शनिवार, 25 मई 2019

समकालीन इतिहास की भी गहरी समझ का अभाव


एक और राजनीतिक पंडित ने आज लिखा है कि ‘साल 1971 के बाद पहली बार कोई प्रधानमंत्री न सिर्फ अपने दम पर दूसरी बार सत्ता में लौटा है, बल्कि बहुमत में भी इजाफा किया है।’

इस पूरे वाक्य पर ध्यान दें। 

लेखक का आशय यह है कि 1967 में ‘अपने दम’ पर इंदिरा गांधी ने लोकसभा में बहुमत हासिल किया था। क्या यह सच है ? कत्तई नहीं।

1969 के पूर्वाद्ध तक कांग्रेस पार्टी सिर्फ किसी एक नेता पर निर्भर भी नहीं थी। तब तक स्वतंत्रता सेनाननियों की बड़ी जमात का देश के अलग-अलग हिस्सों पर भारी असर था। बिहार में भी आजादी के बाद के कई वर्षों तक श्रीबाबू-अनुग्रह बाबू की जोड़ी की तूती बोलती थी।

एक बार जवाहरलाल नेहरू ने लक्ष्मी नारायण सुधांशु को मुख्यमंत्री बनाना चाहा था। सुधांशु जी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि बिहार की जनता श्रीबाबू और अनुग्रह बाबू के साथ है। मेरे साथ जनता नहीं है। जिसके साथ जनता न हो, उसे मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहिए।

हां, 1969 में कांग्रेस में हुए महाविभाजन के बाद इंदिरा जी जरूर अपने गुट की एकछत्र नेता बन गईं। 1971 के चुनाव के बाद तो यह साफ हो गया कि इंदिरा जी की कांग्रेस ही असली कांग्रेस है। 

1967 में तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी वी.के. कृष्ण मेनन को लोकसभा का टिकट तक नहीं दिलवा पाई थीं। जबकि, वे निवर्तमान सांसद थे। उनकी जगह कांग्रेस ने डा. बर्वे को दिया और वे जीते भी। इस तरह के कई अन्य उदाहरण भी हैं।

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