पश्चिम बंगाल यदि आज भूमि सुधार के मामले में आदर्श राज्य माना जाता है तो उसका अधिक श्रेय हरे कृष्ण कोनार को मिलना चाहिए। वे अब नहीं रहे। पर, जब भी भूमि सुधार की समस्या पर कहीं चर्चा होती है तो हरे कृष्ण कोनार का भी नाम लिया जाता है। सी.पी.एम.नेता हरे कृष्ण कोनार सन् 1967 में बंगाल में गठित पहली गैर कांग्रेसी सरकार में राजस्व मंत्री थे। तब अजय मुखर्जी मुख्य मंत्री थे और तब तक बंगाल विधान सभा में सी.पी.एम.को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। अजय मुखर्जी कांग्रेस से निकले थे और उन्होंने अपना क्षेत्रीय दल बनाया था। यानी,अजय मुखर्जी एक परंपरागत नेता थे और भूमि सुधार के प्रति उनकी वैसी क्रांतिकारी राय नहीं थी जैसी माकपा की थी। इसके बावजूद तत्कालीन भूमि सुधार मंत्री कोनार की इच्छा के अनुसार बंगाल के किसाानों ने बेनामी और गैर मजरूआ जमीनों पर कब्जा करने का आंदोलन चलाया और वह आंदोलन काफी हद तक सफल रहा।मार्च 1969 से पहले ही बंगाल के दो लाख 38 हजार गरीब किसानों के बीच दो लाख 32 हजार एकड़ अतिरिक्त जमीन बांटी जा चुकी थी। प. बंगाल की वाम सरकार ने तो 1977 में भूमि सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाया जो देश भर में चर्चित हुआ। करीब 16 लाख बटाइदारों को उनका कानूनी हक दिलाने के लिए जो कानून बना,उसने वाम मोर्चा को एक बड़ा वोट बैंक प्रदान कर दिया।क्योंकि वाम मोर्चा ने हर चुनाव के पहले उन बटाइदारों को इस बात की याद दिलाई की कि कांग्रेस यदि दुबारा सत्ता में आ गई तो उन्हंे जमीन से बेदखल होना पड़ेगा।ंपर ,उसकी नींव कोनार ने डाल दी थी।वाम मोर्चा की सरकार के स्थायित्व का यह एक बड़ा कारण बताया जाता है। बटाईदार वाम मोर्चा के ठोस वोट बैंक हैं।पर उससे पहले ही कोनार का 1974 में निधन हो चुका था। हरे कृष्ण कोनार का जन्म 5 अगस्त 1915 को बंगाल के बर्दवान जिले के रायना थाने के कामारगडि़या गांव में हुआ था।उन्होंने 1930 में असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और वे 6 महीने तक जेल में रहे।बाद में वे विनय चैधरी और सरोज मुखर्जी के साथ ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जारी क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए। सितंबर 1932 में उन्हें बेगुट डकैती केस में 6 साल की सजा हुई।वे सन् 1933 में अंडमान निर्वासित कर दिए गए। जेल में उन्होंने माक्र्सवाद-लेनिनवाद का अध्ययन किया।वे 1938 में जेल से रिहा हुए और सी.पी.आई.में शामिल हो गए।उन्होंने किसान आंदोलन में काम किया।इस क्षेत्र में उनका अध्ययन इतना अधिक था कि आजादी के बाद सत्तर के दशक में भारत सरकार ने हरे कृष्ण कोनार को अफसरों को संबोधित करने के लिए देहरादून भेजा था।वहां उन्हें भूमि समस्या पर आयोजित सेमिनार में बोलना था।उससे पहले 26 मार्च 1948 को जब सी.पी.इ.को भारत सरकार ने गैर कानूनी घोषित किया तो देश के अन्य कम्युनिस्ट नेताओं के साथ- साथ कोनार को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। कोनार 1957 में मेमारी कालना चुनाव क्षेत्र से बंगाल विधान सभा के सदस्य चुने गए।1962 में वे कालना क्षेत्र से विजयी हुए।सन् सरसठ में वे उसी क्षेत्र से जीते। वे 1969 के मध्यावधि चुनाव में भी विजयरी हुए और फिर मंत्री बने।बाद के चुनाव में भी वे जीते, पर वे कैंसर से ग्रस्त हो गए और 23 जुलाई 1974 को उनका निधन हो गया।पर इतनी ही कम उम्र में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी।उन्होंने 9 सितंबर 1969 को तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को लिखे अपने पत्र में कहा था कि ‘कारगर भूमि सुधार में असफलता ने हमारे देश में एक शोचनीय स्थिति पैदा कर दी है।नतीजतन ग्रामीण अर्थ व्यवस्था बुरी तरह टूट गई है।’ उन्होंने लिखा था कि ‘हदबंदी कानून में निर्मम होकर संशोधन करना होगा।छूट खत्म करनी होगी। प्रति परिवार हदबंदी लागू करनी होगी।भूमि के हस्तानांतरण पर कठोरता से रोक लगाई जाए।पुरानी बंदोबस्ती में गैर कानूनी बंदोबस्तियों को रद्द करने का अधिकार सरकार को दिया जाना चाहिए।जमींदार और जोतदार हदबंदी को अंगूठा दिखा रहे हैं।उन्होंने अतिरिक्त जमीन को गैर कानूनी तरीके से अपने पास ही रख लिया है। इस पर कार्रवाई होनी चाहिए।’इस तरह उन्होंने केंद्र सरकार को कई और सुझाव दिए।जब उन्होंने प्रधान मंत्री को पत्र लिखा था,तब वे बंगाल में मंत्री थे। कोनार की बातें बिहार पर काफी हद तक अब भी लागू है।इस राज्य के पिछड़ापन बड़ा कारण यह है कि यहां भूमि सुधार नहीं हुए। बिहार में भूमि सुधार को लेकर सुझाव देने के लिए नीतीश सरकार ने बंगाल के ही एक भूमि सुधार विशेषज्ञ डी.बंदोपाध्याय की अध्यक्षता में आयोग बनाया था।उसने अपने सुझाव बिहार सरकार को दे दिए हंै। देखना है कि उसे बिहार में लागू किया जाता है या नहीं। प्रभात खबर (17-10-2008)
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