शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

कोसी तटबंध, कपूर कमीशन और आरोपित पुरस्कृत

सत्तर के दशक में कोसी सिंचाई योजना स्थल पर अररिया में तैनात एक सहायक अभियंता की शिक्षिका पत्नी के साथ एक ठेकेदार ने इसलिए बलात्कार किया क्योंकि उसके पति ने उसके बोगस बिल पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया था। इस बलात्कार की घृणित घटना को अंजाम देने के लिए ठेकेदार ने इंजीनियर के हाथ -पैर बांध दिए थे। अपनी आंखों के सामने हुई इस घटना के सदमे से वह इंजीनियर विक्षिप्त हो गया।उसका प्रमोशन रुक गया।बाद के वर्षों के एक सिंचाई मंत्री को असलियत का जब पता चला तो उन्होंने ‘अनुकम्पा’ के तहत देर से ही सही, पर उसे प्रोन्नति दे दी । जाहिर है कि उस बलात्कारी ठेकेदार को मजबूत राजनीतिक संरक्षण हासिल था। यह घटना इस बात का सबूत है कि किस तरह कोसी सिंचाई योजना के भ्रष्ट ठेकेदारों का मनोबल बढ़ा हुआ था। मनोबल इसलिए भी बढ़ा क्योंकि कोसी तटबंध व बराज के निर्माण के शुरूआती दौर में ही राजनीतिक मदद से भ्रष्टों का मनोबल बढ़ा दिया गया था। इस काम में अपनी ‘हिस्सेदारी’ के लिए भ्रष्ट राजनीति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस संबंध में हुई न्यायिक जांच आयोग की रपट भी यही कहती है। समय बीतने के साथ कोसी सिंचाई योजना में भ्रष्टाचार की समस्या इतनी विकराल होती गई कि संबंधित लोगों के भ्रष्टाचार और काहिली के कारण तटबंध का उचित रख- रखाव नहीं होता रहा और अंततः गत अगस्त में कुशहा में वह टूट गया । लाखों लोग तबाह हो गए। यह ह्रदय विदारक , दर्दनाक व शर्मनाक घटना वर्षों की लगातार उपेक्षा और भ्रष्टाचार के मिले -जुले असर के कारण हुई। हालांकि यह भी कहा जाना चाहिए कि इस बीच कोसी योजना से जुड़े सारे के सारे मंत्री, अफसर और ठेकेदार लोग भ्रष्ट ही नहीं थे।पर अच्छे और कर्मठ लोगों की संख्या इतनी कम रही कि वे भी लगातार होती बर्बादी को रोक नहीं पाए। इन दिनों बर्बाद कोसी क्षेत्र पर पूरी बिहार सरकार का ध्यान लगा हुआ है। उस क्षेत्र का पुनर्निर्माण जरूरी भी है।उस ओर ध्यान देने का नतीजा है कि बाकी बिहार के विकास की तेज गति अब प्रभावित हो रही है। इतनी बड़ी विपदा के लिए आखिर कौन- कौन लोग जिम्मेदार रहे हैं, उनकी खोज खबर जरा जरूरी है। हालांकि यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि गत अगस्त में कुशहा में तटबंध की टूट के लिए जिम्मेदार मौजूदा सरकारी व गैर सरकारी लोगों का कसूर कुछ कम है। बात शुरू से ही प्रारंभ की जाए।कोसी तटबंध और बराज का निर्माण पचास के दशक में शुरू हुआ था।इसके निर्माण कार्य में सरकार को सहयोग करने के लिए भारत सेवक समाज ने भी गैर सरकारी संगठन के रूप में योगदान किया था।उसका काम कोसी तटबंध के निर्माण में श्रमदान व जन सहयोग की व्यवस्था करना था।इसके लिए भी उसे सरकार से पैसे मिले थे। पर आरोप लगा कि समाज ने उन पैसों का गोलमाल किया है। भारत सेवक समाज को उच्चस्तरीय राजनीतिक संरक्षण हासिल था। तकनीकी रूप से भले भारत सेवक समाज जिम्मेदार माना गया, पर नैतिक जिम्मेदारी तो तब के कुछ बड़े सत्ताधारी नेताओं की ही थी जिन्होंने इसमें तरह तरह के भ्रष्टाचार को संरक्षण दिया था। कोसी तटबंध निर्माण योजना में भ्रष्टाचार की शिकायतों की चर्चा जब तेज हुई तो केंद्र सरकार ने आरोपों की जांच सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस जे.