यह तो पीजा और बर्गर तथा अन्य आधुनिक देसी-विदेशी भोज्य पदार्थों का युग है। पर,इस मौजूदा युग की नई पीढ़ी के लिए यह जान लेना रूचिकर होगा कि करीब सात सौ साल पहले के भारत के प्रमुख फल और अनाज कैसे और कौन -कौन थे। यानी सात सौ साल पहले के हमारे पूर्वज किन- किन अनाजों और फलों पर निर्भर थे।इस संबंध में इतिहास प्रसिद्ध विदेशी यात्री इब्न बतूता ने अपने यात्रा वृतांत में चैदहवीं शताब्दी के भारत के मुख्य अनाजों और फलों का वर्णन किया है। अबू अब्दुला मुहम्मद उर्फ इब्न बतूता ने भारत के तब के आम, कटहल, जामुन,नारंगी, महुआ का वर्णन किया है।इसी तरह अनाजों के बारे में उसने लिखा है कि ‘यहां साल में दो फसलें होती हैं।गर्मी पड़ने पर वर्षा होती है और उस समय खरीफ की फसल बोई जाती है।यह फसल बोने के साठ दिन पीछे काटी जाती है।अन्य अनाजों के अतिरिक्त इसमें निम्नलिखित अनाज भी उत्पन्न होते हैं-कोदो,चीना,शामाख यानी सांवक जो चीना से छोटा होता है और विरक्तों, साधुओं, संन्यासियों तथा निर्धनों के खाने के काम आता है।एक हाथ में सूप और दूसरे हाथ में छोटी छड़ी लेकर पौधे को झाड़ने से सांवक के दाने जो बहुत ही छोटे होते हैं, सूप में गिर पड़ते हैं। धूप में सुखा कर काठ की ओखली में डाल कर कूटने से इनका छिलका पृथक हो जाता है और भीतर का श्वेत दाना निकल आता है।इसकी रोटी भी बनाई जाती है और खीर भी पकाते हैं। भैंस के दूध में इसकी बनी हुई खीर रोटी से कहीं अधिक स्वदिष्ट होती है।मुझे यह खीर बहुत प्रिय थी,और मैं इसको बहुधा पका कर खाया करता था।’ रबी और खरीफ के बारे में बतूता लिखता है कि ‘खरीफ की फसल बोने के साठ दिन पश्चात धरती में रबी की फसल का अनाज - गेहूं, चना, मसरी, जौ इत्यादि बो दिए जाते हैं।यहां की धरती अच्छी है और सदा फूलती -फलती रहती है।धान तो एक वर्ष में तीन बार बोया जाता है।इसकी उपज भी अन्य अनाजों से कहीं अधिक होती है।’ ‘मूग भी मटर की तरह है।परंतु मूंग कुछ लंबी और हरे रंग की होती है।मूंग और चावल की खिचड़ी नामक भोजन विशेष रूप से बनाया जाता है।जिस तरह हमारे देश मोराको में प्रातःकाल निहारमुख हरीरा लेने की प्रथा है,उसी प्रकार यहां के लोग घी मिला कर खिच़ड़ी खाते हैं।मोठ अनाज तो होता है कजरू के समान, परंतु दाना अधिक छोटा होता है। यह अनाज भी घोड़ों और बैलों को दाने के रूप में दिया जाता है।यहां के लोग जौ को इतना बलदायक नहीं समझते इसी कारण चने अथवा मोठ को दल लेते हैं और पानी में भिंगों कर घोड़ों को खिलाते हैं।घोड़ों को मोटा करने के लिए हरे जौ खिलाते हैं।इसके अतिरिक्त तिल और गन्ना भी इसी खरीफ फसल में बोया जाता है।’ फलों में आम का वर्णन इब्न बतूता ने कुछ इस तरह किया है, ‘इस देश में आम नामक एक फल होता है जिसका वृक्ष होता तो नारंगी की भाति है,पर डील में उससे कहीं अधिक बड़ा होता है।पत्ते खूब सघन होते हैं।इस वृक्ष की छाया खूब होती है।परंतु इसके नीचे सोने से लोग आलसी हो जाते हैं।फल अर्थात आम, आलू बोखारे से बड़ा होता है।कच्चे में लोग आम का अचार बनाते हैं।आम के अतिरिक्त इस देश में अदरक और मिर्च का भी अचार बनाया जाता है।कटहल का वृक्ष बड़ा होता है। कटहल के फल पेड़ की जड़ में लगते हैं।यह खूब मीठा और सुस्वादु होता है।प्रत्येक कोये के भीतर बाकले की भांति गुठली होती है। बाकला इस देश में नहीं होता। कटहल की गुठली को भून कर या पका कर खाने से इसका स्वाद भी बाकले सा प्रतीत होता है।लाल रंग की मिट्ठी दबा कर रखने से ये गुठलियां अगले वर्ष तक भी रह सकती हैं।इसकी गणना भारत वर्ष के उत्तम फलों में की जाती हैं।’ ‘जामुन का बड़ा पेड़ होता है।फल जैतून की भांति होता है।नारंगी इस देश में बहुत होती है।नारंगियां अधिकतया खट्टी नहीं होतीं।महुआ का पेड़ बहुत बड़ा होता है।फल छोटे आलू बोखारे की तरह होता है और बहुत मीठा होता है।भारत में अंगूर बहुत ही कम होता है।दिल्ली तथा अन्य कतिपय स्थानों के अतिरिक्त शायद ही कहीं होता हो।महुए के पेड़ साल मेंे दो बार फलते हैं।इसकी गुठली का तेल निकाल कर दीपों में जलाया जाता है।कसेहरा यानी कसेरू धरती से खोद कर निकाला जाता है।यह कसतल की भांति होता है।बहुत मीठा होता है।हमारे देश के फलों में से अनार भी यहां होता है और वर्ष में दो बार फलता है।माल द्वीप समूह में अनार के पेड़ में मैंने बारहों महीने फल देखे।’ प्रभात खबर (12-12-2008)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें