इंदिरा गांधी की पुण्य तिथि की
पूर्व संध्या पर
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31 अक्तूबर ,1984 की
वह काली सुबह
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‘‘.......... ( राॅ के प्रधान रहे आर.एन.)काव ने ,(जो प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार थे) बेअंत सिंह के संदेहास्पद होने की ताकीद की थी।
इसी आधार पर उसका तबादला दिल्ली पुलिस की सशस्त्र इकाई में कर दिया गया था।
कहते हैं कि इंदिरा गांधी उसे बेहद पसंद करती थीं और सरदार जी कहकर पुकारती थीं।
उनकी(यानी, प्रधान मंत्री की)दखल पर वह (बेअंत)वापस (प्रधान मंत्री की सुरक्षा में )लौट आया।
31 अक्तूबर की उस काली सुबह प्रधान मंत्री पर सबसे पहले उसी ने (यानी बेअंत ने )गोली चलाई।
केहर और सतवंत ने उसका साथ दिया।
कुछ देर बाद बेअंत को ‘रहस्यमय’ कारणों से गोली मार दी गई।
प्रधान मंत्री की हत्या के षड्यंत्र का वही मुख्य मोहरा था।
उसका बयान कई तथ्यों को उजागर कर सकता था।’’
---शशि शेखर,
प्रधान संपादक,
हिन्दुस्तान,
30 अक्तूबर 2022
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(बेअंत की बिदाई और वापसी पर मैं खुद पहले कई बार लिख चुका हूं।पर शशि शेखर जी का लिखना अधिक माने रखता है।उन्होंने काव की चर्चा करके उस घटना को पुष्ट कर दिया है।(-सु.कि.)
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राजीव गांधी की हत्या(1991)
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21 मई 1991 को तमिलनाडु के पेेरंबदुर में एक मानव बम विस्फोट में राजीव गांधी की मौत हो गई।
उस दिन के विस्फोट से पहले ‘ब्लू बुक’ में दर्ज सुरक्षा के उपायों का पालन नहीं किया गया था।
राजीव गांधी के पास जाने वालों की तलाशी होनी चाहिए थी।
पर, उस मानव बम की तलाशी नहीं हुई।
आखिर क्यों ?
पेरंबदुर के उस घटनास्थल पर तैनात पुलिस उप निरीक्षक अनुसूया डेजी अर्नेस्ट ने मानव बम धनु को राजीव के पास पहुंचने से रोकने की दो बार कोशिश की थी।
पर थोड़ी दूर से देख रहे राजीव ने सुरक्षाकर्मी से कहा कि ‘‘सबको मेरे पास आने दो।’’
मानव बम धनु माला पहनाने के बहाने राजीव के पास गई और उसने विस्फोट कर दिया।
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महात्मा गांधी की हत्या(1948)
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दिल्ली के बिड़ला भवन स्थित प्रार्थना स्थल के बाहर 20 जनवरी 1948 को बम विस्फोट हो चुका था।
तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री सरदार पटेल ने कहा था कि
‘‘ सुरक्षा सावधानियों को अधिक प्रभावकारी बनाने के लिए पुलिस का विचार था कि प्रार्थना सभा में शामिल होने वाले प्रत्येक अजनबी की परिसर में जाते समय तथा अन्य समय तलाशी ली जाए।
नई दिल्ली के पुलिस अधीक्षक ने गांधी जी के स्टाफ के समक्ष यह प्रस्ताव रखा था।
लेकिन उन्हें बताया गया कि गांधी जी इससे असहमत हैं।उप महा निरीक्षक ने भी गांधी जी के स्टाफ से संपर्क किया था।
लेकिन परिणाम वही रहा।
तब डी.आई.जी.स्वयं व्यक्तिगत रूप से गांधी जी से मिले।
उन्हें समझाया कि उनके जीवन पर खतरा है।
उन्हें सुरक्षा प्रबंध करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
अन्यथा कोई अप्रिय घटना होने पर उनकी बदनामी होगी।
लेकिन गांधी जी सहमत नहीं हुए।
उन्होंने कहा कि उनका जीवन ईश्वर के हाथ में है।
यदि उनकी मृत्यु आ गई है तो कोई सावधानी उन्हें नहीं बचा पाएगी।’
पटेल ने कहा कि ‘मैंने स्वयं गांधी जी से पुलिस को उनकी रक्षा के लिए कत्र्तव्य पालन की अनुमति देने के लिए वकालत की।
परंतु हम असफल रहे।’
अंततः 30 जनवरी 1948 को नाथू राम गोडसे ने गांधी जी की हत्या कर दी।
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विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मौत(1980)
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संजय गांधी की जिस विमान
दुर्घटना में मौत हुई,उसे खुद वही चला रहे थे।
उस दुर्घटना के लिए मशीन जिम्मेदार थी या खुद चालक ?
इस सवाल के जवाब के लिए आप अपने अनुमान के घोडे़ दौड़ा सकते हैं,यदि आप संजय गांधी की कार्य शैली से वाकिफ रहे थे।
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सवाल, निष्कर्ष और चेतावनी
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ऐसी घटनाओं को लेकर आपकी क्या राय है ?
इस देश के अनेक बड़े नेता अपनी सुरक्षा के प्रति इतने लापारवाह क्यों रहे हैं ?
याद रहे कि कई बार दुखद घटनाओं का दर्दनाक खामियाजा देश, जनता,समुदाय और संबंधित दलों को भुगतना पड़ता है।
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कुछ समय पहले केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में बताया था कि राहुल गांधी ने 21 बार अपनी सुरक्षा के नियमों का पालन करने से इनकार किया।
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सुरेंद्र किशोर
30 अक्तूबर 22
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