एल.कपूर से कराई थी।कपूर आयोग ने सन् 1973 में ही अपनी रपट केंद्र सरकार को दे दी ।आयोग ने भारत सेवक समाज के खिलाफ आरोप को सही पाया। आयोग की रपट से यह साफ हो गया कि किस तरह योजना की शैशवास्था में ही उसमें किस तरह भ्रष्टाचार का बीज बो दिया गया। 27 जुलाई 1987 को बिहार विधान सभा में कपूर कमीशन की रपट पर जो चर्चा हुई थी, उसका विवरण यहां प्रस्तुत करना मौजू होगा। उमाधर प्रसाद सिंह -क्या मंत्री, मंत्रिमंडल (निगरानी) विभाग यह बताने की कृपा करेंगे कि (1) क्या यह बात सही है कि कोसी योजना के तहत भारत सेवक समाज, बिहार द्वारा की गई अनियमितता की जांच कपूर कमीशन द्वारा 1965 में की गई थी,(2) क्या यह बात सही है कि उक्त कमीशन ने 1967 में ही सरकार को प्रतिवेदन दिया था जिसमें स्वामी हरिनारायणनंद, अध्यक्ष, भारत सेवक समाज, बिहार को उक्त अनियमितताओं के लिए प्रमुख दोषी करार दिया था,(3) क्या यह बात सही है कि स्वामी हरिनारायणानंद को बिहार सरकार द्वारा 1985 से अब तक भ्रष्टाचार निरोध समिति के अध्यक्ष पद पर रखने का क्या औचित्य है ?रामाश्रय प्रसाद सिंह (मंत्री) -अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य उमाधर सिंह का जो सवाल है, यह सवाल संबंधित है कपूर कमीशन से। कपूर कमीशन को भारत सरकार ने बनाया था। सारे कागजातों को देखने की कोशिश हमने की है। भारत सरकार से बिहार सरकार में कमीशन के संबंध में एक्शन के लिए कोई रिपोर्ट नहीं हुई है। इसलिए बिहार सरकार द्वारा इसमें उत्तर देना कठिन है।रघुनाथ झा-स्वामी हरिनारायणानंद का नाम है या नहीं ? उनके उपर दोष प्रमाणित हुए हैं या नहीं, कपूर कमीशन में ?रामाश्रय प्रसाद सिंह - हमारे पास कोई आधार नहीं है जिससे कि हम कह सकें कि स्वामी हरिनारायणानंद का नाम था और वे अभिुक्त थे।उमाधर सिंह - माननीय मंत्री जी ने बताया कि भारत सरकार का यह कपूर कमीशन था।पर, जांच हुई थी कोसी योजना में।उस समय भारत सेवक समाज के द्वारा जो काम किए गये थे, उसके बारे में और बिहार में भी जांच हुई थी कोसी योजना में जो घोटाले हुए थे, उस पर जांच हुई थी।और कपूर कमीशन ने सारी अनियमितताओं के लिए स्वामी हरिनारायणानंद को दोषी ठहराया था।आप कहते हैं कि सिंचाई विभाग में कोई रिपोर्ट नहीं है, यह आश्चर्य की बात है।रामाश्रय सिंह - सिंचाई विभाग की बात नहीं है। हमने यह कहा कि भारत सरकार के यहां से रपट हमलोगों के यहां नहीं आई है। राजो सिंह - अध्यक्ष महोदय, अभी माननीय मंत्री महोदय ने कहा कि यह कमीशन भारत सरकार ने बनाया है और कोई रेफेरेंस बिहार सरकार के साथ नहीं हुआ है।मैं आपके माध्यम से जानना चाहता हूं कि जो विषय था भारत सेवक समाज का,वह बिहार राज्य के क्षेत्र का था या बाहर का था ?रामाश्रय प्रसाद सिंह - इसमें बिहार राज्य के कोसी क्षेत्र में जो सोशल वर्क हो रहे थे, उससे संबंधित था और दूसरे राज्य से भी संबंधित जो भारत सेवक समाज के थे,से था। अध्यक्ष (शिव चंद्र झा) - मैं सोचता हूं कि आपके पास कागजात उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन सरकार उस रिपोर्ट के संबंध में, केंद्र सरकार जहां जांच हुई है, से जानकारी ले ले और यदि ऐसी कोई बात हो, तो यह जनहित का प्रश्न है, आपको उस पर उचित कार्रवाई करनी चाहिए।