शिक्षक दिवस पर
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याद आए हमारे शिक्षक
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सुरेंद्र किशोर
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इस अवसर पर मुझे वे सारे शिक्षक मुझे याद आते हैं
जिन्होंने मुझे बारी -बारी से अपर प्राइमरी स्कूल
से लेकर विश्व विद्यालय तक पढ़ाया।
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अपर प्राइमरी स्कूल,खानपुर
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सबके नाम तो याद नहीं किंतु सारण जिले के दरियापुर अंचल स्थित खानपुर अपर प्राइमरी स्कूल के हेड मास्टर धनुषधारी राय जरूर याद आते हैं।
पास के गांव सुलतानपुर के निवासी थे।
उनका जीवन सादगीपूर्ण था।
वे अनुशासनप्रिय थे।
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मिडिल इंगलिस स्कूल, दिघवारा
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सहायक शिक्षक जनक सिंह याद आते हैं।
हेडमास्टर के पद पर बंगाली बाबू थे।
नाम याद नहीं।
उनकी छड़ी खूब चलती थी।
उसका छात्रों पर सकारात्मक असर होता था।
अब तो छड़ी रखने की भी मनाही हो गई है,चलाने की बात कौन कहे।
शिक्षा में गिरावट का एक कारण यह भी है।
अंग्रेजी में एक पुरानी कहावत है-
स्पेयर द स्टिक एंड स्प्वायल द चाइल्ड।
यानी ‘‘छड़ी छोड़ दो और बच्चों को बिगाड़ दो।’’
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जयगोविंद हाई स्कूल,दिघवारा
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याद आते हैं प्रधानाध्यापक हरिहर प्रसाद सिंह उप प्रधानाध्यापक जनार्दन राय और राम जंगल सिंह उर्फ जंगल बाबा।
हरिहर बाबू अत्यंत योग्य शिक्षक थे।शालीनता की प्रतिमूत्र्ति।
वैसे भी उन दिनों अधिकतर शिक्षक योग्य होते ही थे।
निजी प्रबंधन वाले स्कूल में अयोग्य शिक्षक टिक भी नहीं सकते थे।
जंगल बाबा तो कोई भी विषय पढ़ा सकते थे।
जगजीवन राम और जंगल बाबा बी.एच.यू. में सहपाठी थे।
जंगल बाबा इंजीनियरिंग भी पढ़े।
पर स्वास्थ्य ठीक नहीं रहने के कारण बीच में पढ़ाई छोड़कर दिघवारा यानी अपने घर आ गए।
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अलख नारायण उच्च विद्यालय ,एकमा ,सारण
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बैकुंठनाथ सिंह हेडमास्टर थे।
साठ के दशक में उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिला था।
सिताब दियारा के मूल निवासी बैकुंठ बाबू के शिक्षण के कारण ही मेरी हिन्दी बेहतर हो सकी।
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महाराजा काॅलेज,आरा में एक साल
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कोई खास याद नहीं।
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राजेंद्र काॅलेज,छपरा
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प्रिंसिपल भोला प्रसाद सिंह केमेस्ट्री के अद्भुत शिक्षक थे।
कई सेक्सन के छात्रों को मैदान में शामियाना लगवाकर माइक-लाउड स्पीकर से पढ़ाते थे।
उनका क्लास करने के बाद घर आकर फिर वह चैप्टर पढ़ने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी।
हिन्दी विभाग के डा.मुरलीधर श्रीवास्तव ‘शेखर’ की कक्षाओं ने हिन्दी साहित्य सिखाने के साथ-साथ हमें राजनीतिक रूप से भी जागरूक बनाया।
दिवंगत सांसद शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव के पिता शेखर जी हिन्दी के प्रचार के लिए कभी गांधी जी से जुड़े थे।
पर हिन्दी बनाम हिन्दुस्तानी के सवाल पर उनका गांधी जी से
मतभेद हो गया । उन्होंने गांधी जी का साथ छोड़ दिया।
सुना है कि शेखर जी ने गांधी से कह दिया था कि हम पत्नी को बेगम नहीं कह सकते।
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पटना लाॅ काॅलेज
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मैंने यूं ही रानीघाट स्थित लाॅ कालेज
में दाखिला जरूर करा लिया था,पर पढ़ने में जी नहीं लगा।
क्योंकि तब तक मैं राजनीतिक कार्यकत्र्ता बन चुका था।
हाजिरी बनाकर हम कक्षा से निकल जाते थे।
तीनों साल मैंने क्लास किया।
पर एक साल की भी परीक्षा नहीं दी।
खैर,वहां इलाहाबाद के निवासी श्रीवास्तव जी प्राचार्य थे।
शिक्षक के.एन.पोद्दार व प्रयाग सिंह याद आते हैं।
‘‘मूट कोर्ट’’ में मेरे सहपाठी अशोक जी (कदम कुंआ निवासी) खूब जमते थे।
अंग्रेजों जैसी अंग्रेजी बोलते थे।
अब पटना हाईकोर्ट में वकालत करते हैं।
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शिक्षक दिवस पर मेरे गांव के विज्ञान शिक्षक चंद्रदेव राय याद आते हैं।
मैट्रिक स्तर पर मैंने उनसे उनके घर जाकर पढ़ा था।
उनकी अच्छी पढ़ाई के कारण मुझे मैट्रिक (1963) में अच्छा डिविजन आया।
वह जमाना परीक्षा में कदाचार का नहीं था।
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आज भी कोई ईमानदार सर्वे हो तो तो पता चलेगा कि किसी
अन्य पेशे की अपेक्षा अब भी (जाली सर्टिफिकेट पर बहाल शिक्षकों को छोड़कर) समाज में आम शिक्षकों की इज्जत सबसे अधिक है।
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5 सितंबर, 21
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