गाय,गंगा और गीता
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सुरेंद्र किशोर
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सोेनपुर मेले में एक फ्रांसीसी पर्यटक से एक भारतीय टी.वी.संवाददाता ने पूछा,
‘‘यहां आपको वह कौन सी पसंदीदा चीज लगी है जिसे आप अपने कैमरे में कैद कर अपने देश ले जाना और उसे वहां दिखाना पसंद करेंगे ?
पर्यटक ने कोई देर किए कहा--गंगा नदी।
(यह संवाद मैंने अभी-अभी यू ट्यूब पर देखा-सुना है।)
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मैं खुद गांव में बचपन से ही बुजुर्गों से गाय,गीता और गंगा का महत्व सुनता रहा हूं।
गंगा नदी के जल में जो औषधीय गुण मौजूद हंै,उसकी जानकारी उस फं्रासीसी पर्यटक को है या सिर्फ नदी के विस्तार पर वह मोहित है,यह स्पष्ट नहीं है।
किंतु हम अपने देश के हुक्मरानों की तरफ देखते हैं तो पता चलता है कि उन लोगों ने गाय व गंगा के पुराने स्वरूप को विकृत करने के लिए जाने-अनजाने कोई कोर-कसर उठा नहीं रखा।
गीता चूंकि एक पुस्तक है,इसलिए उसे नुकसान नहीं पहंुचा सके हैं।
भारत में गाय का मतलब है-देसी गाय।
देसी गाय के दूध में जो औषधीय गुण है ,वह जर्सी आदि गायों में कत्तई नहीं।
गंगा को धीरे -धीरे प्रदूषित करने में आजादी के बाद की सरकारों का पूर्ण योगदान रहा है।
मुगलों और अंग्रेजों के राज में गंगा अविरल और निर्मल थी।
साठ के दशक तक मैंने अपने गांव के निकटत्तम दिघवारा में स्थित गंगा को अविरल और निर्मल पाया था।
तब एक बार मैं अपनी बुआ के साथ गंगा स्नान करने
सुबह-सुबह ‘‘गंगा जी’’ गया था।
दातुन करके जैसे ही मैंने उसके चीरे को गंगा में फेंकने का
उपक्रम किया,मेरी बुजुर्ग बुआ ने मुझे डांटते हुए कहा कि उसे गंगा जी में मत फेंको।बालू पर फेंको।मैंने वही किया।
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26 नवंबर 22
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