लचर जांच से अटका न्याय
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पूर्व रेल मंत्री एलएन मिश्र हत्याकांड
मामला हमारी आपराधिक न्याय व्यवस्था
पर किसी काले धब्बे जैसा है।
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सुरेंद्र किशोर
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पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र हत्याकांड की यदि सही ढंग से जोच हुई तो चैंकानेवाले रहस्य सामने आ सकते हैं।
हाल में दिल्ली हाईकोर्ट ने सी.बी.आई.को इसकी दोबारा जांच की मांग पर विचार करने का निदेश दिया है।
दिवंगत ललित नारायण मिश्र के पोते वैभव मिश्र ने हाईकोर्ट से जांच की गुहार लगाई थी।
हाईकोर्ट ने पहली नजर में पाया है कि साढ़े चार दशक पुराने इस मामले की जांच-पड़ताल में गड़बड़ी की गई थी।
याद रहे कि आज के सत्ताधारी दल भी मिश्र हत्याकांड की जांच में धांधली का तब आरोप लगा रहे थे।
यह हत्या और इसकी जांच शुरू से ही कुछ ऐसे रहस्यों से भरी रही जिनका कभी पर्दाफाश नहीं हो सका।
या यूं कहें कि ऐसा होने ही नहीं दिया गया।
उम्मीद की जाती है कि सी.बी.आई.दिल्ली हाईकोर्ट के इस निदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं देगी।
यह मामला बहुत पुराना है।
बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर 2 जनवरी 1975 को समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर बड़ी लाइन का उद्घाटन समारोह था।
उसी बीच सभास्थल पर हैंड ग्रेनेड से हमला कर दिया गया।
उस हमले में तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र और उनके भाई एवं बाद में मुख्य मंत्री बने डा.जगन्नाथ मिश्र सहित कई लोग घायल हो गए।
बिहार के ऐसे कुछ नेता भी तब घटनास्थल पर देखे गए थे, जिनके नाम बाद में इस कांड में षड्यंत्रकारी के रूप में जुड़े।
वे लोग पहले ललित बाबू के काफी करीबी माने जाते थे।
मगर बाद में भीतर ही भीतर उनके दुश्मन बन गए थे।
इसकी जांच व अदालती सुनवाई के दौरान कई मोड़ आए।
बिहार पुलिस ने जांच आरंभ की।
हत्याकांड के आरोपी अरूण कुमार मिश्र और अरूण कुमार ठाकुर ने दफा -164 के तहत न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष यह बयान दिया था कि उन लोगों ने कांग्रेस की ही एक बड़ी हस्ती के इशारे पर सभा में ललित नारायण मिश्र पर हैंड ग्रेनेड फेंके थे।
उसके तत्काल बाद सी.बी.आई.के तत्कालीन निदेशक डी.सेन समस्तीपुर पहंुचे और जांच की जिम्मेदारी संभाली।
उन्होंने समस्तीपुर पहुंचते ही कह दिया था कि अरूण कुमार मिश्र और अरूण कुमार ठोकुर निर्दोष हैं।
और ललित नारायण मिश्र की हत्या में आनंदमार्गियों का हाथ है।
मालूम हो कि अरूण कुमार मिश्र और अरूण कुमार ठाकुर के बयानों में दिल्ली के एक बड़े प्रभावशाली व चर्चित कांग्रेस नेता का नाम सामने आया था।
कहा जाता है कि इससे केंद्र सरकार चिंतित हो गई थी।
इस तरह सी.बी.आई.ने मिश्र हत्याकांड की जांच का काम अपने हाथ में लेकर तत्काल ही मामले को दूसरी दिशा दे दी।
मशहूर वकील और मानवाधिकार कार्यकत्र्ता वी.एम.तारकुंडे ने भी सन 1979 में अपनी जांच के बाद पाया था कि सी.बी.आई.ने जांच में अनियमितताएं कीं।
