पहले पिछड़े समुदाय के नेता सत्ताधारी कांग्रेस
से ‘आरक्षण’ मांगते थे।
अब खुद कांग्रेस पिछड़ों के
नेता से अपने लिए लोक सभा की सीटें
मांगने को मजबूर है।
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सुरेंद्र किशोर
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लोक सभा,राज्य सभा और बिहार विधान सभा के सदस्य रहे राम अवधेश सिंह अस्सी के दशक में जो बात कहते थे,वह अब सच साबित हो रही है।
सन 1969 में आरा से विधायक और 1977 में बिक्रमगंज से सांसद रहे दिवंगत सिंह ने मुझसे कहा था कि कांग्रेस सरकार (मंडल आयोग की रपट के आधार पर)पिछड़ों को आरक्षण नहीं दे रही है।
पर,एक दिन ऐसा आएगा कि जब कांग्रेस ही अपने लिए हमसे आरक्षण मांगेगी।
याद रहे कि मंडल आयोग की रपट 1980 में ही आ गई थी।
उसके बाद उस रपट पर तीन बार संसद में विस्तृत चर्चा हुई।
हर बार चर्चा के बाद कांग्रेसी सरकार के गृह मंत्री ने सदन में कहा कि इसे लागू करने का सरकार का कोई इरादा नहीं है।
पर,जब 1990 में वी.पी.सिंह की गैर कांग्रेसी सरकार ने इसे लागू किया कि आरक्षण विरोधियों ने कहा कि बिना किसी चर्चा के सिंह ने यह लागू कर दिया।
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अब सन 2024 में जब लोक सभा का चुनाव सामने है तो कांग्रेस, राजद से अपने लिए तालमेल में जितनी सीटें लड़ने के लिए मांग रही है,राजद उतनी सीटें नहीं दे रहा है।दरअसल कांग्रेस अपनी वास्तविक ताकत के अनुपात में अधिक सीटें मांग रही है।
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आरक्षण एक भावनात्मक मुद्दा भी रहा है।
2018 में संसद में जब 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण विधेयक पेश हुआ तो राजद ने उसका विरोध कर दिया।नतीजतन 2019 के लोक सभा चुनाव में राजद को एक भी सीट नहीं मिली।
रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह जैसे राजद के अच्छे उम्मीदवार भी लोक सभा चुनाव हार गये।
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अब राजद कहता है कि वह ए टू जेड की पार्टी है।पर,देर हो चुकी है।
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राजद नेताओं को जिन बुद्धिजीवियों ने सवर्ण आरक्षण का विरोध करने की सलाह दी,उन लोगों ने राजद को नुकसान पहुंचाया।
उसी तरह जिन बुद्धिजीवियों ने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को समय -समय पर मंडल आरक्षण का विरोध करने की सलाह दी,उन लोगों ने कांग्रेस का भारी नुकसान कर दिया।
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याद रहे कि आरक्षण का प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद-340 में कर दिया गया है।
मंडल आयोग को जब वी.पी.सिंह सरकार ने लागू किया तो वह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया था।सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में उस पर अपनी मुहर लगा दी।
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कांग्रेस को नरेंद्र मोदी सरकार से सीखना चाहिए।मोदी सरकार सभी जातियों को विश्वास में लेकर चल रही है ।
उन्हें भरसक सत्ता में हिस्सेदारी भी दे रही है।इसीलिए भाजपा मजबूत होती जा रही है।
इसके अलावा भ्रष्टाचार विरोध और जेहाद विरोध मोदी सरकार का यू.एस.पी. है।
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इन दिनों जांच एजेंसियों से पीड़ित प्रतिपक्ष का मुख्य प्रश्न यह है कि भ्रष्टाचार के विरोध में एकतरफा कार्रवाई क्यों हो रही है ?
यदि यह सच है तो भाजपा विरोधी दल डा.सुब्रह्मण्यम सवामी के दिखाए गए रास्ते पर क्यों नहीं चल रहे हैं ?इसलिए नहीं चल रहे हैं क्योंकि उन्हें भाजपा नेताओं के खिलाफ पोख्ता सबूत नहीं मिल रहे हैं।या कोई और बात है ?
जय ललिता के भ्रष्टाचार,नेशनल हेराल्ड के घोटाले और 2 जी मामले में कार्रवाई शुरू कराने के लिए डा.स्वामी को किसी सरकार से मदद लेने की जरूरत नहीं पड़ी थी।तीनों मामलों में स्वामी को सफलता मिली।
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दिल्ली से एक पत्रकार ने कल मुझसे पूछा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के बाद लालू प्रसाद के वोट पर कितना फर्क पड़ा था।
वे इस बात का पूर्व अनुमान लगाना चाहते हैं कि केजरीवाल के चुनावी भविष्य पर अब कैसा असर पड़ेगा ?
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मैंने उन्हें बताया कि चारा घोटाला मामले में 1997 में पहली बार लालू प्रसाद जेल गये थे।
उससे पहले मंडल आयोग की रपट की पक्षधरता के कारण लालू की पार्टी को 1991 के लोक सभा चुनाव में बिहार में और 1995 के बिहार विधान सभा चुनाव में पूर्ण बहुमत मिला था।
लालू प्रसाद ने पिछड़ों को सीना तान कर चलना सिखाया था।पिछड़ों के लिए उतना बड़ा काम किसी अन्य नेता ने उससे पहले नहीं किया था।
पर 1997 के बाद यानी सन 2000 के बिहार विधान सभा चुनाव में लालू प्रसाद के दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला।
सजा होने पर और अधिक फर्क आया।
पहली बार चारा घोटाले में लालू प्रसाद को 2013 में सजा हुई।सजा के तत्काल बाद राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा था कि लालू जी को सजा होने के बाद बिहार में जो सहानुभूति लहर चलेगी,उसके बल पर हम बिहार की लोक सभा की सभी 40 सीटें जीत जाएंगे।
पर,इस दावे के विपरीत 2014 के लोक सभा चुनाव में राजद यानी लालू प्रसाद की पार्टी को बिहार में लोक सभा की सिर्फ 4 सीटें मिलीं।
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25 मार्च 24
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