गुरुवार, 2 सितंबर 2021

 टैक्स चोरी को ‘लोहे के हाथों’ से रोक

कर कंेद्र सरकार पैसे बचाए।

उन पैसों से देश में अधिक संख्या ‘एम्स’ 

की स्थापना की पहल करे।

तभी यह माना जाएगा कि उसने 

कोविड-19 महा विपत्ति 

से सबक सीखा है।

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  --सुरेंद्र किशोर--

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कल्पना कीजिए कि कम साधन वाले किसी गंभीर मरीज 

का दिल्ली ‘एम्स’ में आपरेशन होने वाला है।

किंतु लंबी प्रतीक्षा सूची के कारण उसे बेड उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।

इस बीच मरीज की हालत खराब हो जाती है।

और, आपरेशन के बिना ही अंततः वह गुजर जाता है।

फिर उसके परिवार पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ता है।

खैर, यह समस्या किसी एक मरीज के साथ नहीं है।

ऐसी घटना आए दिन देखी जाती है।

ऐसे में देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी की भीषण समस्या सामने आती है।

खासकर ‘एम्स’ जैसे गुणवत्तापूर्ण अस्पताल की कमी की समस्या।

पर,केंद्र सरकार के पास उतने पैसे नहीं हैं जिससे जरूरत के अनुपात में ‘एम्स’ का निर्माण हो सके।

इस देश में सरकारी पैसे की कमी का बड़ा कारण भीषण भ्रष्टाचार ,लूट और घोटाला है।

अभी जी.एस.टी.पर ध्यान जाता है।

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वित्तीय वर्ष 2020-21 में जी.एस.टी. में देश में 

49 हजार 384 करोड़ रुपए की कर वंचना का 

पता चला था।

उच्चपदस्थ पदाधिकारियों से सांठगांठ के बिना यह संभव नहीं।

  मौजूदा वित्तीय वर्ष के अप्रैल-जून में भी टैक्स चोरी का आंकड़ा चिंताजनक रहा है।

 उधर पैसों की कमी के कारण जरूरत के हिसाब न तो अस्पतालों की संख्या बढ़ाई जा रही है और न ही मौजूदा अस्पतालों का विस्तार व विकास हो पा रहा है।

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उधर एम्स जैसे विश्वसनीय अस्पतालों में समुचित इलाज-आॅपरेशन आदि के लिए लंबी  प्रतीक्षा सूची रहती हैं।

सबसे अधिक दबाव दिल्ली एम्स पर है।

 क्या दिल्ली में एक और एम्स की स्थापना नहीं हो सकती ?  

चंूकि दिल्ली एम्स में न सिर्फ चिकित्सा -प्रक्रिया विश्वसनीय व गुणवत्तापूर्ण है बल्कि मरीजों के प्रति वहां के चिकित्सकों का व्यवहार भी अन्य सरकारी अस्पतालों से बेहतर है।     

पटना एम्स का भी अनुभव वैसा ही है।

सुना है कि यहां भी चिकित्सकगण गरीब मरीजों के साथ भी अच्छे ढंग से पेश आते हैं।

दूसरी ओर, बिहार सरकार के अस्पतालों में चिकित्सकों के सामान्य मरीजों के साथ व्यवहार में धैर्य की कमी रहती है।

  

 



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