‘छोटी सी आशा’
मई में शपथ ग्रहण करने वाले पी.एम. से
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एक छोटी सी आशा है।इसे मेरी भोली आशा भी मान सकते हैं।
क्योंकि अनेक चतुर -सुजान लोग यह मानते रहे हैं कि इस देश में कुछ भी बदल नहीं सकता।
यह भोली आशा मुझे उनसे है जो रिजल्ट के बाद इस माह के अंत में प्रधान मंत्री पद की शपथ लेंगे।मैं नहीं जानता कि वह नरेंद्र मोदी ही होंगे या कोई और !
2018 -19 वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार को कर राजस्व के रूप में करीब 19 लाख करोड़ रुपए मिले।
सरसरी नजरों से मैं जब चहंुओर कर चोरियां देखता हूं, उससे साफ लग जाता है कि यह राशि थोड़ी सी कड़ाई के बाद दुगुनी हो सकती है।अधिक कड़ाई के बाद और भी अधिक।
हालांकि मेरी छोटी सी आशा है कि कड़ाई अधिक ही हो।
सिंगा पुर के शासक ली कुआन यू @1923-2015@ने जिस तरह लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही थोड़ी सी कड़ाई करके सिंगापुर का काया पलट कर दिया ,उसी तरह के काम की उम्मीद अगले प्रधान मंत्री से है।भले उम्मीद पूरी हो या नहीं।
जिन जरूरी क्षेत्रों में तत्काल अधिक पैसे लगाने और ढीली -ढाली व्यवस्था को सख्ती करके ठीकठाक करने की सख्त जरूरत है ,उनमें क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण के क्षेत्र प्रमुख हंै।रक्षा क्षेत्र मंें बेहतरी की रफ्तार संतोषजनक है।
इस देश में अधिकतर लोग समझते हैं कि वे कोई भी अपराध करके बच सकते हैं।
देश में औसत अदालती सजाओं का प्रतिशत सिर्फ 46 है।
यानी 54 प्रतिशत लोग अपराध करके साफ बच जाते हैं।
इसी देश में केरल में सजा की दर 84 है,वहींं बिहार में मात्र दस।इतना अंतर क्यों ?
देशव्यापी सुधार के लिए इन दोनों राज्यों के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम का अध्ययन किया जा सकता है।
हमारे यहां जो डाॅक्टर और इंजीनियर बन रहे हैं,उनमें से अधिकतर की गुणवत्ता संदिग्ध है।इसे नए प्रधान मंत्री किसी भी कीमत पर सुधारें ।
अपवादों को छोड़ कर देश की सामान्य शिक्षण-परीक्षण व्यवस्था भी ध्वस्त हो चुकी है।
अधिकतर शिक्षकों की गुणवत्ता ही रसातल में जा रही है।
पर्यावरण रक्षा के प्रति न तो कोई सावधानी है और न ही जरूरी कड़ाई जबकि इसके कुपरिणाम भयानक होंगे।
इन सब के परिणाम अगली पीढि़यों को भुगतने पडं़ेगे,यदि तत्काल सुधार नहीं हुआ तो।
मई में शपथ ग्रहण करने वाले पी.एम. से
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एक छोटी सी आशा है।इसे मेरी भोली आशा भी मान सकते हैं।
क्योंकि अनेक चतुर -सुजान लोग यह मानते रहे हैं कि इस देश में कुछ भी बदल नहीं सकता।
यह भोली आशा मुझे उनसे है जो रिजल्ट के बाद इस माह के अंत में प्रधान मंत्री पद की शपथ लेंगे।मैं नहीं जानता कि वह नरेंद्र मोदी ही होंगे या कोई और !
2018 -19 वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार को कर राजस्व के रूप में करीब 19 लाख करोड़ रुपए मिले।
सरसरी नजरों से मैं जब चहंुओर कर चोरियां देखता हूं, उससे साफ लग जाता है कि यह राशि थोड़ी सी कड़ाई के बाद दुगुनी हो सकती है।अधिक कड़ाई के बाद और भी अधिक।
हालांकि मेरी छोटी सी आशा है कि कड़ाई अधिक ही हो।
सिंगा पुर के शासक ली कुआन यू @1923-2015@ने जिस तरह लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही थोड़ी सी कड़ाई करके सिंगापुर का काया पलट कर दिया ,उसी तरह के काम की उम्मीद अगले प्रधान मंत्री से है।भले उम्मीद पूरी हो या नहीं।
जिन जरूरी क्षेत्रों में तत्काल अधिक पैसे लगाने और ढीली -ढाली व्यवस्था को सख्ती करके ठीकठाक करने की सख्त जरूरत है ,उनमें क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण के क्षेत्र प्रमुख हंै।रक्षा क्षेत्र मंें बेहतरी की रफ्तार संतोषजनक है।
इस देश में अधिकतर लोग समझते हैं कि वे कोई भी अपराध करके बच सकते हैं।
देश में औसत अदालती सजाओं का प्रतिशत सिर्फ 46 है।
यानी 54 प्रतिशत लोग अपराध करके साफ बच जाते हैं।
इसी देश में केरल में सजा की दर 84 है,वहींं बिहार में मात्र दस।इतना अंतर क्यों ?
देशव्यापी सुधार के लिए इन दोनों राज्यों के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम का अध्ययन किया जा सकता है।
हमारे यहां जो डाॅक्टर और इंजीनियर बन रहे हैं,उनमें से अधिकतर की गुणवत्ता संदिग्ध है।इसे नए प्रधान मंत्री किसी भी कीमत पर सुधारें ।
अपवादों को छोड़ कर देश की सामान्य शिक्षण-परीक्षण व्यवस्था भी ध्वस्त हो चुकी है।
अधिकतर शिक्षकों की गुणवत्ता ही रसातल में जा रही है।
पर्यावरण रक्षा के प्रति न तो कोई सावधानी है और न ही जरूरी कड़ाई जबकि इसके कुपरिणाम भयानक होंगे।
इन सब के परिणाम अगली पीढि़यों को भुगतने पडं़ेगे,यदि तत्काल सुधार नहीं हुआ तो।
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