बुधवार, 21 जनवरी 2009

कैसे हो आतंकियों के खिलाफ त्वरित कमांडो कार्रवाई

क्या किसी आतंकी हमले की स्थिति में तत्काल कमांडो दस्ते को घटनास्थल पर भेजने में हमारी सरकार अगली बार सफल हो पायेगी ? कई कारणों से अब तक तो विफल ही रही है। 1999 के कंधार विमान अपहरण कांड और 2008 के मुंबई हमले के कटु अनुभव देश के सामने हैं। सरकार ने कंधार कांड में विफलता से नहीं सीखा और गत साल वही गलती दुहराई गई। कंधार कांड में केंद्र सरकार कंधार में नहीं, बल्कि अमृतसर में विफल हुई थी। विमान को कंधार जाने से पहले तब अमृतसर में ही रोका जा सकता था। केंद्र सरकार नेशनल सिक्युरिटी गार्ड को देश के तीन और स्थानों में स्टेशन करने की व्यवस्था करने जा रही है। इस कदम से तो त्वरित कार्रवाई के लिए सरकारी मंशा जाहिर होती है। साथ ही यह पिछली घटनाओं में त्वरित कमांडो कार्रवाई में विफलता की भी परोक्ष स्वीकृति भी है, पर क्या इतना ही काफी है ? याद रहे कि अभी एनएसजी के दस्ते दिल्ली के पास मनेसर (गुड़गांव) में तैनात हैं। कंधार विमान अपहरण कांड और मुंबई ताज हमले के समय हुई कुछ अन्य गलतियों से भी सबक लेने की जरूरत जान पड़ती है। किसी आतंकी हमले की स्थिति में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा उच्चतम स्तर पर तत्क्षण जवाबी हमले का फैसला लेने की जरूरत पड़ती है। कंधार और मुंबई हादसे के समय सरकारों ने इस दिशा में काफी सुस्ती दिखाई। कांग्रेस के नेतागण यदा-कदा यह कह कर भाजपा को चिढ़ाते रहते हैं कि जसवंत सिंह आतंकी मसूद अजहर को अपने साथ ले जाकर कंधार छोड़ आये थे। आतंकवाद पर वे क्या बात करेंगे ? 24 दिसंबर, 1999 को अपहरणकर्ता इंडियन एयरलाइंस के काठमांडु-दिल्ली विमान -814 को लखनऊ और अमृसर होते हुए कंधार ले गये थे। उस विमान पर करीब पौने दो सौ यात्री सवार थे। कंधार में विमान पहुंचने के बाद तब की भारत सरकार और उसके विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने जो कुछ किया, उस कृत्य को तब के लगभग पूरे प्रतिपक्ष का समर्थन हासिल था। केंद्र सरकार को उस विमान के अपहरण की सूचना उस दिन शाम में 4 बजकर 56 मिनट पर मिल चुकी थी, तब वह लखनऊ के ऊपर उड़ रहा था। तब से करीब तीन घंटों तक भारतीय सीमा में विमान चक्कर लगाता रहा। जब वह विमान अमृतसर से उड़ा, तो सात बजकर 49 मिनट हो चुके थे। इस बीच अमृतसर हवाई अड्डे पर वह विमान 40 मिनट तक रुका भी रहा, पर तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली से बाहर थे और वे अपने विशेष विमान से दिल्ली लौट रहे थे। जिस विमान से प्रधानमंत्री यात्रा कर रहे थे, उसमें सेटेलाइट फोन की व्यवस्था नहीं थी। इसलिए ऐसी आपात स्थिति में भी उन्हें सूचित करके उनसे उचित निदेश प्राप्त नहीं किया जा सका। प्रधानमंत्री के उनके दिल्ली आवास पहुंचने पर ही इस संबंध में उच्चस्तरीय बैठकों का दौर शुरू हुआ। सवाल है कि प्रधानमंत्री जिस विमान में यात्रा कर रहे हों, उसमें सेटलाइट फोन नहीं हो, सरकार के ऐसे आपराधिक निकम्मेपन के लिए एनडीए सरकार को जम कर कोसा जाना चाहिए था। यदि किसी कारण प्रधानमंत्री से संपर्क नहीं हो सका, तो दूसरे मंत्री और अफसर ऐसी आपात स्थिति में हाथ-पर-हाथ रख कर बैठे रहेंगे ? समय पर एनएसजी कमांडो को अमृतसर क्यों नहीं भेजा जा सका ? इंधन भरने के लिए अपहरणकर्ता विमान को अमृतसर उतरवाने को बाध्य हो गये थे और इस बात की पूर्व सूचना कें्रद सरकार को थी। एनएसजी से संबद्ध एक अधिकारी ने 25 दिसंबर, 1999 को मीडिया से कहा था कि ‘विमान से अमृतसर से उड़ान भरने के बाद भारतीय सीमा क्षेत्र से बाहर जाने से पहले तक एनएसजी कमांडो दस्ते के पास विमान को अपहर्ताओं से मुक्त करा लेने के पर्याप्त अवसर थे, लेकिन ऊपर के स्तर पर भ्रम होने के कारण कमांडो का उपयोग नहीं किया जा सका। ऐसी ही स्थितियों से निबटने के लिए बनाये गये विशेष प्रबंधन ग्रूप के अधिकारियों को पता ही नहीं था कि उन्हें क्या करना है, जबकि इसके लिए दिशा-निर्देश स्पष्ट हैं।’ यदि विमान अमृतसर में ही रोक लिया गया होता, तो अपहर्ताओं से वार्ता चलाने पर भारत सरकार का पलड़ा भारी होता, पर विमान के कंधार चले जाने के बाद तो भारत सरकार असहाय हो गयी, क्योंकि वहां तब तालिबान की सरकार थी और उससे भारत का कोई राजनयिक रिश्ता था ही नहीं। तालिबानी अपहरणकर्ताओं से मिले हुए थे। अमृतसर में भारत सरकार की विफलता के लिए किसी-न-किसी को सजा मिल गयी होती, तो इस बार गत माह कमांडो को मनेसर से मुंबई भेजने में साढ़े नौ घंटे नहीं लग जाते। यदि गत नवंबर में समय पर कमांडो मुंबई पहुंच गये होते, तो वहां मृतकों और घायलों की संख्या काफी कम हो सकती थी। इस बार तो कमांडो को दिल्ली से मुंबई पहुंचाने के लिए विमान ही समय पर उपलब्ध नहीं हो सका। तब एनएसजी के लिए आरक्षित वह विमान पता नहीं क्यों चंडीगढ़ में था ! जबकि, उसे इंधन भरी टंकी के साथ दिल्ली हवाई अड्डे पर हरदम तैनात रहना चाहिए था। अब देखना यह होगा कि कमांडो के लिए आरक्षित विमान का किसी वीवीआइपी के लिए घटना के समय ही इस्तेमाल तो नहीं हो रहा है ! कंधार में खड़े किये गये विमान के यात्रियों को किसी-न-किसी कीमत पर छुडा लाने के लिए 27 दिसंबर, 1999 को दिल्ली में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सर्वदलीय बैठक बुलानी पड़ी थी। बैठक के बारे में दूसरे दिन के अखबार में यह खबर छपी, ‘देश के प्रमुख राजनीतिक दलों ने इंडियन एयरलाइंस के अपहृत विमान के यात्रियों और चालक दल की सकुशल रिहाई के लिए आवश्यक कदम उठाने का सरकार को सुझाव दिया है। इन दलों के नेताओं ने कहा कि संकट की इस घड़ी में वे सब एक हैं। मगर पल- पल बदलते घटनाक्रम के मद्देनजर जरूरी कदम उठाने का फैसला तो सरकार ही ले सकती है। बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, माकपा के महासचिव हरकिशन सिंह सुरजित, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जे चितरंजन सहित कई प्रमुख नेताओं ने भाग लिया।’ यानी जब अमृतसर में उस विमान को नहीं रोका जा कसा, तो पूरा देश लाचार हो गया। यह और बात है कि राजनीतिक कारणों से अब मसूद अजहर को छोड़ देने के लिए एक दल दूसरे दल को दोषी ठहरा रहा है। हालांकि तब प्रतिपक्ष ने केंद्र सरकार से साफ- साफ कहा था कि यात्रियों और चालक दल की वह सकुशल रिहाई कराये। किसी ने बैठक में यह नहीं कहा कि भले यात्रियों की जान ही क्यों न चली जाये, पर मसूद अजहर या किसी आतंकी को नहीं छोड़ना है। अब जरा ताजा मुंबई के समय सरकारी सुस्ती का एक नमूना देखिए। 26 नवंबर, 2008 की रात नौ बज कर 30 मिनट पर आतंकियों ने मुंबई में गोलियां चलानी शुरू कर दीं। मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख को सूचना दी गयी। उन्होंने 11 बजे रात में केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटील को फोन पर कहा कि उन्हें एनएसजी कमांडो चाहिए। पाटील ने एनएसजी प्रमुख जेके दत्ता को निदेश दिया कि 200 कमांडो मुंबई भेजें। जिस विमान से उन्हें मुंबई भेजना था, वह उस समय चंडीगढ़ में था। उसे दिल्ली हवाई अड्डा लाकर उसमें इंधन भरते काफी देर हो गयी। धीमी गति वाला विमान मुंबई पहुंचा और कमांडो 27 नवंबर की सुबह सात बजे ही अपनी कार्रवाई शुरू कर सके। अब सवाल है कि क्या ऐसे मौकों के लिए तेज गति वाला विमान नहीं रहना चाहिए ? क्यों कमांडो को घटना स्थल पर भेजने में साढ़े नौ घंटे लगे ? क्यों कंधार कंाड के समय प्रधानमंत्री के विमान में सेटेलाइट फोन की सुविधा नहीं थी ? यदि मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री मुख्यालय में नहीं हैं, तो आपात स्थिति में तत्क्षण निर्णय लेने के लिए अन्य मंत्री या अफसर अधिकृत क्यों नहीं हैं ? इन और इस तरह के सवालों का माकूल जवाब ही अगले किसी खतरे से हमें बचा पायेगा।
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