महाराणा प्रताप के बारे में
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(एक खास संदर्भ में )‘‘.......डूंगरपुर के महारावल ने पत्र लिखकर प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को याद दिलाया था कि
‘‘राजस्थान के सभी राजा, (महाराणा प्रताप के परिजन) महाराणा को शाष्टांग नमस्कार करते हैं।
जनता में उनका जितना मान है,वह तो भारत सरकार ने भी राज्यों के अधिमिलन के समय उनको देश का एकमात्र ‘महा राज प्रमुख’ बनाकर स्वीकार किया था।’’
( तब अन्य राजा ‘राज प्रमुख’ बने थे।)
महारावल ने यह भी लिखा कि
‘‘अंग्रेजी सरकार ने भी उनके विशिष्ट स्थान को स्वीकार कर
उन्हें ब्रिटिश सम्राट् जार्ज पंचम के दिल्ली दरबार में ,जहां भारतीय राजाओं को अंग्रेज महाराजाधिराज के सामने झुककर उन्हें नजराना देना पड़ा था, हाजिर होने से बरी कर दिया था।’’(जबकि महाराणा उस दिन दिल्ली में ही थे।उन्होंने कोई उपहार भी जार्ज पंचम को नहीं भेजा था।
यह तो मानी हुई बात है कि उनके पूर्वज महाराणा प्रताप ने कभी मुगल यानी अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी।)
याद रहे कि महारावल के पत्र के बाद नेहरू ने युवक महाराणा को दिल्ली आमंत्रित किया और उन्हें प्रधान मंत्री आवास में ठहराया।
(--उपर्युक्त विवरण के मुख्य अंश एम.ओ.मथाई की पुस्तक ‘नेहरू के साथ तेरह वर्ष’ से साभार ।)
आजादी के बाद नेहरू सरकार ने इतिहासकारों को निदेश दे दिया था कि छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप के शौर्य व वीरता का बखान करते हुए कोई इतिहास न लिखा जाए क्योंकि उससे हिन्दुत्व फैलेगा।
सेक्युलर व वामपंथी इतिहासकारों ने उस निदेश का पालन किया।
दूसरी ओर, मुगल शासकों के सिर्फ अच्छे गुणों को उभारा गया और देसी राजाओं की सिर्फ कमियों का बखान किया गया।
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उस विकृत इतिहास का भारतीय जन मानस पर आज भी इतना अधिक असर है कि यदि आप महाराणा प्रताप के पक्ष में कोई सकारात्मक पोस्ट भी लिखें तो लाइक करने वाले मात्र एक-डेढ़ दर्जन से अधिक लोग नहीं होंगे।
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जबकि इधर यह खबर भी आई है कि वियतनाम के शासक की समाधि पर लिखा हुआ है कि
‘‘यह महाराणा प्रताप के शिष्य की समाधि है।’’
(वैसे मैं अभी इस खबर की पुष्टि नहीं कर रहा हूं।हालांकि यह खबर तार्किक है।)
याद रहे कि अमेरिका के साथ युद्ध में वियतनाम के लोगों ने महाराणा प्रताप की युद्ध शैली अपनाई थी।
अमेरिका वियतनाम छोड़कर भाग गया था।
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हमें यू.पी.के पूर्व राजा सुहलदेव की वीरता का पता भी तब चला जब वहां के एक पिछड़ा नेता ने उनके नाम पर एक राजनीतिक दल बना लिया।
याद रहे कि राजा सुहेलदेव ने सन 1033 में मुस्लिम हमलावर
गाजी सल्लार मसूद को बहराइच में हुए युद्ध में
हराया और उसे मार डाला था।
ऐसी बहुत सारी दबी हुई कहानियां हंै जिन्हें 1947 के बाद आम लोगों को जानबूझ कर नहीं बताया गया।
याद रहे कि सुहेलदेव व महाराणा प्रताप जैसे राजाओं के समक्ष भी वैसी ही परिस्थितियां थीं जैसी परिस्थिति से आज अफगानिस्तान में है।
हालांकि हमारे सेक्युलर व नेहरूपंथी इतिहासकार लिख रहे थे कि तब राजा भूभाग के फैलाव के लिए आपस में लड़ रहे थे ।उन लड़ाइयों में कोई दूसरा तत्व नहीं था।
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