बुधवार, 21 जनवरी 2009

पूरा नहीं हुआ अम्बेडकर - लोहिया - एका का सपना

डा।राम मनोहर लोहिया ने लिखा था कि ‘ मेरी बराबर आकांक्षा थी कि वे (डा.बी.आर.अम्बेडकर) हमारे साथ आएं, केवल संगठन में ही नहीं, बल्कि पूरी तौर से सिद्धांत में भी, और वह मौका करीब मालूम होता था।’ डा.अम्बेडकर के निधन के बाद डा.लोहिया ने मधु लिमये को 1 जुलाई 1957 को हैदराबाद से लिखा कि ‘ तुम समझ सकते हो कि डा.अम्बेडकर की अचानक मौत का दुःख मेरे लिए थोड़ा व्यक्तिगत रहा है, और अब भी है। मेरे लिए अम्बेडकर हिंदुस्तान की राजनीति के महान आदमी थे और गांधी को छोड़कर , बड़े से बड़े सवर्ण हिंदुओं के बराबर। इससे मुझे बराबर संतोष और विश्वास मिला है कि हिंदू धर्म की जाति प्रथा एक न एक दिन खतम की जा सकती है। ’ लोहिया ने अम्बेेडकर के बारे में और क्या कहा, उसे जानने से पहले यह जान लेना ठीक रहेगा कि खुद अम्बेडकर ने लोहिया के बारे में क्या कहा था।यह बात लिखी है, बुद्धप्रिय मौर्य ने । मौर्य न सिर्फ केंद्रीय मंत्री थे बल्कि एक चर्चित दलित नेता भी थे।मौर्य ने लिखा कि ‘ सन् 1951 में अम्बेडकर ने पूछा कि तुम डा.राम मनोहर लोहिया को जानते हो ? मैंने डा.लोहिया का नाम तो सुना था लेकिन जानने का मतलब है नजदीक से जानना, इसलिए मैं चुप रहा। बाबा साहेब ने कहा कि तुम क्या खाक पालिटिक्स करोगे, जब तुम डा.लोहिया को नहीं जानते। हिंदुओं के एक ही तो नेता हैं जो ईमानदारी से जात-पांत तोड़कर जातिविहीन समाज की स्थापना करना चाहते हैं। बाबा साहेब कभी किसी की प्रशंसा नहीं करते थे। इस मामले में वे बड़े कंजूस थे।जब उन्होंने डा.लोहिया की प्रशंसा की तो मैंने सोचा कि उनसे मिलना चाहिए।’ अब अम्बेडकर के बारे में डा.लोहिया की कुछ बातें। डा.लोहिया ने लिखा है कि ‘ मैं बराबर कोशिश करता रहा हूं कि हिंदुस्तान के हरिजनों के सामने एक विचार रखूं। मेरे लिए यह बुनियादी बात है। हिंदुस्तान के आधुनिक हरिजनों के दो प्रकार हैं,एक डा.अम्बेडकर और दूसरे जग जीवन राम।डा.अम्बेडकर विद्वान थे,उनमें स्थिरता,साहस और स्वतंत्रता थी।वे बाहरी दुनिया को हिंदुस्तान की मजबूती के प्रतीक के रूप में दिखाए जा सकते थे।लेकिन उनमें कटुता थी और वे अलग रहना चाहते थे।गैर हरिजनों के नेता बनने से उन्होंने इनकार किया।पिछले पांच हजार बरस की तकलीफ और हरिजनों पर उसका असर मैं भली प्रकार समझ सकता हूं।लेकिन वास्तव में तो यही बात थी।मुझे आशा थी कि डा.अम्बेडकर जैसे महान भारतीय किसी दिन इससे उपर उठ सकेंगे।लेकिन इस बीच मौत आ गई।श्री जग जीवन राम उपरी तौर पर हर हिंदुस्तानी और हिंदू के लिए सद्भावना रखते हैं। हालांकि सवर्ण हिंदुओं से बातचीत में उनकी तारीफ और चापलूसी करते हैं।पर यह कहा जाता है कि केवल हरिजनों की सभाओं में घृणा की कटु ध्वनि फैलाते रहते हैं।इस बुनियाद पर न तो हरिजन और न हिंदुस्तान उठ सकता है।लेकिन डा.अम्बेडकर जैसे लोगों में भी सुधार की जरूरत है।’ ‘परिगणित जाति संघ को चलाने वालों को मैं अब नहीं जानता।