आज का वह ऐतिहासिक दिन
जब आपातकाल हटा
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21 मार्च 1977 को इंदिरा गांधी सरकार ने जाते-जाते
इमर्जेंसी हटा ली।
जिन लोगों पर इमर्जेंसी का कहर नहीं ढहा और जिन
सजग पाठकों ने सेंसर का जहर पान नहीं किया,उन्हें इमर्जेंसी के हटने से मिली राहत के सुखद अनुभव का अनुमान नहीं।
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बस एक लाइन में यह समझ लीजिए कि इंदिरा गांधी की सरकार के एटाॅर्नी जनरल ने तब सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया था कि
‘‘आज यदि शासन किसी नागरिक की जान भी ले ले,तौभी उसके खिलाफ अदालत की शरण नहीं ली जा सकती।
क्योंकि संविधान में मिले जीने के अधिकार के साथ-साथ सभी मौलिक अधिकार स्थगित कर दिये गये हैं।सुप्रीम कोर्ट ने अनुशासित बालक की तरह इंदिरा सरकार के उस आदेश पर अपनी मुहर लगा दी थी।
जबकि अंग्रेजों के राज में भी पुलिस की गोली से निर्दोष व्यक्ति की हत्या के खिलाफ अदालत की शरण ली जा सकती थी।आज तो इस देश में किसी जेहादी आतंकवादी के लिए भी सुप्रीम कोर्ट आधी रात में भी खुल जाता है।
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इमर्जेंसी में इस देश का क्या हाल था,खुद मैंने उसे देखा,झेला और महसूस किया था।मैं खुद तब मेघालय में भूमिगत था।
लगता था कि ये अंधेरी रातें कभी समाप्त ही नहीं होंगी।
पर,मेरी बात पर मत जाइए।
अभी नेहरू-इंदिरा के दोस्त देश सोवियत संघ के एक अखबार ने क्या लिखा था-उसे यहां पढ़ लीजिए।
तब दैनिक अखबार ‘‘इजवेस्तियां’’ने लिखा था कि
‘‘आपात् स्थिति के दौरान सत्ता का दुरुपयोग और लोगों पर ज्यादतियां श्रीमती गांधी के पतन का कारण बनी।’’
मोरारजी देसाई सरकार के गठन के बाद जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि
‘‘नयी सरकार का पहला काम यह होना चाहिए कि पिछले कुछ वर्षों में जनता के मन में जो भय पैदा कर दिया गया है,उसे हटाया जाये।
सरकार लोगों को इस बात की पूरी आजादी दे कि उन्हें जो भी कहना हो, वे कहें।
लोग महसूस करें कि यह उन्हीं की सरकार है।’’
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25 जून, 1975 को प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर दमघोंटू इमर्जेंसी इसलिए लगाई क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रायबरेली लोक सभा क्षेत्र से इंदिरा गांधी का चुनाव रद कर दिया था।
1971 के चुनाव के दौरान श्रीमती गांधी पर जन प्रतिनिधित्व कानून की दो धाराओं के उलंघन का आरोप साबित हो गया था।
चूंकि उन धाराओं को इंदिरा जी के खिलाफ केस की जरूरत के अनुसार संसद से बदलवा कर उन्हें पिछली तारीख से लागू करवाने का काम इमर्जेंसी लगाकर और सारे प्रतिपक्षी नेताओं को जेलांे में ठूंस कर ही किया जा सकता था।
इसलिए पूरे देश को एक विशाल कारागार बना दिया गया।
तब का सुप्रीम कोर्ट इतना आाज्ञाकारी हो चुका था कि उसने
जन प्रतिनिधित्व कानून में उस संशोधन को पिछली तारीख से लागू करना भी मंजूर कर लिया ताकि इंदिरा जी की लोस सभा की सदस्यता बरकरार रह जाये।यही हुआ भी।
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21 मार्च 24
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