शुक्रवार, 24 मई 2019

प्रतिपक्ष के लिए चेतावनी और सत्तापक्ष के लिए नई जिम्मेवारी


इस चुनाव नतीजे ने 1977 के लोकसभा चुनाव की याद दिला दी। इमरजेंसी की पृष्ठभूमि में हुए चुनाव में अविभाजित बिहार की सभी 54 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस हार गई थी। इस बार भी बिहार में कमोवेश वैसा ही रिजल्ट आया है। यानी आमजन में इमरजेंसी से थोड़ा ही कम गुस्सा इस बार था। गुस्सा प्रतिपक्ष पर निकला। गुस्सा बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर प्रतिपक्ष के विरोध पर था।

एक ओर काम करने वाली मोदी-नीतीश सरकार तो दूसरी ओर कथित भ्रष्टाचार, वंशवाद व महत्वाकांक्षी नेताओं की अव्यवस्थित भीड़ से जूझ रहा प्रतिपक्ष था। ऐसे में जीतना उसे ही था, जिसकी जीत हुई। पर इस चुनावी संघर्ष में कई व्यक्तिवादी नेताओं की वास्तविक राजनीतिक ताकत का भी पता चल गया।

जातीय व साम्प्रदायिक वोट बैंक की ताकत पर गुमान करने वाले कुछ बिहारी नेताओं को राजग ने औकात बता दी। एक खास संकेत भी मिल रहा है। डबल इंजन की सरकार अगले वर्षों में ऐेसे -ऐसे काम करने वाली है जिससे वोट के ठेकदारों की ताकत और भी कम हो सकती है।

एक उदाहरण काफी होगा। कल्पना कीजिए कि किसानों को मिल रही छह हजार रुपए सालाना की राशि में केंद्र सरकार वृद्धि कर दे। जमीन की मौजूदा सीमा को हटा दे तो उसका क्या असर पड़ेगा ? इस तरह के कई अन्य काम केंद्र की पाइप लाइन में हैं। इसलिए वोट बैंक के आधार पर चलने वाले दलों के लिए यह चुनाव परिणाम एक संदेश दे रहा है। संदेश यह कि आप अपना चाल, चरित्र और चेहरा बदलिए। यदि बदलाव का तरीका समझ में नहीं आ रहा है तो किन्हीं विशेषज्ञों से पूछिए।

अपने उन बचे -खुचे समर्थकों का ध्यान रखते हुए भी आपका राजनीति में प्रासंगिक बने रहने जरूरी है। अब भी अनेक लोग आपकी ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए भी यह जरूरी है कि प्रतिपक्ष में बेदम नहीं हो।

यह चुनाव शत्रुघ्न सिन्हा, उपेंद्र कुशवाहा और शरद यादव जैसे बड़े नेताओं के लिए भी एक कड़ा संदेश है। ऐसे नेताओं को समझना होगा कि आप खुद क्या चाहते हैं और आम जनता आपसे क्या चाहती है। यह बात आप जानें और समझें, समय रहते। उसी के अनुसार अपने राजनीतिक कदम उठाएं। आपके सामने सीरियस नेता हैं जिनसे आपका मुकाबला है।

इस चुनाव में भारी जीत का श्रेय तो नरेंद्र मोदी को ही जाता है। पर राजग के लिए यह अनुकूल स्थिति रही कि यहां नीतीश के रूप में एक अच्छी छवि वाले मुख्यमंत्री हैं। नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की मिलीजुली ताकत का लाभ इस पिछड़े बिहार को पूर्ण विकसित करने में अब होना चाहिए। नीतीश कुमार के कार्यकाल में बिहार का विकास तो हुआ है, पर आर्थिक सीमाओं के कारण पूर्ण विकास की राह में बाधाएं बनी हुई हैं।

बिहार में उद्योगीकरण के लिए केंद्र से मदद की उम्मीद अब बढ़ी है। मुख्यमंत्री कहते हैं कि  विशेष राज्य का दर्जा देने से ही यहां उद्योग बढ़ेंगे। श्री कुमार ने चुनाव प्रचार में मतदाताओं से अपील की कि यदि आप हमें 15 या उससे अधिक सीटें जितवाएंगे तो हम बिहार को विशेष राज्य का दर्जा के लिए केंद्र के समक्ष मजबूती से अपनी मांग रख पाएंगे। पर, चौदहवें वित्त आयोग ने कह दिया है कि किसी भी राज्य को विशेष दर्जा नहीं दिया जाएगा।

इस पृष्ठभूमि में केंद्र के सामने भी संभवतः दिक्कत आएगी। पर एक रास्ता बीच का भी है। केंद्र सरकार यदि एक्साइज ड्यूटी, आयकर और जी.एस.टी. में बिहार में छूट दे दे तो उद्योगपतियों को बिहार आमंत्रित किया जा सकता है।

मोदी सरकार ने अन्य धनराशि के अलावा सिर्फ सड़कों  के लिए बिहार को 50 हजार करोड़ रुपए दिए हैं। बिजली के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण काम हुए हैं।

(24 मई 2019 के दैनिक भास्कर,पटना में प्रकाशित)

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