अद्भुत प्रतिभाशाली दिवंगत डा.श्रीकांत
जिचकर की याद में
------------------
14 सितंबर 1954--2 जून 2004)
----------------
सुरेंद्र किशोर
---------------
सर्वाधिक शिक्षित होने का विश्व रिकाॅर्ड कायम किया था
डा.जिचकर ने।
वे राजनीति में भी सक्रिय थे।
वहां भी काफी कारगर साबित हुए।
आज पढ़े-लिखे लोगों के लिए राजनीति में कितनी
जगह बच गई है ?
हां, धनवानो-बाहुबलियों आदि के लिए जगह की कोई कमी नहीं
-------------------
‘‘बेटा, बड़ा होकर जिचकर की तरह बनना’’
-------------------------
नागपुर के अभिभावक गण
अपने बच्चों से कभी यही कहा करते थे।
संभवतः आज भी कहते होंगे !
-------------
आज देश के विभिन्न क्षेत्रों में,खासकर राजनीति में, कितनी ऐसी हस्तियां मौजूद हैं, जिनकी ओर इंगित करके कोई अभिभावक यह कह सके कि ‘‘बेटा,बड़ा होकर इनके जैसा ही बनना ?’’
------------------
दिल्ली में कितने ऐसे नेता मौजूद हैं जिन्हें कोई पिता अपनी संतान का स्थानीय अभिभावक बनाना पसंद करेगा ?
-------------------
राज्य सभा के सदस्य रहे भाजपा नेता
तरुण विजय ने नागपुर के डा. जिचकर के बारे में पांचजन्य (13 जून 2004)में लिखा था--
‘‘विद्वान शिरोमणि यौवन तेज से भरपूर सुदर्शन चेहरा एवं वाणी मेें नूतन ब्राह्मण का परिमर्जित माधुर्य।’’
---------------
पिछड़ी जाति में जन्मे डा.जिचकर ने खुद कहा था कि
‘‘अब मैं दीक्षित हो गया हूं।
दीक्षा प्राप्त करने के बाद ब्राह्मणत्व की श्रेष्ठत्तम परंपरा में सम्मिलित हो गया हूं।
मैं जन्म से ब्राह्मण नहीं था।
परंतु घर में अग्नि प्रतिष्ठापित कर अग्निहोत्र धर्म का नियमानुसार पालन कर और अब सोम यज्ञ द्वारा दीक्षित होने के बाद मैं स्वयं को दीक्षित कहने का अधिकारी हो गया हूं।’’
------------------
डा. जिचकर न सिर्फ महाराष्ट्र सरकार के मंत्री थे बल्कि राज्य सभा के सदस्य भी थे।
वह महाराष्ट्र विधान परिषद के भी सदस्य रहे।
उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर एक बार लोक सभा का चुनाव भी लड़ा था।
पर, वे विफल रहे।
सत्तर के दशक में इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया था।
जिचकर एम.बी.बी.एस. और एम.डी. थे।
वह एलएल.बी., एलएल.एम. और एम.बी.ए. भी थे।
उन्होंने पत्रकारिता की भी डिग्री ली थी।
दस विषयों में एम.ए. थे।
1973 से 1990 के बीच उन्होंने कुल 20 डिग्रियां लीं।
सारी परीक्षाओं में उन्होंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्णता हासिल की।
उन्हें कई स्वर्ण पदक भी मिले।
वह संस्कृत में डि लिट थे।
1978 में आई.पी.एस.बने।
इस्तीफा देने के बाद आई.ए.एस.बने।
1980 में महाराष्ट्र विधान सभा के सदस्य बने।
मंत्री भी बने।
उनके पास 14 विभाग थे।
------------------
डा. जिचकर का नाम लिम्का बुक आॅफ वल्र्ड रिकाॅर्ड में भारत के सबसे अधिक योग्य और निपुण व्यक्ति के नाते दर्ज है।
वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने जीरो बजट की अवधारणा को कार्यरूप दिया था।
डा. जिचकर को समय -समय पर याद करके नागपुर का अभिभावक अपने बच्चों से कहता है कि ‘बेटा, बड़ा होकर श्रीकांत जिचकर की तरह बनना। ’
-------------------------
वह आधुनिक राजनीति में संभवतः एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनको कोई पिता दिल्ली में अपनी संतान का स्थानीय अभिभावक बना सकता था।
डा. जिचकर ने नागपुर में एक विद्यालय की स्थापना की थी ।
उस स्कूल के बारे में अभिभावकों से अपील करते हुए अखबार में विज्ञापन छपा था,
‘‘ डा. श्रीकांत जिचकर जिस विद्यालय में अपने बेटे को प्रवेश दिला रहे हैं, क्या आप अपने बच्चों को भी उसी विद्यालय में पढ़ाना चाहेंगे ? ’’
इस विज्ञापन के छपते ही सैकड़ों अभिभावकों की भीड़ लग गई थी।
यानी, उन्होंने एक ऐसा गुणवत्तापूर्ण स्कूल स्थापित किया था जिसमें उनका बेटा भी पढ़ सके।
जिचकर नागपुर छात्र संघ के अध्यक्ष भी थे।
इसके अलावा भी उनके पास डिग्रियां और उपलब्धियां थीं।
सन् 1983 में दुनिया के दस सर्वाधिक प्रमुख युवा व्यक्तियों की सूची में शामिल होने का सम्मान उन्हें मिला था।
वह सन 1992 में राज्य सभा के सदस्य चुने गए।
पी.वी.नरसिंह राव उन्हें पसंद करते थे।
राव ने डा. जिचकर को इंदिरा गांधी से मिलवाया था।
डा.जिचकर ने अधिकतर देशों की यात्राएं की थीं।
उनके निजी पुस्तकालय में 52 हजार पुस्तकें थीं।
-------------------
वे छायांकन, चित्र कला, रंगकर्म के भी जानकार थे।
उन्हें संपूर्ण गीता कंठस्थ थी।
साथ ही, उन्होंने वेदों और उपनिषदों का गहन अध्ययन किया था।
खेतिहर परिवार के जिचकर के साथ एक सुविधा अवश्य थी कि पैसे की कमी के कारण उनका कोई काम नहीं रुका।
----------------------------
उनमें और भी अनेक गुण थेे।
पर सबसे बड़ी बात यह थी कि वे राजनीति में भी थे।
यानी ऐसे लोग राजनीति में आ सकते हैं ,यदि उनके लिए सम्मानपूर्ण जगह बनाई जाए।
हालांकि आज जितने लोग राजनीति मंे हैं, उनमें से भी अनेक लोग योग्य और कत्र्तव्यनिष्ठ हैं।
पर, वैसे लोगों की संख्या घटती जा रही है।
डा. जिचकर जैसी विभूतियों को समय -समय पर याद करके नई पीढ़ी को प्रेरित किया जा सकता है।
-----------------
28 मार्च 24
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें