सन 2005 में पश्चिम बंगाल की बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार ने ललित सूरी गू्रप को कोलकाता का ग्रेट ईस्टर्न होटल मात्र 52 करोड़ रुपए में आखिर क्यों बेच दिया ?
सार्वजनिक क्षेत्र के भारी समर्थक वाम मोर्चा को ऐसा क्यों करना पड़ा ?
इतने सस्ते में क्यों बेचा ?
मैं नहीं मानता कि इसके बदले किसी वाम नेता को कोई रिश्वत मिली होगी या उन्होंने ली होगी।
इस देश की राजनीति में भारी नैतिक गिरावट के बावजूद अब भी सामान्यतः वाम दलों के अधिकतर लोग अन्य अधिकतर राजनीतिक दलों के नेताओं की अपेक्षा अधिक ईमानदार हैं,रुपए पैसे के मामलों में।
राष्ट्रहित के बारे में भले न हों !
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दरअसल मेरा अनुमान है कि ग्रेट ईस्टर्न होटल के प्रबंधन में ईमानदारी व कार्य कुशलता लाने में विफल वाम सरकार औने -पौने दाम में बेचने बेच देने को मजबूर हो गई।
ग्रेट ईस्टर्न होटल को बनाए रखने का अर्थ था-रोज -रोज सरकारी खजाने से घाटा पूरा करना।
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नब्बे के दशक में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने जब बड़े पैमाने पर विनिवेश शुरू किया अटल सरकार ने उसे जारी रखा तो उनके सामने भी वैसी ही मजबूरी थी।
मौजूदा मोदी सरकार के समक्ष भी वैसी ही मजबूरी है।
हां,मोदी सरकार जो कर रही है ,उसे ‘लीज’ करण कहते हैं न कि बिक्रीकरण।
बिक्रीकरण वही लोग बोल रहे है जो या तो अनजान हैं या राजनीतिक रूप से बेईमान।
--सुरेंद्र किशोर
13 सितंबर 21
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