मंगलवार, 26 मार्च 2024

     भूली -बिसरी यादें

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       सुरेंद्र किशोर

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यह बात मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्रित्वकाल की है।

स्विस बैंकों पर अमेरिका का भारी दबाव पड़ा।

उस कारण अपने यहां के बैंकों खातों की गोपनीयता से संबंंिधत नियमों में ढील देने का स्विस बैंक ने निर्णय किया।

यानी, खातेदारों के नाम जाहिर करने लगा।

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 इससे घबरा कर भारत सहित दुनिया भर के काला धन वालों ने पास के ही लाइखटेंस्टाइन देश के एल.जी.टी. बैंक की ओर रुख कर लिया।

वह बैंक वहां के राजा के परिवार का है।

 वहां गोपनीयता की गारंटी थी।(ताजा हाल नहीं मालूम।)

    एल.जी.टी. बैंक का एक कम्प्यूटर कर्मचारी हेनरिक कीबर कुछ कारणवश बैंक प्रबंधन से बागी हो गया। 

उसे नौकरी से निकाल दिया गया। 

वह बैंक के सारे गुप्त खातेदारों के नाम पते वाला वाला कम्प्यूटर डिस्क लेकर फरार हो गया। 

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इस तरह दुनिया के अनेक देशों के भ्रष्ट लोगों के गुप्त खातों का विवरण कीबर के पास आ गया।

 उसने उस पूरी सी. डी.की काॅपी को जर्मनी की खुफिया पुलिस को 40 लाख पाउंड में बेच दिया। 

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ब्रिटेन ने सिर्फ अपने देश के गुप्त खातेदारों के नाम उससे लिए। 

इसलिए उसे सिर्फ एक लाख पाउंड में विवरण मिल गया।

जर्मनी भारत सरकार को भारत के लोगों के गुप्त खातों का विवरण मुफ्त देने को तैयार था।

पर,भारत सरकार ने लेने से इनकार कर दिया।

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 अमेरिका, आस्ट्रेलिया, बेल्जियम और अन्य दूसरे देश कीबर से बारी -बारी से अपने -अपने देश के भ्रष्ट लोगों के गुप्त खातों के विवरण ले गए।  उस विवरण के आधार पर कार्रवाई करने पर सरकारों को टैक्स के रूप में भारी धन राशि मिल गई।

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  कीबर भारत सरकार को भी वह जानकारी बेचने को तैयार था।

इस संबंध में एल.के आडवाणी ने मनमोहन सरकार को पत्र लिखा।

पर, भारत सरकार ने नहीं खरीदा।

इतना ही नहीं,यह भी खबर आई कि मनमोहन सरकार ने जर्मनी सरकार से अनौपचारिक रूप से यह कह दिया कि भारत से संबंधित बैंक खातों को जग जाहिर नहीं किया जाए।

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      याद रहे कि लाइखटेंस्टाइन के उस बैंक में बड़ी संख्या में भारतीयों के भारी मात्रा में काला धन जमा थे।

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21 मार्च 24


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