लेकिन मैं चाहता हूं कि हिंदुस्तान की परिगणित जाति के लोग देश की पिछले चालीस साल की राजनीति के बारे में विवेक से सोचें।मैं चाहूंगा कि श्रद्वा और सीख के लिए वे डा.अम्बेडकर को प्रतीक मानें,डा.अम्बेडकर की कटुता को छोड़कर उनकी स्वतंत्रता को लें।एक ऐसे अम्बेडकर को देखें जो केवल हरिजनों के नहीं ,बल्कि पूरे हिंदुस्तान के नेता बनें।’ इससे पहले 24 सितंबर 1956 को डा.बी.आर.अम्बेडकर ने डा.लोहिया को लिखा कि ‘ आपके दो मित्र मुझसे मिलने आए थे।मैंने उनसे काफी देर तक बातचीत की।हालांकि हमलोगों में आपके चुनाव कार्यक्रम के बारे में कोई बात नहीं हुई। अखिल भारतीय परिगणित जाति संघ की कार्य समिति की बैठक 30 सितंबर 1956 को होगी और मैं समिति के सामने आपके मित्रों का प्रस्ताव रख दूंगा।कार्य समिति की बैठक के बाद मैं चाहूंगा कि आपकी पार्टी के प्रमुख लोगों से बातचीत हो ताकि हमलोग अंतिम रूप से तय कर सकें कि साथ होने के लिए हमलोग क्या कर सकते हैं। मुझे बहुत खुशी होगी अगर आप दिल्ली में मंगलवार 2 अक्तूबर 1956 को मेरे यहां आ सकें।अगर आप आ रहे हों तो कृपया तार से सूचित करें ताकि मैं कार्य समिति के कुछ लोगों को भी आपसे मिलने के लिए रोक लूंं। ’ इस पत्र के जवाब में 1 अक्तूबर 1956 को लोहिया ने अम्बेडकर को लिखा कि ‘आपके 24 सितंबर के कृपापत्र के लिए बहुत धन्यवाद। हैदराबाद लौटने पर मैंने आज आपका पत्र पढ़ा और इसलिए आपके सुझाए समय पर दिल्ली पहुंच सकने में बिलकुल असमर्थ हूं। फिर भी जल्दी से जल्दी आपसे मिलना चाहूंगा। मैं उत्तर प्रदेश में अक्तूबर के बीच में रहूंगा और आपसे दिल्ली में 19 या 20 अक्तूबर को मिल सकूंगा ।अगर आप 29 अक्तूबर को बम्बई में हों तो वहां आपसे मिल सकता हंू।कृपया मुझे तार से सूचित करंे कि इन दो तारीखों में कौन सी आपको ठीक रहेगी।’ ‘ अन्य मित्रों से आपकी सेहत के बारे में जानकर चिंता हुई। आशा है कि आप आवश्यक सावधानी बरत रहे होंगे। मैं अलग से मैनकाइंड के तीन अंक आपको भिजवा रहा हूं। विषय का सुझाव देने का मेरा विचार हो रहा था लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा। ‘मैनकाइंड’ (पत्रिका) के तीन अंक आपको विषय चुनने में मदद करेंगे। मैं केवल इतना ही कहूंगा कि हमारे देश में बौद्धिकता निढाल हो चुकी है।मैं आशा करता हूं कि यह वक्ती है।इसलिए आप जैसे लोगों का बिना रोक के बोलना बहुत जरूरी है।’ इससे पहले डा.लोहिया ने 10 दिसंबर 1955 को डा.अम्बेडकर को लिखा था कि ‘मैनकाइंड’ पूरे मन से जाति-समस्या को अपनी संपूर्णता में खोल कर रखने का प्रयास करेगा।इसलिए यदि आप कोई अपना लेख भेज सकें तो प्रसन्नता होगी। लेख 2500 और 4000 शब्दों के बीच हो तो अच्छा।आप जिस विषय पर चाहिए, लिखिए।हमारे देश में प्रचलित जाति प्रथा के किसी पहलू पर अगर आप लिखना पसंंद करें तो मैं चाहूंगा कि आप कुछ ऐसा लिखें कि हिंदुस्तान की जनता न सिर्फ क्रोधित हो,बल्कि आश्चर्य भी करे।मैं नहीं जानता कि मध्य प्रदेश के लोक सभा के चुनाव भाषणों में आपके बारे में मैंने जो कहा, उसे आपके अनुयायी ने जो मेरे साथ रहा, आपको बतलाया या नहीं।अब भी मैं बहुत चाहता हूं कि क्रोध के साथ दया भी जोड़नी चाहिए और आप न सिर्फ अनुसूचित जातियों के नेता बनें,बल्कि पूरी हिंदुस्तानी जनता के भी नेता बनें।’ लोहिया ने लिखा कि ‘ हमारे क्षेत्रीय शिक्षण शिविर में यदि आप आ सके तो हमें बड़ी खुशी होगी।आप अपने भाषण का सार पहले भेज दें तो बाद में उसे प्रकाशित करना अच्छा होगा।हम चाहते हैं कि एक घंटे के भाषण के बाद उस पर एक घंटे तक चर्चा भी हो। मैं नहीं जानता कि समाजवादी दल के स्थापना सम्मेलन में आपको कोई दिलचस्पी होगी या नहीं।आप सम्मेलन में विशेष आमंत्रित होकर आ सकते हैं।अन्य विषयों के अलावा सम्मेलन में खेत मजदूरों, कारीगरों, औरतों और संसदीय काम से संबंधित समस्याओं पर भी विचार होगा और इनमें से किसी एक पर आपको कुछ महत्वपूर्ण बात कहनी ही है।किसी बात को बतलाने के लिए यदि आप सम्मेलन की कार्यवाही में हिस्सा लेना चाहें तो मैं समझता हूं कि सम्मेलन और विशेष रूप से अनुमति देगा।’ इस संबंध में कान पुर के विमल मेहरोत्रा और धर्मवीर गोस्वामी ने 27 सितंबर 1956 को डा.लोहिया को लिखा कि ‘ एक दोस्त के जरिए हमलोगों को दिल्ली जाकर डा.अम्बेडकर से मिलने का न्योता मिला।हमलोग दिल्ली जाकर उनसे मिले और 75 मिनट तक बातचीत हुई।यह साफ कर दिया गया था कि हमलोग बिलकुल व्यक्तिगत रूप में आए हैं।’ मेहरोत्रा और गोस्वामी डा.लोहिया के मित्र थे। इन लोगों ने लोहिया को लिखा कि ‘जब आप दिल्ली में हों तो डा.अम्बेडकर आपसे जरूर मिलना चाहेंगे।वे बूढ़े हैं और उनकी तबीयत ठीक नहीं है। वे सहारा लेकर चलते फिरते हैं।वे पार्टी का पूरा साहित्य चाहते हैं और मैनकाइंड के सभी अंक।वे इसका पैसा देंगे।वे हमारी राय से सहमत थे कि श्री नेहरू हर एक दल को तोड़ना चाहते हैं और कि विरोधी पक्ष को मजबूत होना चाहिए।वे मजबूत जड़ों वाले एक नए राजनीतिक दल के पक्ष में हैं।वे नहीं समझते कि माक्र्सवादी ढंग का साम्यवाद या समाजवाद हिंदुस्तान के लिए लाभदायक होगा।लेकिन जब हमलोगों ने अपना दृष्टिकोण रखा तो उनकी दिलचस्पी बढ़ी।’ ‘ हमलोगों ने उन्हें कान पुर के आम क्षेत्र से लोक सभा का चुनाव लड़ने का न्योता दिया।इस ख्याल को उन्होंने नापंसद नहीं किया,लेकिन कहा कि वे आपसे पूरे हिंदुस्तान के पैमाने पर बात करना चाहते हैं।हमलोगों ने यह साफ कर दिया कि हमलोग अपनी नीति के कारण कोई समझौता नहीं कर सकते।ऐसा लगा कि वे अनुसूचित जाति संघ से बहुत मोह नहीं रखते।कार्य कारिणी की बैठक दिल्ली में 30 को हो रही है।श्री नेहरू के बारे में जानकारी करने पर उन्हें बहुत दिलचस्पी थी। (सिनेमा आउटफिट आदि की मैनकाइंड वाली चर्चा) उन्होंने कहा कि इन बातों का यथेष्ट प्रचार होना चाहिए।वे दिल्ली से एक अंग्रेजी दैनिक भी निकालना चाहते हैं।’ ‘ वे हम लोगों के दृष्टिकोण को बहुत सहानुभूति,तबियत और उत्सुकता के साथ पूरे विस्तार में समझना चाहते थे। उन्होंने थोड़े विस्तार में इंगलैंड की प्रजातांत्रिक प्रणाली की चर्चा की जिससे उम्मीदवार चुने जाते हैं और लगता है कि जनतंत्र में उनका दृढ़ विश्वास है। यह सार है। हमलोग खुद नहीं आ सके क्योंकि यह पता नहीं था कि आप कहां हैं और हमारे पास पैसा नहीं था। 23 सितंबर 1956 को हैदरा बाद दफ्तर में टेलीफोन से बात करने की कोशिश की, कोई जवाब नहीं मिला,क्योंकि वहां पर किसी ने टेलीफोन नहीं उठाया। डा.अम्बेडकर का पता ः 26 अली पुर रोड, नई दिल्ली।’ इस पत्र के जवाब में लोहिया ने 1 अक्तूबर 1956 को विमल और धर्मवीर को हैदरा बाद से लिखा कि ‘ तुम्हारी चिट्ठी मिली। मैं चाहूंगा कि तुम लोग डा.अम्बेडकर से बातचीत जारी रखो लेकिन याद रखना कि जिस दिशा का तुम लोगों ने खुद अपनी चिट्ठी में उल्लेख किया है,उससे इधर- उधर नहीं होना।डा.अम्बेडकर की सबसे बड़ी दिक्कत रही है कि वे सिद्धांत में अटलांटिक गुट से नजदीक महसूस करते हैं। मैं नहीं समझता कि इस निकटता के पीछे सिद्धांत के अलावा और भी कोई बात है।लेकिन इसमें हम लोगों को बहुत सतर्क रहना चाहिए।मैं चाहता हूं कि डा.अम्बेडकर समान दूरी के खेमे की स्थिति में आ जाएं।तुम लोग अपने मित्र के जरिए सिद्धांत की थोड़ी बहुत बहस भी चलाओ।’ ‘ डा.अम्बेडकर की लिखी चिट्ठी की एक नकल भिजवा रहा हूं। अगर वे चाहते हैं कि मैं उनसे दिल्ली में मिलूं,तो तुम लोग भी वहां रह सकते हो।‘ विमल मेहरोत्ऱा ने 15 अक्तूबर 1956 को डा.अम्बेडकर को लिखा कि ‘ पिछले महीने मैं और मेरे मित्र श्री धर्मवीर गोस्वामी आपसे दिल्ली में मिले थे।उसके बाद अपनी बातचीत की खबर हमने डा.लोहिया को दी।मैंने बहुत ध्यान से परिगणित जाति संघ की कार्य समिति के फैसलों का अध्ययन किया है।उसमें से देश की जनता के लिए विशेष दिलचस्पी की तीन चीजें निकलती हैं।़........मुझ जैसे आदमी का आपको कोई सलाह देना धृष्टता होगी,लेकिन देश के लिए अच्छा होता कि देश के मौजूदा राजनीतिक दलों के नीति और कार्यक्रम को आप देख लेते और इनकी कथनी और करनी के बारे में अपनी राय देते।’ ‘ चुनाव समझौते के बारे में।हमलोग अपने को लगभग तीन हजार क्षेत्रों से अलग रखेंगे।पांच सौ या छह सौ क्षेत्रों से चुनाव लड़ेंगे।इसलिए चुनाव समझौते का रास्ता निकल आता है।सोशलिस्ट पार्टी ने अपनी नीति में तय किया है कि वहीं से चुनाव लड़ेंगे जहां कुल मतदाताओं के एक प्रतिशत पार्टी सदस्य हैं और एक तिहाई मतदान केंद्रों में फैले हों।’ ‘स्वेज के बारे में आपकी समिति का प्रस्ताव राष्ट्रीय स्वार्थ की दृष्टि से भले सोचा गया हो,लेकिन मुझे बहुत शक है कि दूर की दृष्टि से यह हिंदुस्तान के लोगों के सचमुच स्वार्थ में होगा।इसका मतलब यह होगा कि हिंदुस्तान में लगी विदेशी पूंजी का राष्ट्रीयकरण बिना उन देशोें की सहमति के नहीं किया जाएगा जिनके पूंजीपतियों का पैसा लगा हो।मैं अनुरोध करूंगा कि परिगणित जाति संघ के दफ्तर को कृपया इन प्रस्तावों को हमें भेजने के लिए कहें।मुझे पता चला है कि डा.लोहिया आपसे मिलने वाले हैं।लेकिन मैं समझता हूं कि निकट भविष्य में उनके लिए यह संभव नहीं होगा।अगर आप अपना कुछ कीमती समय दे सकें तो मैं आकर आपसे सारी बातें कर सकूं।’ पब्लिक एजेंडा (31-10-2008)

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