शुक्रवार, 3 मार्च 2023

           कोई सुप्रीम कोर्ट की सुने तब तो !

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      कोई न सुने तो सुप्रीम कोर्ट अब खुद पहल करे

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                   सुरेंद्र किशोर

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   भ्रष्टाचार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने सन 2003 के नवंबर में बड़ी 

पीड़ा के साथ कहा था कि 

‘‘इस देश में भ्रष्टाचार विरोधी कानून विफल साबित हो रहा है।’’

  भारत की सर्वोच्च अदालत ने ग्रेट ब्रिटेन के प्रधान मंत्री राॅबर्ट वालपोल(1676-1745) की पंक्तियां दुहराते हुए तब यह भी कहा था कि

 ‘‘हर व्यक्ति बिकाऊ है, इसे भले ही हर व्यक्ति पर लागू नहीं किया जा सकता।

लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह सच्चाई से बहुत अधिक दूर भी नहीं है।’’

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सन 2003 से पहले और बाद में भी न जाने कितनी बार सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह की राय व्यक्त की है।

पर, कोई सुपीम कोर्ट की सुने तब तो !!!

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2 मार्च 23

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पुनश्चः

  गत 24 फरवरी, 23 को भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 

‘‘आम आदमी भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है।

हर स्तर पर जवाबदेही तय करने की जरूरत है।’’

अदालत ने यह भी कहा कि 

‘‘किसी भी सरकारी दफ्तर में जाएं तो आप बिना डरे बाहर नहीं आएंगे।’’

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चीजें इतनी बिगड़ चुकी हैं कि चुनाव लड़ने वाला कोई भी सत्ताधारी दल अब ऐसी स्थिति पैदा नहीं कर सकता जिसके तहत आम आदमी बिना डरे या बिना अपमानित हुए या बिना रिश्वत दिए सरकारी आॅफिस से बाहर निकल सके।

हां,खुद सुप्रीम कोर्ट यह काम जरूर कर सकता है।

किस अधिकार से ?

मैं बताता हूं।

संविधान निर्माता दूरदर्शी थे।

इसीलिए उन लोगों ने अनुच्छेद-142 में अद्भुत प्रावधान किया।

वे जानते थे कि एक दिन हमारे यहां के अनेक लोग ऐसे बिगड़ैल बन जाएंगे कि मौजूदा संवैधानिक -कानूनी प्रावधानों के जरिए वे काबू में नहीं आ पाएंगे।

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संविधान के अनुच्छेद-142 में प्रदत्त विशेष अधिकार का इस्तेमाल करते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने सन 2019 में बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि का मामला सलटा दिया।

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   अनुच्छेद-142 में कहा गया है कि ‘‘उच्चत्तम न्यायालय अपनी अधिकारिता(जूरिडिक्शन) का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश कर सकेगा जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से ,जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाए,और जब तक इस निमित इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक,ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगी।’’

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यदि सुप्रीम कोर्ट जल्द ऐसा कुछ नहीं करेगा तो इस देश की तरह -तरह की लालची शक्तियां एक बार फिर इस देश को 

बेच कर खा सकती हैं।

 जिस तरह मध्य युग में और ब्रिटिश काल में आक्रांताओं ने हमारे देश के 

लालची,सत्तालोलुप और फूटपरस्त लोगों का इस्तेमाल करके इस देश को लंबे समय तक गुलाम बना लिया था।

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2 मार्च 23


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