बिहार पुलिस असली हत्यारे को पकड़ कर मुख्य षड्यंत्रकारियों तक पहुंचने ही वाली थी कि उच्चस्तरीय निदेश से मामला उलट दिया गया।
इस मामले की सुनवाई पहले पटना और बाद में दिल्ली में हुईं।
अंततः सन 2014 में दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने इस हत्याकांड में 4 आनंद मार्गियों को उम्रकैद की सजा दे दी।
उस फैसले के बाद ललित नारायण मिश्र के पुत्र विजय कुमार मिश्र ने कहा था कि निर्दोष लोगों को फंसा दिया गया है।
इस हत्याकांड की ठीक से जांच ही नहीं हुई।
पूर्व मुख्य मंत्री डा.जगन्नाथ मिश्र ने भी दिल्ली के कोर्ट को बताया था कि आनंदमार्गियों से हमारे परिवार की कोई दुश्मनी नहीं थी।
विजय कुमार मिश्र के अलावा बिहार के अनेक लोग इस हत्या के रहस्य का सच जानते रहे हैं।
दबी जुबान में उसकी चर्चा भी करते रहे हैं।
सिर्फ सी.बी.आई.के तत्कालीन निदेशक डी.सेन ने रहस्यमय कारणों से उसकी ओर से अपनी आंखें मूंद लीं।अब यदि सी.बी.आई.इस मामले की सही ढंग से जांच करती है तो इससे देश की राजनीति भी एक हद तक प्रभावित हो सकती है।
मिश्र हत्याकांड की जांच के लिए मैथ्यू आयोग भी बना था।
उसके समक्ष समस्तीपुर रेल पुलिस के तत्कालीन अधीक्षक सरयुग राय और अतिरिक्त कलक्टर आर.बी.शुक्ल ने कहा था कि ललित नारायण मिश्र को घायलावस्था में समस्तीपुर से दानापुर ले जाने वाली गाड़ी को समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर शंटिंग में ही एक घंटा 10 मिनट लग गए।
बताया गया कि यह देरी जानबूझकर की गई।
बाद में दानापुर के रेलवे अस्पताल में घायल मिश्र का आॅपरेशन हुआ।
मिश्र के परिजन के अनुसार आॅपरेशन में भी लापारवाही हुई ।
यादे रहे कि 3 जनवरी 1975 को उनकी मृत्ुय हो गई।
तब यह भी कहा गया कि समस्तीपुर से दानापुर न ले जाकर उनको इलाज के लिए निकटवर्ती दरभंगा पहुंचाया जा सकता था।
पर ऐसा नहीं किया गया।
क्या यह गलत फैसला जानबूझकर लिया गया ?
इसी कांड में जो घायल व्यक्ति दरभंगा के प्रायवेट अस्पताल में इलाज के लिए गए और वे बच गए।
याद रहे कि तब सरकारी अस्पतालों के डाक्टरों की राज्यव्यापी हड़ताल थी।
नई जांच से दशकों पुराने रहस्य पर से पर्दा हटने की उम्मीद की जा सकती है।
इससे मिश्र परिवार को भी संतोष होगा।
कुल मिलाकर ललित नारायण मिश्र हत्याकांड की जांच और अदालती सुनवाई का मामला इस देश की आपराधिक न्याय व्यवस्था पर एक काला धब्बा बना हुआ है।
इससे साबित होता है कि यदि प्रभावशाली लोग चाहें तो अपने स्वार्थ में एक केंद्रीय मंत्री की हत्या की जांच को भी मजाक बना सकते हैं।
ललित नारायण मिश्र बिहार के मिथिला क्षेत्र में खासे लोकप्रिय थे। वैसे बाद के वर्षों में राजनीतिक उतार -चढ़ाव होता रहा।
इस बीच एक बात आज भी देखी जाती है।
वह यह कि सन 1975 से पहले कांग्रेस के प्रथम परिवार के प्रति मिथिला के एक खास समुदाय का जो स्नेह और समर्थन भाव था,उसमें मिश्र हत्याकांड के बाद कमी आई।
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2 सितंबर, 2021 के दैनिक जागरण और नईदुनिया(मध्य प्रदेश)में एक साथ प्रकाशित
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