कानोंकान
सुरेंद्र किशोर
........................
कुछ बड़े सरकारी संस्थानों को मुख्य नगर
के पास स्थानांतरित करना अब जरूरी
...........................
यह बहुत अच्छी बात है कि प्रशासन
ने पटना की मुख्य सड़कों से अतिक्रमण हटाने का काम इस बार कड़ाई से करने का निर्णय किया है।
इससे पहले भी समय-समय पर ऐसे अभियान चले हैं।
पर, हमेशा अतिक्रमणकारी ही अंततः शासन पर भारी पड़े।
उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार शासन तंत्र नियम-कानून तोड़कों पर भारी पड़ेगा।
ऐसे अतिक्रमण विरोधी अभियान बिहार के अन्य नगरों में भी चलाए जाने की सख्त जरूरत है।
हाल के वर्षों में पटना में कई फ्लाई ओवर बने हैं।
जाम की समस्या की विकटता थोड़ा कम करने में फ्लाई ओवर
महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
फिर भी बढ़ते अतिक्रमणों के कारण समस्या भी साथ-साथ बढती़ जा रही है।
इससे पर्यावरण में प्रदूषण भी बढ़ रहा है।
अब तक यह धारणा रही है कि अतिक्रमणकारी इतने अधिक ताकतवर हैं कि राज्य सरकार उन पर निर्णायक कार्रवाई नहीं करना चाहती।
पर,शासन के ताजा संकल्प देखकर उम्मीद की जाती है कि इस बार यह धारणा टूटेगी।
....................................
मुख्य नगर में ही बड़े संस्थान
.....................................
पटना की मुख्य भूमि में ही कई बड़े सरकारी संस्थान अवस्थित हैं।
बिहार के अन्य अधिकतर नगरों का भी यही हाल है।
इनमें से कम से कम एक या दो संस्थानों को मुख्य पटना से हटाकर प्रादेशिक राजधानी के पास ही किसी देहाती इलाके में राज्य सरकार स्थापित कर सकती है।
इससे जाम की समस्या कम होगी।
वे संस्थान हंै पटना विश्व विद्यालय, पटना मेडिकल काॅलेज और अस्पताल , पटना कलक्टरी और जिला अदालत।
यह तो अच्छा हुआ कि कुछ साल पहले केंद्र सरकार ने पटना के पास फुलवारी शरीफ अंचल के एक गांव में एम्स की स्थापना की।
उस इलाके का तेजी से विकास भी हो रहा है।
कांेई नहीं कह रहा है कि एम्स मुख्य पटना से दूर क्यों ?
..............................................
विचाराधीन कैदी और मतदान
..................................................
कानून की एक विसंगति पर अगले महीने सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा।
लोक प्रतिनिधित्व कानून ,1951 की धारा -62 (5) को एक लोकहित याचिका के जरिए चुनौती दी गई है।
इस धारा के अनुसार विचाराधीन कैदी चुनाव के लिएं मतदान में भाग नहीं ले सकता।
किंतु यह देखा गया है कि यदि सजायाफ्ता व्यक्ति जमानत पर छूटा हुआ हो तो वह मतदान कर सकता है।यह विरोधाभास है।
इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से उसकी राय मांगी है।
एक अन्य विसंगति भी है।
लगता है कि उसकी ओर याचिकाकर्ता का ध्यान नहीं गया है।
वह यह कि एक विचाराधीन कैदी को
तो जेल से चुनाव लड़ने की तो छूट है किंतु विचाराधीन कैदी को मतदान करने की छूट नहीं है।
.............................
केंद्रीय सचिवालय की शाखाएं
राज्यों में कब स्थापित होंगी
........................
सन 2018 में केंद्र सरकार ने यह योजना बनाई थी कि केंद्रीय सचिवालय की शाखाएं हर राज्य मुख्यालय में स्थापित की जाएंगी।
इसके जरिए केंद्र सरकार देश की जनता से और भी करीब से जुड़ना चाहती थी।
योजना अच्छी है।
किंतु इस संबंध में पिछले 4 वर्षों में क्या हुआ,यह पता नहीं चल सका है।
यदि ऐसा हो जाता तो नई दिल्ली पर से भी आबादी का बोझ थोड़ा कम होता।
आबादी कम होने से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हवा को स्वच्छ बनाए रखने में सुविधा होती।
..........................
क्षेत्र के बीच में हो थाना मुख्यालय
.......................................
बिहार में ऐसे कुछ पुलिस थाने हैं जो थाना क्षेत्र की एक छोर पर दूर स्थित हैं।
दूसरी छोर तक पहुंचने में पुलिस को काफी समय लगता है।
इस कारण न तो ठीक से गश्त संभव है और न ही अपराध नियंत्रण।
खबर है कि पुलिस आउट पोस्ट की अवस्थिति को लेकर बिहार सरकार कुछ सकारात्मक निर्णय करने जा रही है।
ऐसे में थाना भवन की अवस्थिति को देखते हुए भी निर्णय होना चाहिए।
यानी,यदि किसी एक थाना क्षेत्र में दो आउट पोस्ट हैं तो वे वैसी जगह अवस्थित हों जहां से दूर-दराज इलाकों में भी पुलिस की मौजूदगी का लोगों को आभास होता रहे। .
....................
सरकार से अदालत के सवाल
......................
सन 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि संसदीय राजनीति में अपराधियों के प्रवेश को रोकने के लिए संसद कानून बनाए।
पर,अब तक कुछ नहीं हुआ।
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2019 में केंद्र सरकार से एक महत्वपूर्ण सवाल पूछा था।
सवाल यह था कि जन प्रतिनिधियों की बेतहाशा बढ़ती संपत्ति पर निगरानी रखने के लिए केंद्र सरकार ने अब तक कोई निगरानी तंत्र क्यों नहीं बनाया ?
इस पर भी केंद्र सरकार ने अब तक क्या-क्या किया,इस संबंध में कोई जानकारी सामने नहीं आई है।कुछ दशक पहले के जागरूक प्रतिपक्षी सांसदगण ऐसे सवालों को प्रश्न काल में उठाया करते थे।उनके जवाब भी आते रहते थे।
........................
और अंत में
....................
नेशनल पेमेंट काॅरपोरेशन आॅफ इंडिया के सर्वर से बैंक खातों को लिंक नहीं किए जाने के कारण पी.एम.किसान सम्मान निधि का भुगतान बिहार के किसानों को नहीं हो पा रहा है।
खबर मिल रही है कि यह समस्या पूरे बिहार में है।
इस कारण दो किश्तें नहीं मिल पाई हैं।
उम्मीद है कि शासन तंत्र इस समस्या का समाधान जल्द कर लेगा।
.............................
प्रभात खबर,पटना-14 नवंबर 22
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें