बुधवार, 21 जनवरी 2009

मात्र 12 हजार होते तो नहीं जाती लोहिया की जान


क्या 12 हजार रुपए का इंतजाम नहीं होने के कारण डा.राम मनोहर लोहिया को बचाया नहीं जा सका ? मशहूर स्वतंत्रता सेनानी व समाजवादी विचारक डा.राम मनोहर लोहिया का पौरूष ग्रंथि के आपरेशन के बाद अस्पताल की बदइंतजामी के कारण 12 अक्तूबर 1967 को दिल्ली के विलिंग्टन अस्पताल में उनका निधन हो गया। उस अस्पताल का नाम अब डा.राम मनोहर लोहिया अस्पताल है। डा.लोहिया के एक करीबी सहकर्मी व नेता ने कुछ साल पहले इन पंक्तियों के लेखक को बताया था कि डा.लोहिया आपरेशन के लिए विदेश जाना चाहते थे।पर उसके लिए उन्हें बारह हजार रुपए की जरूरत थी।उन्होंने बंबई के एक मजदूर नेता से जो लोहिया के दल के ही थे, डाक्टर साहब ने कहा था कि वह रुपए का इंतजाम कर दे।पर वह मजदूर नेता समय पर पैसे का बंदोबस्त नहीं कर सका।इस कारण जल्दीबाजी में दिल्ली के ही विलिग्टन अस्पताल में उन्हें भर्ती कराना पड़ा।डा.एल.आर.पाठक ने 30 सितंबर को उनका आपरेशन किया,पर डाक्टर व अस्पताल की लापारवाही के कारण डा.लोहिया की मौत हो गई। आपरेशन और बाद की देखभाल में लापारवाही को लेकर लंबे समय तक विवाद चलता रहा।पर इसमें यह बात तय थी कि विदेश के किसी अच्छे अस्पताल में यदि आपरेशन हुआ होता तो शायद ऐसी नौबत नहीं आई।आज जब मामूली -मामूली नेता व अफसर भी सरकारी खर्चे पर विदेश में अच्छी से अच्छी चिकित्सा करवा रहे हैं,वहीं लोक सभा के सदस्य डा.लोहिया बेहतर इलाज के बिना कम ही उम्र में चल बसे।जब उनका निधन हुआ,तब तक वे अपने साठ साल भी पूरा नहीं कर पाए थे।पर उतनी ही उम्र में उन्होंने भारतीय राजनीति व समाज में युगांतरकरी परिवत्र्तन के नेता बन चुके थे। जब उनका निधन हुआ तो वे ऐसी पार्टी यानी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के एकछत्र नेता थे जिसके दो दर्जन सदस्य लोक सभा में थे।उस समय एक दर्जन प्रदेशों में ऐसी गैर सरकारी सरकारें बन चुकी थीं जिनमें लोहिया के दल के मंत्री थे।बिहार में तो उस दल के कर्पूरी ठाकुर तो उप मुख्य मंत्री भी थे।डा.लोहिया के गैर कांग्रेस वाद के नारे के कारण ही कई राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें बनी थीं।पर डा.लोहिया आज के अधिकतर नेताओं की तरह नहीं थे जो सरकार के धन को अपना ही माल समझते हैं।डा.लोहिया ने अपने दल द्वारा शासित प्रदेशों के अपने दल के नेताओं से कह रखा था कि वे मेरे इलाज के लिए कोई चंदा वसूली का काम नहीं करें।इसमें सरकारी पद के दुरूपयोग का खतरा है। मेरे इलाज के लिए बंबई के मजदूर चंदा देंगे जो आम भारतीय मजदूरों व किसानों की अपेक्षा थोड़े बेहतर आर्थिक स्थिति में हैं।पर इस काम में उस मजदूर नेता ने लोहिया की मदद नहीं की।लोहिया चाहते थे तो इस देश का कोई भी पूंजीपति उन्हें अपने खर्चे से विदेश भेज कर उनका समुचित इलाज करवा सकता था।उन दिनों संसद में लोहिया की तूती बोलती थी।जब वे बोलने को खड़े होते थे तो सरकार सहम जाती थी।पर लोहिया अपने उसूलों के पक्के थे।वे कहते थे कि काले धन का उपयोग करने वाला नेता गरीबों का भला नहीं कर सकता।वे यह भी कहा करते थे कि यह मत देखो ंकि कोई नेता संसद में क्या बोलता है।बल्कि इसे देखो कि वह संसद में बोलने के बाद खुद शाम में कहां उठता बैठता है। यह इस देश की विडंबना ही रही कि उसी लोहिया का नाम लेकर बाद में इस देश व प्रदेश में राजनीति करने वाले अधिकतर नेता सत्ता में आने के बाद इतने भ्रष्ट हो गए कि उनको देखकर लगने लगा कि भ्रष्टाचार के मामले में तो कांग्रेसी बच्चे है। लोहिया के इलाज की चर्चा के क्रम में यह याद दिलाना जरूरी है कि नब्बे के दशक में बिहार का एक भ्रष्ट पशुपालन अफसर जब अपने इलाज के लिए आस्ट्रेलिया जा रहा था तो वह अपनी तिमारदारी में अपने खर्चे से 75 लोगों को अपने साथ ले गया। पब्लिक एजेंडा (22-09-2008)

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