गुरुवार, 2 सितंबर 2021

 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर 

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 ‘‘कृष्ण असाधारण,असंभव और अपूर्व’’ 

  --डा.राम मनेाहर लोहिया

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कृष्ण संपूर्ण पुरुष थेे।

उनके चेहरे पर मुस्कान और आनंद की छाप बराबर बनी रही।

खराब से खराब हालत में भी उनकी आखें मुस्कराती रहीं।

चाहे दुःख कितना ही बड़ा क्यों न हो,कोई भी ईमानदार आदमी वयस्क होने के बाद अपने पूरे जीवन में एक या दो बार से अधिक नहीं रोता।

राम अपने पूरे वयस्क जीवन में दो या शायद केवल एक बार रोए।

राम और कृष्ण के देश में ऐसे लोगों की भरमार है जिनकी आंखों में बराबर आंसू डबडबाए रहते हैं।

अज्ञानी लोग उन्हें बहुत ही भावुक आदमी मान बैठते हैं।

 एक हद तक इसमें कृष्ण का दोष है।

वे कभी नहीं रोए।

लेकिन लाखों को आज तक रुलाते रहे हैं।

जब वे जिंदा थे , वृंदावन की गोपियां इतनी दुःखी थीं कि आज तक गीत गाए जाते हैं।

‘‘निसि दिन वर्षत नैन हमार,े

कंचुकि पट सूखत नहिं कबहूं,

उर बिच बहत पनारे।’’

 उनके रुदन की कामना की ललक भी झलती है।

लेकिन साथ ही साथ इतना संपूर्ण आत्म समर्पण है कि स्व का कोई अस्तित्व नहीं रह गया हो।

कृष्ण एक महान प्रेमी थे।

जिन्हें अद्भुत आत्म समर्पण मिलता रहा।

आज तक लाखों स्त्री -पुरुष और स्त्री वेश में पुरुष ,जो अपने प्रेमी को रिझाने के लिए स्त्रियों जैसा व्यवहार करते हैं,उनके नाम पर आंसू बहाते हैं और उनमें लीन होते हैं।

यह अनुभव कभी -कभी राजनीति में आ जाता है और नपुंसकता के साथ -साथ जाल-फरेब शुरू हो जाता है।

  जन्म से मृत्यु तक कृष्ण असाधारण ,असंभव और अपूर्व थे।

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दुनिया के महानत्तम ग्रंथ भगवद्गीता के रचयिता कृष्ण को कौन नहीं जानता ?

दुनिया में हिंदुस्तान एक अकेला देश है जहां दश्र्शन को संगीत के माध्यम से पेश किया गया है।

कृष्ण ने अपना विचार ‘गीता’ के माध्यम से ध्वनित किया।

(अपूर्ण)

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--राम,कृष्ण और शिव,नदियां साफ करो (--डा.राम मनोहर लोहिया)पुस्तिका से साभार।

प्रकाशक -पत्रकारिता एवं जन संचार विभाग,आईटीएम यूनिवर्सिटी,ग्वालियर,मध्य प्रदेश।

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30 अगस्त 21



 


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