समय रहते मतदातागण चेत जाएं,
दल और नेता तो चेतने से रहे !
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सुरेंद्र किशोर
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यदि आशंकित तानाशाही या अर्ध तानाशाही से इस देश को बचाना हो तो मतदातागण
भ्रष्टाचारियों,
अपराधियों,
टुकड़े-टुकड़े गिरोहों के सदस्यों
या उनके समर्थकों-मददगारों ,
वंशवादियों-परिवारवादियों को अपने बहुमूल्य वोट नहीं दें।
तानाशाही में सर्वाधिक कष्ट आम लोगों को ही होता है।
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किसी नेता के योग्य और ईमानदार पु़त्र(या पुत्री )यदि सक्रिय राजनीति में आना चाहे तो उस पर कोई एतराज नहीं होना चाहिए।
किंतु वैसी स्थिति में खुद पिता चुनावी-सत्ता की राजनीति
से अलग हो जाएं।
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राजनीति कौन कहे,फिल्म में भी कम योग्य संतानों को आगे बढ़ाने के चक्कर में फिल्मी परिवार भी दृश्य से बाहर होते चले जाते हैं।
कभी कपूर खानदान ‘राज’ करता था।
किंतु अब ??!
ऐसे अन्य उदाहरण भी हैं।
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ठाकरे परिवार ने उद्धव के बदले यदि राज ठाकरे और गांधी परिवार ने राहुल की जगह यदि वरूण को आगे बढ़ाया होता तो इन दलों की लोकप्रियता में संभवतः ऐसी ढलान नहीं आती।
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1 नवंबर 22
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