रविवार, 31 मार्च 2024

‘भारत रत्न’ कर्पूरी ठाकुर के बारे में 

एक सनसनीखेज जानकारी

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क्या 1984 में कर्पूरी जी की हत्या की 

साजिश एक नेता घर रची गयी थी

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सुरेंद्र किशोर

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बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर ने 11 सितंबर, 1984 को बिहार सरकार के मुख्य सचिव के.के.श्रीवास्तव को एक गोपनीय पत्र (संख्या-101/वि.स./आ.स.)

लिखा था।

उन्होंने लिखा कि ‘‘मैं एक आवश्यक ,किंतु गोपनीय विषय की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूं।

 इस अगस्त महीने में श्री ..............के पटना स्थित आवास में एक खानगी मिटिंग हुई थी जिसमें सिर्फ दस आदमी हाजिर थे।

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श्री...............ने उस मिटिंग में कहा कि ...दस लाख रुपए इकट्ठा करना चाहिए और इस राशि से आग्नेयास्त्र खरीदना चाहिए।

  इन आग्नेयास्त्रों का इस्तेमाल हरिजनों और पिछड़ों के तेजस्वी और लड़ाकू तत्वों का सफाया करने के लिए किया जाना चाहिए।

  तीन महीने बाद कर्पूरी ठाकुर के औरंगाबाद और गया जिले में आने पर बिलकुल साफ हो जाना चाहिए।’’

मैं यह पत्र सूचनार्थ लिख रहा हूं ताकि समय पर काम आवे।

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               आपका 

             कर्पूरी ठाकुर  

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पुनश्चः

दरअसल उस मिटिंग में जो लोग मौजूद थे ,उनमें से एक व्यक्ति ने इस साजिश की जानकारी पूर्व मंत्री रामलखन सिंह यादव और दूसरे ने पूर्व मंत्री कपिलदेव सिंह को दे दी थी।फिर यह बात कर्पूरी ठाकुर तक पहुंची।

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उधर मुख्य सचिव ने कर्पूरी ठाकुर की चिट्ठी मुख्य मंत्री चंद्रशेखर सिंह को दिखाई।

मुख्य मंत्री ने निदेश दिया कि ‘‘किस व्यक्ति द्वारा इन्हें सूचना मिली,इसकी जानकारी प्राप्त कर पूछताछ की जानी चाहिए।’’

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बाद में इस प्रसंग में क्या हुआ ,वह सब पता नहीं चल सका।

पर,जब 1988 में कर्पूरी ठाकुर की संदेहास्पद स्थिति में मौत हुई तो पूर्व मुख्य मंत्री रामसुन्दर दास ने उनकी मौत की जांच कराने की केंद्र और राज्य सरकार से मांग की थी।

  बिहार सरकार के पूर्व राज्य मंत्री व विधान सभा के सदस्य रघुवंश प्रसाद सिंह ने 22 फरवरी, 1988 को प्रधान मंत्री राजीव गांधी को पत्र लिखकर उनसे मांग की थी कि कर्पूरी ठाकुर की मौत की उच्चस्तरीय जांच कराई जाये।

रघुवंश जी ने,जो बाद में केंद्र में मंत्री बने थे ,प्रधान मंत्री को अपने पत्र में लिखा कि ‘‘....प्रधान मंत्री ने दो वर्ष पूर्व बिहार में समाजशास्त्रीय अध्ययन कराया था कि कर्पूरी ठाकुर के नहीं रहने पर बिहार की राजनीतिक स्थिति का क्या होगा ?

कर्पूरी जी का जो जनाधार है,वह कहां जाएगा ?

आपके द्वारा निदेशित यह समाजशास्त्रीय अध्ययन भी अब शंकाओं की परिधि में आ गया है।

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