रामाश्रय प्रसाद सिंह - अध्यक्ष महोदय, हमने रेजिडेंट कमीश्नर को टेलिपिं्रंटर संदेश दिया है कि भारत सरकार से पूरी रिपोर्ट लेकर दिया जाए।रघुनाथ झा - माननीय मंत्री ने दो खंडों में उत्तर दिया।अध्यक्ष महोदय,माननीय मंत्री ने हवाला दिया है कपूर कमीशन का और इसकी रिपोर्ट के बारे में जानकारी बिहार को नहीं है।तीसरा खंड देखा जाए।‘क्या यह बात सही है कि स्वामी हरिनारायणानंद को बिहार सरकार द्वारा 1985 से अब तक भ्रष्टाचार निरोध समिति के अध्यक्ष पद पर रखा गया है।इसके बारे में मंत्री जी ने कोई उत्तर नहीं दिया है।रामश्रय प्रसाद सिंह - इसलिए कि उस रिपोर्ट की कोई चीज हमारे पास नहीं है।कैसे जवाब देंगे ? जब रिपोर्ट है ही नहीं तो उस पर क्या जवाब देंगे ? (सदन में शोरगुल) (कई माननीय सदस्य खड़े हो गए।)अध्यक्ष - आप बैठ जाएं।उत्तर दिलवा देता हूं। (सदन में शोरगुल) अध्यक्ष - शंति शांति ।राजो सिंह - अध्यक्ष महोदय, एक बात सुन लीजिए। माननीय सदस्य रघुनाथ झा ने आपका ध्यान आकृष्ट किया, सरकार का ध्यान आकृष्ट किया। मूल प्रश्न जो माननीय सदस्य उमाधर सिंह ने किया है, उसका अंतिम निचोड़ है कि इन पर कपूर आयोग में आरोप भी है तो क्या सरकार उनको (स्वामी हरिनारायणानंद को) हटाएंगी या नहीं ?अध्यक्ष- माननीय सदस्य श्री रघुनाथ झा ने प्रश्न के खंड - 3 की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट किया है। इस ख्ंाड के अंदर है , क्या यह बात सही है कि स्वामी हरिनारायणानंद को बिहार सरकार द्वारा 1985 से अब तक बिहार भ्रष्टाचार निरोध समिति के अध्यक्ष पद पर रखा गया है, तो मैं सोचता हूं कि सरकार को उत्तर स्वीकारात्मक है, कहने में कहां आपत्ति है ?रामाश्रय प्रसाद सिंह-उत्तर स्वीकारात्मक है। (सदन में शोर गुल)अध्यक्ष -अब बात समाप्त है। (इस अवसर पर विरोधी पक्ष के कई सदस्य खड़े हो गए।)अध्यक्ष - शांति, शांति। आप कृपया बैठ जाएं। फिर पूछेंगे। नक्सली विधायक उमाधर प्रसाद सिंह ने यह मामला बिहार विधान सभा में फिर 12 जनवरी 1988 को उठाया। उन्होंने कहा कि मैंने कपूर कमीशन की रपट की कापी के साथ एक पत्र भेज दिया है। पर सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। हालांकि कपूर कमीशन की रपट की काॅपी उपलब्ध नहीं रहने का बिहार सरकार का बहाना भी समाप्त हो गया था। पर राज्य सरकार को न तो कोई कार्रवाई करनी थी और न ही उसने किया। यानी, ऐसे व्यक्ति को भी भ्रष्टाचार निरोधक संगठन का प्रधान बना दिया गया , खुद जिस पर गड़बडि़यों का आरोप कपूर आयोग ने लगाया। पर ऐसा यह इकलौता मामला नहीं है।जिस प्रतिपक्ष ने कपूर कमीशन की रपट के आधार पर कार्रवाई करने की मांग विधान सभा और लोक सभा में की,उसी प्रतिपक्ष ने अय्यर कमीशन द्वारा दोषी ठहराए गए एक संगठन कांग्रेसी नेता को उन्हीें दिनों बिहार वित्तीय निगम का अध्यक्ष बना दिया था।यह बात तब की है जब कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्य मंत्री (1970-71 ) थेे। याद रहे कि संगठन कांग्रेस और जनसंघ की मदद से संसोपा नेता कपूरी ठाकुर ने तब सरकार बनाई थी। उमाधर सिंह ने तो स्वामी हरिनारायणानंद को ध्यान में रख कर विधान सभा में यह मामला उठाया था। पर यह तो पूरे मामले का एक छोटा पहलू था।स्वामी हरिनारायणानंद के एक मददगार व तब के केंद्रीय मंत्री ललित नारायण मिश्र को भी कोसी घोटाले को लेकर संसद में .सफाई देनी पड़ी थी। 2 जून 1971 को संसद में एल.एन.मिश्र ने कहा कि मैंने मई 1957 में ही भारत सेवक समाज की कोसी शाखा के संयोजक पद से इस्तीफा दे दिया था।उन्होंने यह भी कहा कि कोसी तटबंध के निर्माण के दौरान पैसे उन्हें ही दिए गए थे जिसे कमेटी ने देने के लिए कहा था।पैसे भी उसी काम में खर्च हुए थे जिस काम के लिए वे थे। पर, कपूर कमीशन ने अपनी विस्तृत रपट में यह बात लिखी है कि मिश्र द्वारा उठाए गए पैसों में से सबका हिसाब नहीं दिया गया। (कपूर आयोग रपट-पेज -104) एल.एन.मिश्र के अलावा भी कई सार्वजनिक नेताओं की चर्चा रपट में है। याद रहे कि सन् 1954 की प्रलंयकारी बाढ़ के बाद कोसी की धारा को नियंत्रित करने के लिए तटबंध और बराज बनाने का निर्णय हुआ।पर उच्च स्तर पर यह भी तय हुआ कि सरकार के पास चूंकि पैसों की कमी है, इसलिए स्वयंसेवी संगठन और राजनीतिक दल के लोग जनता के सहयोग से श्रमदान के जरिए भी तटबंध निर्माण के काम में हाथ बंटाएं। कपूर आयोग की रपट कहती है कि एल.एन.मिश्र ने 16 नवंबर 1955 को यह सलाह दी कि भारत सेवक समाज से भी काम कराया जाए।पर भारत सेवक समाज से काम कराना कितना महंगा पड़ा ,उसका जिक्र रपट में किया गया है।रपट के अनुसार सरकार द्वारा तय ठेकेदारों से मिट्टी का जो काम कराया गया, उस पर सरकार को प्रति सी.एफ.टी. 34 रुपए खर्च हुए।पर जो काम श्रमदान से हुआ,उस पर सरकार का खर्च आया 59 रुपए प्रति सी.एफ.टी.। (कपूर आयोग रपट-पेज संख्या-82) इतना ही नहीं, तथाकथित स्वयंसेवकों को इस काम के लिए जितने पैसे दिए गए, उनमें से भारी धनराशि का कोई हिसाब ही उनलोगों ने नहीं दिया। बिहार प्रदेश भारत सेवक समाज के संयोजक स्वामी हरिनारायणानंद को 3 नवंबर 1961 को तत्कालीन मुख्य मंत्री विनोदानंद झा ने पत्र लिखा। पत्र में कहा गया कि ‘कोसी योजना के कार्यान्वयन में कम्युनिटी सेविंग फंड के उपयोग को लेकर विवाद है। इसको लेकर विधायिका में राज्य सरकार को अनेक सवालों का सामना करना पड़ रहा है।प्रेस में यह विवाद छप रहा है।अच्छा होगा कि इस फंड का आॅडिट सरकारी ंएजेंसी से करा लिया जाए।’ इसके जवाब में 6 नवंबर 1961 को स्वामी हरिनारायणानंद ने मुख्य मंत्री को लिखा कि किसी सरकारी एजेंसी से आॅडिट कराने की जरूरत नहीं है। इतना ही नहीं, तत्कालीन केंद्रीय उप मं.त्री एल.एन.मिश्र ने भी इस संबंध में 9 नवंबर, 1961 को विनोदानंद झा को लिखा कि सरकारी एजेंसी से आॅडिट कराने की जरूरत नहीं है। याद रहे कि मुख्य मंत्री से प्राप्त पत्र की कापी स्वामी हरिनारायणानंद ने एल.एन.मिश्र को भेज दी थी।सवाल है कि स्वामी और मिश्र सरकारी एजेंसी से आॅडिट कराने से क्यों भाग रहे थे ?यदि हिसाब किताब ठीकठाक हो तो कोई किसी भी तरह की जांच से क्यों भागेगा ?पर यह तो कोसी योजना का दुर्भाग्य ही रहा कि ‘प्रथम ग्रासे मक्षिकापातः’ हो गया।यानी भ्रष्टाचार का घुन इस योजना के शैशवावस्था में ही लग गया।