अखबारों का सर्कुलेशन बढ़ाने
का एक तरीका यह भी
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--सुरेंद्र किशोर--
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बहुत पहले कहीं पढ़ा था।
वही बताना चाहता हैं।
दिल्ली के ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ का प्रसार
यानी सर्कुलेशन
बढ़ जाने का एक खास कारण रहा।
उस अखबार ने अपराध की घटनाओं का फाॅलोअप यानी पीछा करना शुरू कर दिया था।
उससे अखबार को प्रसार की दृष्टि से भारी लाभ हुआ।
अधिक प्रसार यानी अधिक विज्ञापन।
अधिक विज्ञापन यानी अधिक राजस्व।
उस बढ़े राजस्व के छोटे हिस्से का सदुपयोग बेहतर स्टाफ की संख्या बढ़ाने में करिए।
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इस विधि से आज के अखबार भी लाभ उठा सकते हैं।
आज होता क्या है ?
किसी गंभीर से गंभीर अपराध की कहानी एक-दो दिन या अधिक से अधिक एक सप्ताह तक छपकर रह जाती है।
अपराध संवाददाता फिर दूसरी घटना में लग जाते हैं।
समस्या उनके सामने भी है।
रिपोर्टर कम और काम ज्यादा है।
अधिकतर अखबार संपादकीय विभाग पर कम से कम खर्च करता है।
ऐसा विदेशी अखबार का प्रबंधन नहीं करता है।
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अपराध कथाओं में अब तो भ्रष्टाचार कथाओं को भी जोड़ लेना चाहिए।
खास कर राजनीति में जाकर जनता के करोड़ों-अरबों रुपए लूटने वालों की कथाएं।
हालांकि भ्रष्ट लोग सिर्फ राजनीति में ही नहीं हैं।
‘‘राडिया टेप कहानी’’ तो बताती है कि अन्य क्षेत्रों में भी यहां तक कि मीडिया में भी घोटालेबाज व हथियार के दलाल रहे हैं।
हाल ही में टी.वी.पर देखा कि एक बड़ा पत्रकार एक बड़े नेता का इंटरव्यू ले रहा था।
उस नेता ने कुछ दशक पहले उस पत्रकार के बारे में प्रभाष जोशी से शिकायत के लहजे में कहा था कि फलां पत्रकार ने मुझसे 5 करोड़ रुपए ठग लिए।
भीषण भ्रष्टाचार आज की राजनीति का उसी तरह अंग बन चुका है जिस तरह आजादी के तत्काल बाद के वर्षों तक नेताओं के सिर पर गांधी टोपियां रहती थीं।
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भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की खबरें भी अखबारों में आम तौर पर क्षणभंगुर ही होती हैं।
उधर मीडिया की नजरों से मामला ओझल हुआ नहीं कि आरोपीगण मामले को रफा-दफा करने में लग जाते हैं।
अधिकतर मामलों में रफादफा हो भी जाते हैं।
यदि उन आरोपों व आरोपितों पर मीडिया की निरंतर चैकसी रहे तो भ्रष्टों की नानी मर जाएगी।
इस तरह ऐसे फाॅलोअप करने वाले अखबारों की भी चांदी भी रहेगी।
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जरा करके देखिए,कैसी उपलब्धि मिलती है !!
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20 सितंबर 21
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