नेहरू के चुनाव क्षेत्र फूलपुर से 1967 के बाद
उस परिवार से किसी ने चुनाव नहीं लड़ा
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सुरेंद्र किशोर
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उत्तर प्रदेश के फूल पुर लोक सभा चुनाव क्षेत्र से प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लगातार तीन बार चुनाव जीता था।
सन 1964 में उनके निधन के बाद उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित दो बार वहां से सांसद चुनी गईं।
प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी से मतभेद के कारण विजयलक्ष्मी पंडित ने अपने कार्यकाल के बीच में ही यानी 1969 में लोक सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
उसके बाद हुए उप चुनाव में उस नेहरू-गांधी परिवार के किसी सदस्य ने वहां से चुनाव नहीं लड़ा।
प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव जीतती रहीं।
वह उनके पति फिरोज गांधी का चुनाव क्षेत्र था।
संजय गांधी अमेठी से सांसद बने थे।
फूलपुर लोक सभा क्षेत्र कई मामलों में विशेष रहा ।
उस क्षेत्र में उप चुनावों को मिलाकर कुल 20 बार अब तक चुनाव हो चुके हैं।
पर वहां से सिर्फ सात बार ही कांग्रेस विजयी हो सकी।
अंतिम बार 1984 में कांग्रेस से रामपूजन पटेल चुने गए थे।
मौजूदा लोक सभा में वहां से भाजपा के केशव देवी पटेल सदस्य हैं।
इस क्षेत्र में सन 1962 में जवाहर लाल नेहरू का दिलचस्प चुनावी मुकाबला डा.राम मनोहर लोहिया से हुआ था।सन 1977 में यहां से हेमवती नंदन बहुगुणा की पत्नी कमला बहुगुणा जनता पार्टी की सांसद बनी थीं।
उससे पहले सन 1969 में हुए उप चुनाव में संसोपा के जनेश्वर मिश्र ने कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री के.डी.मालवीय को हराया था।
इतने महत्वपूर्ण व चर्चित क्षेत्र से सन 2004 में सपा ने अपने वोट बैंक के बूते विवादास्पद बाहुबली अतीक अहमद को सांसद बनवा दिया था।
फूल पुर लोक सभा क्षेत्र के भीतर पांच विधान सभा क्षेत्र पड़ते हैं।इनमें इलाहाबाद शहर के दो विधान सभा क्षेत्र भी शामिल हैं।
सन 1962 में डा.लोहिया यहां से नेहरू के खिलाफ समाजवादी युवक रजनी कांत वर्मा को उम्मीदवार बनाना चाहते थे।
पर समाजवादी नेताओं, कार्यकत्र्ताओं और जनता के एक हिस्से की मांग के कारण बाद में लोहिया खुद ही वहां से उम्मीदवार बन गए।
इस चुनावी संघर्ष का काफी प्रचार विदेशी मीडिया में भी हुआ था।
नेहरू को हराना तो अकल्पनीय बात थी।पर डा.लोहिया को पांच में से दो विधान सभा क्षेत्रों में नेहरू से अधिक मत मिले थे।नेहरू को एक लाख 18 हजार और लोहिया को 54360 वोट मिले।
बाद में डा.लोहिया ने कहा था कि नेहरू को मैं हरा तो नहीं सका ,पर यथास्थितिवाद की चट्टान में मैंने दरार जरुर डाल दी।उन्होंने यह भी कहा था कि मुझे पराजय का दुःख है,पर इस बात की खुशी है कि भारतीय जनता में जीवन है और वह अंधी नहीं है।
दो विधान सभा क्षेत्रों में नेहरू को प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार की अपेक्षा कम वोट मिलना भी आश्चर्यजनक बात थी।
नेहरू कभी इस देश के युवाओं के ‘हृदय सम्राट’ कहे जाते थे।सन 1952 में संत प्रभुदत्त ब्रहमचारी ने गो वध की समस्या को लेकर नेहरू के खिलाफ फूलपुर में चुनाव लड़ा था।पर नेहरू की चुनावी सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।
नेहरू को 2 लाख 33 हजार और ब्रह्मचारी को 56 718 वोट मिले थे।
नेहरू के निधन और विजय लक्ष्मी पंडित के इस्तीफे के बाद फूल पुर पर भी कांग्रेस का एकाधिकार बना नहीं रह सका
जबकि कभी इलाहाबाद कांग्रेस का राष्ट्रीय मुख्यालय हुआ करता था।इसका यह अर्थ हुआ कि फूल पुर में कांग्रेस पार्टी का नहीं बल्कि नेहरू परिवार का असर था।
बाद में सिर्फ 1971 और 1984 में खास माहौल में फूल पुर से कांग्रेसी उम्मीदवार विजयी हो सके थे।
वैसे फूल पुर संसदीय क्षेत्र में दिलचस्प मुकाबला 1969 के उप चुनाव में हुआ।मुख्य मुकाबला कांग्रेस के के.डी.मालवीय और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के जनेश्वर मिश्र के बीच था।के.डी.मालवीय नेहरू मंत्रिमंडल में रह चुके थे। संसोपा के जनेश्वर मिश्र सन 1967 में भी विजय लक्ष्मी पंडित के खिलाफ
चुनाव लड़ चुके थे।पर, तब वह करीब 36 हजार मतों से हार गये थे।पर जब विजय लक्ष्मी पंडित ने सीट छोड़ी तो युवा जनेश्वर को मौका मिल गया।
सन 1967 के आम चुनाव में जनसंघ बस्ती जिले में मालवीय को हरा चुका था।इलाहाबाद के ही मूल निवासी मालवीय उससे पहले कभी इलाहाबाद से चुनाव नहीं लड़े थे।उन्होंने इलाहा बाद में खूब नाता -रिश्ता जोड़ा।वह वामपंथी विचारधारा के थे । इस आधार पर भी उनका प्रचार चल रहा था।मालवीय ने यह भी प्रचार किया कि इस क्षेत्र से नेहरू के प्रियपात्र को ही चुन कर भेजा जाना चाहिए।फिर भी उन्हें इसका कोई चुनावी लाभ नहीं मिला।
उधर जनेश्वर मिश्र का कहना था कि देश के सामने यथास्थितिवाद,कलह की राजनीति और अनैतिक आचरण तीन खतरे हैं।
तीनों कांग्रेस में हैं।इसे तोड़ना जरुरी है।
उप चुनाव में पहली बार किसी गैर कांग्रेसी नेता की फूलपुर में 1969 में जीत हुई।मालवीय को करीब 62 हजार और 36 वर्षीय जनेश्वर को करीब 83 हजार मत मिले।
इस चुनाव के साथ उत्तर प्रदेश विधान सभा का भी मध्यावधि चुनाव हो रहा था।
फूल पुर के नीचे की पांच में से चार विधान सभा सीटें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी को मिलीं और कांग्रेस को सिर्फ एक सीट पर संतोष करना पड़ा।
उन दिनों जनेश्वर मिश्र एक आदर्शवादी युवक थे।उन्हें ‘छोटे लोहिया’ कहा जाता था।उन्हें फूल पुर में नेहरू के प्रभाव का तिलस्म तोड़ने का श्रेय मिला।
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वेबसाइट ‘मनीकंट्रोल हिन्दी’ से साभार
21 नवंबर 22
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