बाद में भी जब- जब कोसी तटबंधों के मरम्मत कार्य या वहां किसी और तरह के विकास व निर्माण कार्य हुए तो आम तौर पर एक खास तरह के ठेकेदार, इंजीनियर व नेतागण गिद्ध की तरह उसमें लग गए। ईमानदार लोग वहां कम ही तैनात किए गए।आए दिन भ्रष्टाचार के आरोप विधायिका व मीडिया में उछलते रहे।तटबंधों की शायद ही कभी ठीकठाक मरम्मत व रख रखाव के काम हुए। बिहार का बच्चा- बच्चा जानता है कि कोसी योजना के लुटेरे कौन-कौन लोग रहे हंै। उन लुटेरों को राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण देने वाले कौन- कौन लोग रहे हैं। किस तरह विभिन्न आयोग व समितियों की रपटों व वहां के ईमानदार अफसरों व अन्य लोगांे की सूचनाओंं केा दबाया जाता रहा। बिहार विधान सभा की प्राक्कलन समिति के तिरपनवें प्रतिवेदन में भी कोसी योजना में लूट का विवरण है। यह प्रतिवेदन सत्तर के दशक में बिहार विधान सभा में पेश हुआ था। एक मजबूत धारा कोसी की है और दूसरी मजबूत धारा कोसी तटबंधों व नहरों के निर्माण व उसके रख रखाव के लिए सरकारी पैसों की लूट की भी रही है।ये धाराएं समानांतर चल रही हैं।नब्बे के दशक के कुछ वर्षों को छोड़कर कोसी योजना में लूट न सिर्फ जारी रही, बल्कि बढ़ती ही रही। नतीजतन तटबंध के रख रखाव का काम उपेक्षित हुआ और आखिरकार इस साल अगस्त में कुशहा में तटबंध टूट गया।यह एक दिन के पाप का नतीजा नहीं है, बल्कि यह पाप कोसी तटबंध के निर्माण के शुरूआती दौर से ही शुरू हो गया। इन दिनों कोसी प्रलय को लेकर असली गुनाहगारों की तलाश चल रही है। पर कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि असली गुनहगार तो वही लोग हैं जिन्होंने कोसी निर्माण योजना की नींव में भ्रष्टाचार का बीज डाल दिया। संबंधित भ्रष्ट लोगों के मुंह में हिंसक पशु की तरह रिश्वत के पैसों के खून का चश्का बहुत पहले लग गया था।शायद ही कभी दोषी व्यक्तियों और उनके अफसर, नेता और मददगार मंत्रियों के खिलाफ कोई कारगर कार्रवाई हुई।इस संबंध में उत्तर बिहार के झंझारपुर से सन् 1980-84 में लोक सभा के कांग्रेसी सदस्य रहे डा.गौरी शंकर राजहंस ने हाल में लिखा कि ‘बिहार की प्रलयंकारी बाढ़ का एक दूसरा वीभत्स रूप भी है। पिछले 30 वर्षों से यह देखा गया है कि जैसे ही बाढ़ आती है और उसकी खबर रेडियो,टीवी तथा समाचार पत्रों के द्वारा देश के विभिन्न भागों में पहुंचने लगती है स्वार्थी राजनेता, इंजीनियर और सरकारी अफसर एकजुट होकर जनता को लूटना शुरू कर देते हैं।ंं कई बार तो ऐसा देखा गया है कि बाढ़ से लोगों को बचाने के लिए जो बडे-़ बड़े तटबंध बनाए गए हैं,उन्हें राजनेताओं और इंजीनियरों के चमचे रातों रात काट देते हैं, ताकि बाढ़ का पानी रुकने के बजाए गांवों में चला जाए और लोग तबाह हो जाएं। हर वर्ष राहत कार्य में भयानक धांधली और भ्रष्टाचार होता है। सरकारी सहायता का सौंवा हिस्सा भी बाढ़पीडि़तों तक नहीं पहुच पाता।’ जो बीज पचास के दशक में डाला गया,वह समय बीतने के साथ वृक्ष बन गया और उससे तटबंधों में दरार आनी ही थी जो इस साल कुशहा में आई और लाखों लोग तबाह हो गए। कोसी तटबंध की देखभाल के लिए जब तक ईमानदार व चुस्त अफसरों की तैनाती नहीं होगी तब तक विपदाएं आती ही रहेगी। क्योंकि अब तक तो वह तटबंध तरह तरह के भ्रष्ट तत्वों के लिए दुधारू गाय ही है। पब्लिक एजेंडा मेंं प्रकाशित

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