गुरुवार, 23 मई 2019

   पैसावाद, जातिवाद और विचार धारा वाद, निष्पक्ष और वस्तुपरक पत्रकारिता की राह में मुख्य बाधक तत्व हैं।
अखबार को ‘रफ हिस्ट्री’ भी कहा गया है।
 ऐसा इतिहास जो जल्दीबाजी में लिखा जा रहा  है।
 मेरी समझ से निष्पक्ष और वस्तुपरक पत्रकारिता वह है 
जिसके जरिए जो चीज जैसी है,उसकी हू ब हू जानकारी पाठकों-दर्शकों तक पहुंचे।
हां, आप अपना विश्लेषण आप कर सकते हैं।
मेनचेस्टर गार्जियन के मालिक-सह संपादक सी.पी.स्काॅट ने कहा था कि ‘फैक्ट्स आर सेक्रेड एंड ओपिनियन इज फ्री।’
 दूसरी ओर, अभियानी पत्रकारिता के लिए भी लोकतंत्र में पूरी गुंजाइश है।
 जो करना चाहें, वे अभियानी पत्रकारिता खूब करें। जिस सरकार ,नेता या विचार धारा को आप गलत मानते हैं,उसके खिलाफ जम कर अभियान चलाइए।पर तर्कों और तथ्यों से लैस होकर।
जिसे ठीक मानते हैं,उसे अपने लेखन के जरिए मजबूत करने की कोशिश कीजिए।
हां,यह बात और है कि मीडिया का कौन मालिक अभियान के
लिए अखबार या चैनल चला रहा है और कौन मालिक पेशेवर ढंग से मीडिया को चलाना चाहता है।
पेशेवर पत्रकारिता का मूल मंत्र यह है कि जिस पर आप आरोप लगाते हैं,उस विषय पर उस व्यक्ति का पक्ष भी साथ -साथ आना चाहिए।
अभियानी पत्रकारिता में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है।
हालांकि साठ के दशक में एक मीडिया घराने ने अपने अखबार को तो पेशेवर बना रखा था,पर एक  मैगजिन में  सोशलिस्ट और दूसरी मैगजिन में  कम्युनिस्ट विचारधारा का संपादक बना रखा था। 
 मुख्य धारा की पत्रकारिता वह है जिसे आम लोग पढ़ें और उसकी सूचनाओं पर विश्वास करें।
स्वाभाविक है कि आम लोगों में तो हर जाति, धर्म और विचारधारा के लोग होंगे ही।
    


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