बुधवार, 22 सितंबर 2021

     

 नरेंद्र मोदी की सत्ता के अनवरत 20 साल 

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आज के ‘हिन्दुस्तान’ में अखबार के प्रधान सम्पादक शशि शेखर का नरेंद्र मोदी पर वस्तुपरक लेख छपा है।

इस लेख का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि न तो शशि शेखर को और न ही हिन्दुस्तान को गोदी मीडिया की श्रेणी में रखा जा सकता है।

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मेरी टिप्पणी

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  मुझे भी याद नहीं कि इस लोकतांत्रिक देश में कोई नेता अपने व अपने दल के बल पर लगातार 20 साल सत्ता में रहा हो।

  दल महत्वपूर्ण है किंतु मोदी का बल निर्णायक ! 

 भाजपा एक ताकतवर व काॅडर आधारित दल है।

उसकी अपनी ताकत है।

पर, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का अलग से भी अतिरिक्त वोट बैंक बन गया है।

  ऐसा क्यों हुआ ?

उसके कुछ ही कारण गिना रहा हूं।

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गुजरात दंगे के लिए दशकों तक मोदी की देश-विदेश में भारी आलोचना होती रही।

मानो नरेंद्र मोदी से अधिक बड़ा दंगाई कोई पैदा ही नहीं हुआ।

किंतु यह आरोप निराधार है।

सिर्फ भागलपुर दंगे( 1989 )से गुजरात दंगे (2002) की तथ्याधारित तुलना करके देख लीजिए।

हर कसौटी पर भागलपुर दंगे में जघन्यता और व्यापकता तब की राज्य सरकार व केंद्र सरकार 

की विफलता ,मोदी सरकार से बहुत अधिक थी।

मैंने दोनों दंगों का तुलनात्मक अध्ययन किया है।

किसी को मेरी बात पर शक हो तो मैं कभी तुलनात्मक तथ्य पेश कर दूंगा।

लोगों में इस कारण मोदी के प्रति सहानुभूति ही हुई।

  बहुसंख्यक समाज में असली धर्म निरपेक्ष लोगों की कमी नहीं है।

उनमें भी  मोदी के प्रति सहानुभूति पैदा हुई ।

क्योंकि अधिक जघन्य दंगों के बावजूद मोदी को नाहक सबसे बड़े राक्षस और मौत के सौदागर के रूप में पेश किया गया।

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अधिकतर लोगों को नरेंद्र मोदी की यह खूबी पसंद है कि 

उनमें आय से अधिक संपत्ति एकत्र करने की कोई प्रवृति नहीं है।यह गुण बहुत ही कम नेताओं में है।

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 जहां इस देश की अधिकांश राजनीति, भीषण भ्रष्टाचार व वंशवाद-परिवारवाद में बुरी तरह बेशर्मी से लिप्त है,वहीं मोदी पर वंशवाद-परिवारवाद का कोई आरोप नहीं है।

ये दोनों विरल गुण हैं।

कोई राष्ट्रीय स्तर का बड़ा नेता ऐसा गुण खुद में विकसित करके देखे , लोग मोदी की तरह उसे भी पसंद करने लगेंगे। 

भले उतना नहीं।

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तो फिर कहिएगा कि अब भी देश -विदेश के अनेक लोग मोदी के इतने अधिक विरोधी क्यों हैं ?

मेरी समझ से इस देश में इस्लामिक शासन कायम करने के लिए प्रयत्नशील बाहरी-भीतरी शक्तियां यह समझ गई हैं कि मोदी के रहते यह संभव नहीं।

  दूसरे अधिकतर नेता व दल भले ही उन्हें वोट के लिए बढ़ावा देते और मदद करते रहें।

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मोदी की विफलता

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15 अगस्त, 2014 को लाल किले से नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ‘‘न मैं खाऊंगा और न ही खाने दूंगा।’’

खा तो नहीं रहे हैं।

किंतु दूसरों को खाने से नहीं रोक पा रहे हैं।

केंद्रीय मंत्रिमंडल के किसी सदस्य पर तो घोटाले का आरोप नहीं लगा है।

पर ब्यूरोक्रेसी व केंद्र व राज्यों में छुटभैया नेताओं का हाल सही नहीं है।

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सांसद फंड की कमीशनखोरी राजनीति व ब्यूरोक्रेसी में भ्रष्टाचार कम नहीं होने दे रही है।

  यह भ्रष्टाचार का रावणी अमृत कुंड बन चुका है।

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दो सलाह--

1.-सांसदों की ओर से भारी विरोध है,फिर भी सांसद फंड मोदी बंद कर दें।इससे राजनीतिक संकट तो आएगा,पर इससे आपकी सरकार नहीं गिरेगी।हां,जनता आपकी वाह-वाह जरूर करेगी।

2.-भ्रष्टाचारियों के लिए फांसी का प्रावधान कराएं।

3.-ब्यूरोक्रेसी की जकड़न कम करने के लिए लेटरल बहाली सराहनीय रही है।

किंतु ब्यूराक्रेसी पर लगाम लगाने के लिए संविधान में संशोधन भी जरूरी है।

राज्य सभा में बहुमत होते ही यह काम कर दीजिए।

एक ईमानदार मुख्यमंत्री ने एक बार मुझसे कहा था कि भ्रष्टाचार कम करने में बड़े अफसर सहयोग नहीं करते।

--सुरेंद्र किशोर

19 सितंबर 21


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