‘फोन शिष्टाचार’
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सुरेंद्र किशोर
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मिस्टर क-हलो !
मिस्टर ख-हलो !
क-पहचाने ?!
ख-नहीं पहचाने।
क-दिमाग पर जोर डालिए।
ख-डाल रहा हूं।
फिर भी आपकी आवाज नहीं पहचान पा रहा हूं।
क-मैं आपका करीबी रहा हूं।
इतनी जल्दी मुझे भूल गए ?
ख-नाम तो बता दीजिए।
क्यों पहेली बुझा रहे हैं ?
क-मैं कामेश बोल रहा हूं।
ख-कौन कामेश ?
कहां से बोल रहे हैं ?
कामेश नाम के मेरे कई दोस्त हैं।
क-अब लीजिए !!
इस बीच आपके कई दोस्त बन गए ?
खैर, मैं बताता हूं।
मैं रांची से रामेश्वर कामेश बोल रहा हूं।
ख-खिन्न होते हुए -पहले ही बता दिए होते।
इतनी देर से भूमिका क्यों बांध रहे थे ?
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खैर,यह संवाद कोई अकेला संवाद नहीं है।
अनेक लोग जब किसी को फोन करते हैं तो बिना अपना नाम
बताए,बातेें शुरू कर देते हैं।
क्या वे समझते हैं कि उनकी आवाज अमिताभ बच्चन जैसी या लालू यादव जैसी है जिनकी आवाज करोड़ों लोगों के लिए जानी -पहचानी होती है ?
यदि उधर के अपरिचित व्यक्ति से आप संकोचवश नाम नहीं पूछ पाते तो वह लंबी बात करने के बाद फोन रख देगा।
फिर भी आपको कुछ समझ में नहीं आएगा कि फोन करने वाला कौन था।
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अब बताइए।इसमें कसूर किसका है ?
उसी का जिसने काॅल किया।
यदि वह ‘फोन शिष्टाचार’ जान रहा होता तो फोन करने के साथ ही पहले अपना नाम,परिचय आदि बता देता।
फिर पूछता कि क्या आपसे बात करने का यह सही समय है ?
जब उसे सकारात्मक जवाब मिल जाता तो फिर बातचीत शुरू होती।
हां,एक बात और ।
‘फोन बतकही’ को कभी मुलाकात का विकल्प मत बनाइए।
अन्यथा, कुछ लोग आगे से आपका काॅल नहीं उठाएंगे।
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21 मार्च 23
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