिनों लोगबाग उसे लोहिया नगर ही कहते थे।
पर, अब सब कंकड़बाग कहते हैं। अच्छी-बुरी घटना लोहिया नगर में घटती है तो अखबारों में उसका विवरण कंकड़बाग के नाम से छपता है।क्योंकि पुलिस और सार्वजनिक कार्यकर्ता कंकड़बाग ही मीडिया को बताते हैं।
यदि लोहिया नगर के प्रवेश और निकास द्वारों पर लोहिया नगर नाम के बड़े-बड़े बोर्ड लग जाएं तो नई पीढ़ी भी जान पाएगी कि लोहिया नाम के एक स्वतंत्रता सेनानी हुआ करते थे जिन्हें बिहार बहुत पसंद था।
डा.लोहिया ने सन 1966-67 में जो गैर कांगे्रसवाद चलाया,उसको सबसे अधिक समर्थन तब के बिहार से ही मिला था।
सन 1990 से आज तक उन लोगों की ही बिहार में सरकार रही है जो लोहिया का नाम लेते हैं।फिर भी लोहियानगर गुम हो गया ! आश्चर्य है।
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भूली-बिसरी यादें
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डा.बी.आर.आम्बेडकर ने सन 1937 में कहा था कि इस देश के मंत्रियों को पर्याप्त वेतन मिलना चाहिए।क्योंकि तभी प्रतिभाएं इस पद के लिए सामने आएंगी।
आम्बेडकर ने यह बात बम्बई विधान सभा में कही थी। वे बम्बई विधान सभा के सदस्य थे।
यह हमेशा ही विवादास्पद मुद्दा रहा है कि इस गरीब देश में मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के लिए कितना वेतन तय किया जाना चाहिए।
याद रहे कि विधायक और सांसद ही अपने तथा मंत्रियों के लिए वेतन -भत्ता का निर्धारण करते हैं।
विधायिका में पेश तत्संबंधी विधेयक के जरिए यह तय होता है।
इस विषय में एक पक्ष यह कहता है कि भारत के आम लोगों की औसत आय के अनुपात में ही जन प्रतिनिधियों के वेतन-भत्ते भी तय होने चाहिए।दूसरा पक्ष यह कहता है कि काम और पद की जरूरतों के अनुसार वेतन तय होने चाहिए।
वैसे आज की स्थिति में न्यायसंगत बात यही होगी कि दोनों के बीच का रास्ता निकाला जाना चाहिए।
यानी, काम और पद की जरूरतों पर ध्यान रखा जाए।साथ ही, सरकार की आय को भी ध्यान में रखा जाए।
हां,मंत्रियों,सांसदों और विधायकों के वेतन-भत्ते तय करने का काम विधायिका न करके कोई विश्वसनीय सरकारी संस्थान करे तो उससे जन प्रतिनिधियों की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
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और अंत में
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अनुभवी लोग बताते हैं कि भूख से थोड़ा कम ही भोजन करना चाहिए।
लेकिन अपने यहां समय -समय पर अति भोजन की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है।
गत महीने अधिकाधिक मछली खाने की प्रतियोगिता कराई गई।
एक साथ तीन किलोग्राम मछली खाने में सफल हुए मदन कुमार को 10 हजार रुपए का इनाम मिला।
इसी तरह कभी आम खाने की प्रतियोगिता होती है तो कभी दही खाने की।
इनाम के लोभ में कई लोग अधिक खाने का अभ्यास करते रहते हैं।
क्या कभी इस बात का सर्वेक्षण हुआ है कि अति भोजन का उनका शारीरिक स्वास्थ्य पर कैसा असर पड़ता है ?
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