खाद्य सामग्री में आर्सेनिक
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--सुरेंद्र किशोर--
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दैनिक ‘प्रभात खबर’,पटना ने यह खबर दी है कि बक्सर से भागलपुर तक गेहूं -आलू में आर्सेनिक के असर की पुष्टि की गई है।
इंडो -यूके रिसर्च प्रोजेक्ट में यह खुलासा हुआ है।
अत्यधिक भू-जल दोहन को आर्सेनिक के बढ़ते असर की वजह बताया गया है।
आर्सेनिक दिल,गुर्दा,फेफड़े पर असर करता है।
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पर्यावरण विज्ञानी और बिहार राज्य प्रदूषण बोर्ड के अध्यक्ष डा.अशोक कुमार घोष इस संबंध में बताते हैं कि
‘‘डोर टू डोर जाकर लिए गए सैंपल के बाद यह पहली बार खुलासा हुआ है कि बिहार के विभिन्न इलाकों में पहुंच रहे गेहूं और आलू में आर्सेनिक मौजूद है।
यह सामान्य लिमिट से अधिक है।
सैंपल में लिये गए गेहूं या आलू बिहार से बाहर से आए बताए जाते हैं।
फिलहाल इस संबंध में घबराने की जरूरत नहीं है।
व्यापक जागरूकता की जरूरत है।
हमें अत्यधिक गहराई वाले नलकूप खनन को हतोत्साहित करने की जरूरत है।’’
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रिसर्च प्रोजेक्ट, डा.घोष और प्रभात खबर को धन्यवाद।
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पर, उससे हटकर मेरी समझ से बिहार में इस पर और अधिक जांच करने की जरूरत है।
पंजाब में आर्सेनिक और उससे बढ़ रहे कैंसर की समस्या बहुत अधिक है।देश में सबसे अधिक।
वहां की एक रपट के अनुसार किसान रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं का बहुत ही अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं।
वहां भी भूजल दोहन की गंभीर समस्या है।
पंजाब से आ रही खबर के अनुसार वहां भूजल दोहन के कारण पानी के साथ नीचे से निकल कर बालू जमीन की सतह पर आ जा रहा है।
उससे जमीन अनुर्वर होती जा रही है।
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निष्कर्ष--हमें ‘हरित क्रांति’ से पहले वाले जमाने में फिर से लौटना होगा।
यानी, जैविक खाद का इस्तेमाल करना होगा।
मैंने बचपन में गोबर खाद से उपजाए गए देसी गेहूं की रोटी खाई है।
उसकी मिठास अब दुर्लभ है भले उसके दाने छोटे होते थे।
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13 सितंबर 21
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